अभी कुछ दिनों पहले की ही बात है। सुनने में आया की मेरे घर से लगभग तीन किलोमीटर दूर मेन रोड पर दो मोटर साइकिल सवार युवकों की दुर्घटना में मौके पर ही मौत हो गयी। वो युवक लगभग २२ साल के रहे होंगे। आसपास के लोगों से थोड़ा ज्यादा पूछताछ के बाद पता चला की दोनों शाम को एक ही मोटर साइकिल पर सवार होकर ऑफिस से अपने अपने घर जा रहे थे। रास्ते में गड्ढा आने के कारण मोटर साइकिल का संतुलन बिगड़ा और दोनों मोटर साइकिल सहित नीचे गिर पड़े। गिरने के दौरान दोनों के पैर सड़क के किनारे की तरफ थे और दोनों का सर सड़क पर था। उसके बाद पीछे से आती हुई एक चार पहिया दोनों के सिरों को कुचलती हुई निकल गयी जिससे की दोनों की मौके पर ही मौत हो गयी। मुझे ये सुनकर भी हैरानी हुई की उन दोनों को कुचलने के बाद वो चार पहिया रुकी नहीं बल्कि चली गयी और उसके बाद गुजरने वाली अन्य वाहनों ने भी वही किया। बहुत सारी वाहनें उनके ऊपर से बहुत समय तक अंधाधुन गुजरती गयी।
जरा उन लड़कों और उनके घर वालों के बारे में सोचिये की क्या गुजरी होगी उन पर जिनको ये लगता होगा की उनका बेटा ,भाई ,पति या पिता ऑफिस गया है और वापस अपने समय पर घर आने वाला है। देर होने पर उन लोगों ने ना जाने कितने फ़ोन किये होंगे उनके मोबाइलों पर। लेकिन उनके फ़ोन का अच्छा जवाब तो तब मिलेगा जब फ़ोन उठाने वाला सही सलामत होगा। सोचिये क्या गुजरी होगी उनके घर वालों पर जब बेटा सुबह सही सलामत घर से ऑफिस गया होगा और बाद में बहुत देर होने पर भी फ़ोन ही नहीं उठाया होगा। और किसी तरह से खबर मिलने के बाद जब वो उस हालत में घर आया होगा यानी की लाश बनकर घर आया होगा।
बहुत से लोग तो ये जानकर और सुनकर डर गए और हैरान भी हो गए लेकिन बहुत से लोग ऐसे बर्ताव कर रहे हैं जैसे की कुछ खास नहीं हुआ है। ये तो होता ही रहता हैं हमेशा। कई लोगों के ऐसे भी विचार सुनने को मिले की क्या कर सकते हैं ऐसे मामलों में। जिसको मरना होता है वो कैसे भी और किसी भी बहाने से मरता ही है। कब किसके साथ क्या हो जाये कुछ कहा भी नहीं जा सकता है। वैसे इस तरह के विचार काफी हद तक ठीक हैं लेकिन पूरी तरह से नहीं। ये मानना ठीक है की जो हो गया सो हो गया, जो बुरा होना था वो भी हो गया ,अब इसमें कोई कर भी क्या सकता है सिवाय हिम्मत रखने के।
लेकिन क्या इस तरह के विचार बोल देने से ही वाकई में इस तरह की घटनाएं नहीं होंगी। क्या ये बात आयी गयी बात से खास बात तब होगी जब कोई अपना या खास इस तरह की दुर्घटना का शिकार होगा। क्या हमें वाकई इस तरह की दिल दहला देने वाली घटनाओं से सबक लेकर सावधानी और कड़े कदम उठाने के बजाय ये सोचकर अपने और अन्य लोगों के मुंह बंद कर देना चाहिए की इसमें क्या कर सकते हैं। जिसको मरना होता है वो मरता ही है किसी बहाने से। कब क्या हो जाये क्या पता।
जो चीज़ें भगवान या कुदरत के हाथ में हैं जिसमें हमारा कोई बस नहीं चलता उसमें ऐसा कहना उचित भी लगता है की क्या कर सकते हैं सिवाय हिम्मत रखने के। लेकिन उसी भगवान या कुदरत ने हमें इंसान बनाया और हमारे दिमाग की जो सोचने की और समझने की क्षमता है वो बाकी सभी जीव जंतुओं से ज्यादा है। हम सभी से ज्यादा सोच और समझ सकते हैं की क्या गलत हो रहा है और क्या कमी है और उस को पूरा करने का क्या उपाय है। अगर बात गाड़ी चलाने की ,ट्रैफिक के नियमों के की जाये तो हमें ये भी समझना होगा की भगवान या कुदरत ने पेड़ काटकर और गाड़ी लेकर हमें नहीं दिया की लो मेरे प्यारे इंसानों और पेड़ काटो और जी भर कर गाड़ी चलाओ बिना किसी बात की परवाह किये। उस देने वाले ने तो हमारा दिमाग विकसित किया होगा लेकिन अब हम उस विकसित होते दिमाग से सही कदम उठाएंगे या गलत कदम उठाएंगे ये तो देने वाले ने हमारे ऊपर ही छोड़ दिया है शायद। ये बातें हमें स्वीकार करनी चाहिए की पेड़ काट कर जंगल साफ़ करके डामर की सड़क हमने बनाई। अलग अलग तरह की गाड़ियों को हमने बनाया अपनी जरूरत और सुविधा के लिए। ट्रैफिक नियम हमने ही बनाये अपनी सुविधा और सुरक्षा के लिए। उसे तोड़ते भी हम ही हैं पता नहीं क्यों।
इस तरह की होने वाली दुर्घटनाओं से सवाल तो उठता है की क्या हम इतने व्यस्त हो गए हैं पैसे, रोजगार और अंधाधुन तरक्की के रेस में की सड़क पर चलते हुए अब इंसानियत भूल गए हैं कोई मरे या जिए किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता। अकसर आते जाते सड़कों पर ये देखने में आता है की कहीं ना कहीं कोई जानवर जैसे की बिल्ली ,गिलहरी ,कुत्ता किसी गाड़ी के नीचे आकर मरा पड़ा होता है। और उनकी गलती क्या होती है यही की उनके पास हम इंसानों जैसा विकसित दिमाग नहीं होता है। उनके रहने के जगह और जंगल तो हम वैसे ही खत्म करते जा रहे हैं इमारतें और सड़क बनाकर और सड़कें चौड़ी करके। उसके बाद अगर वो अपने खाने की तलाश में अगर सड़क के उस पार जाना चाहें तो हम उन्हें गाड़ी के निचे कुचल देंगे क्योंकि हम लेटेस्ट फैशन के प्रभाव में ,अहम के प्रभाव में गाड़ी धीरे नहीं चