सर्दी की सुबह थी। हल्की हल्की धुप आ चुकी थी। मैं भी धुप में आकर खड़ा हो चूका था। आखिर सर्दी के दिन थे और सर्दी की धुप में खड़े या बैठे रहने का अपना मजा होता है। सुना है सुबह की धुप बहुत जरूरी भी होती है सेहत के लिहाज़ से। जो लोग अपने दिनचर्या में धुप नहीं ले पाते हैं उन्हें भी सेहत से सम्बंधित समस्या हो जाती है और उसके बाद लगाओ डॉक्टर के चक्कर और दवाइओं और इलाज पर समय निकालो और पैसे भी खर्च करो। इससे अच्छा अपना थोड़ा सा समय निकालकर धुप में खड़े रहना ज्यादा अच्छा है। इसलिए मैं भी सुबह की हल्की हल्की धुप में खड़ा होता ही हूँ थोड़ी देर ही सही।
उस दिन भी जब मैं धुप में खड़ा था तभी दो चिड़ियाँ आयी फुदकती हुई और आपस में शरारत करती हुई। ये चिड़ियाँ थी छोटी छोटी प्यारी प्यारी गौरैया जो की अब लुप्त होने की कगार पर है। लेकिन हमें क्या हमें तो अपनी ही समस्याओं से फुर्सत नहीं है अपने परिवार को देखें ,अपने रोजगार पर ध्यान दें या सामाजिक और प्राकृतिक सेवा में लग जाएँ। इतना समय ही किसके पास है। वैसे भी मेरे और आप जैसे इंसान के बस में क्या है। हम और आप ना कोई सरकार चला रहे हैं ,ना तो जंगलों को साफ़ करने वाले बिल्डर हैं ,न उद्योगपति हैं ,ना कोई बहुत बड़े नेता हैं। हम तो वो हैं जो ना तो पर्यावरण को ख़राब करते हैं और ना ही बचाते हैं। चलिए अब इस मुद्दे पर ज्यादा ना सोचते हुए अब गौरैया वाली बात पर आते हैं।
तो मेरी नज़र इन प्यारी प्यारी गौरैया चिड़ियों पर पड़ी जो कभी रास्ते के पानी को पी रही थी ,तो कभी अपनी चोंच से कुछ चीज़ें उठा कर फिर से छोड़ दे रही थी ,तो कभी एक दूसरे से शरारत कर रही थी। उस सर्दी के मौसम में और हलकी धुप में उन चिड़ियों के इधर उधर फुदकना और इठलाना बहुत मनभावन लग रहा था। या क्या पता ये सब सिर्फ मुझे ही अच्छा लगता है।
उन चिड़ियों को देखकर मैं सोचने लगा की इनकी भी क्या जिंदगी है। क्या हमारी जिंदगी इन से अच्छी है। हम सर्दी ,गर्मी, बरसात हर तरह के मौसम में अपने आप को बचा लेते हैं। हमारे पास रहने के घर से लेकर मेडिकल तक लगभग हर तरह की सुविधा है। लेकिन इन चिड़ियों के पास तो ऐसा कुछ नहीं है। कब इनका शिकार हो जाये पता नहीं। वैसे ये सतर्क तो बहुत रहती हैं। कौन से मौसम में इन पर क्या कहर टूट पड़े पता नहीं उदाहरण के तौर पर जैसे अगर बहुत तेज़ आंधी तूफान आ जाये तो इनके घोंसले ,अंडे व इनके जान का कोई पता नहीं। इनसे तगड़े और बड़े पंछियों का तो वैसे भी भरोसा नहीं कब इनके घोसलों पर हमला कर दें, कब इनका शिकार कर दे कुछ कहा नहीं जा सकता है। देखा जाये तो तमाम परेशानियां इनके जीवन में भी हैं। फिर भी ये अपने हर पल को इठलाते हुए और चंचलता से जीती हैं लेकिन हमेशा सतर्क भी रहती हैं
एक खास बात तो इनकी ये भी है की ये प्रकृति से जुड़ी रहती हैं। खुले आकाश में उड़ती हैं ,कभी पेड़ पर ,कभी तालाब के आसपास ,कभी कहीं तो कभी कहीं भटकती रहती हैं। जो मिल जाये उसको खा कर अपना और अपने बच्चों का गुजारा करती हैं। लेकिन कभी तनाव ,ओवर थिंकिंग ,बी पी ,जात पात का झगड़ा ,ज़मीन जायदाद का झगड़ा ये सब इनमें नहीं होता है। शायद हमसे ज्यादा इन्हें पता है जब तक जी रहे हैं अपनी कोशिश करके जी रहे हैं यानी की कोशिश करने के बाद अपना गुजारा जैसे चला सकती हैं चला रही हैं सतर्क रहते हुए और हमेशा चंचल और खुश रहते हुए। जब जीवन ही खत्म हो जायेगा तो हमें क्या फर्क पड़ने वाला है की दुनिया में क्या हो रहा है ,क्या होना चाहिए वगैरह वगैरह। जब तक जीवन है तो अपना काम करते हुए जी लेते हैं। आखिर कुछ भी हो जब तक जीवन है ,जीना तो है ही और एक दिन मरना तो है ही, तो अभी से मर मर कर क्यों जीएं।
हम इंसान कामयाब हुए तो ज्यादातर अपनी खुशी के लिए जश्न नहीं मनाते हैं दुनिया को दिखाने के लिए जश्न मनाते हैं या फिर कोई दूसरा तरीका ढूंढ़ते हैं दिखावा करने के लिए। नहीं तो देखा जाये तो एक आदमी अपना मनपसंद खाना खाकर ,मनपसन्द गाना गाकर या सुनकर ,अपने मनपसंद जगह घूमकर खुश रह सकता है।
इसके उलट अगर नाकामयाब हुए तो लोग ऐसे उदास हो जायेंगे और निराश हो जायेंगे जैसी अब दुनिया नहीं चलने वाली है सब ख़त्म हो गया।
हम कामयाब हो या ना हों लेकिन एक समय के बाद हम सही मायने जीना ही छोड़ देते हैं ऐसा करने के पीछे की वजहें होती हैं हमारी जिम्मेदारियां ,रोजगार ,हमारा अहम इत्यादि। ज्यादातर हम हमारी जिम्मेदारियां निभाते हैं ,रोजगार के हिसाब से जीते हैं और शरीर को दवाओं के भरोसे चलाते हैं।
कभी किसी चिड़िया को किसी ने देखा है ओवर थिंकिंग करते हुए ,किसी मेडिकल पर जाकर दवा मांगते हुए ? कभी डॉक्यूमेंट लेकर मुकदमा करते हुए ? कभी पंचायत में बैठकर बहस करते हुए ?कभी अपना गम भुलाने के नाम पर दारु की बोतल से दारू गटकते हुए ? कभी अलग कारणों से अजीब अजीब रिवाज करते हुए ?नहीं देखा होगा क्योंकि वो जैसी भी हों वो अपना जीवन जीती हैं जैसे प्रकृति ने उन्हें बनाया है और जो भी दिया है उसे स्वीकार करते हुए।
चलिए मान लेते हैं की प्रकृति ने उन्हें अलग बनाया है और हमें अलग बनाया है लगभग हर तरह से। हमारी जरूरतें ,जीने का तरीका उनसे अलग है। लेकिन एक बात हो है की हम भी चाहें तो बिना प्रकृति को नुकसान पहुंचाए अपने जीवन को खुशी से जी सकते हैं। हम बहुत सारी बिमारिओं जैसे की बी पी ,शुगर, ओवर थिंकिंग ,दुनियादारी की तमाम बुराइओं के शिकार में आये बगैर जी सकते हैं जैसे ये चिड़ियाँ फुदकती हुई और इठलाती हुई जी रही हैं तमाम परेशानियों और अस्तित्व पर खतरे के बावजूद।
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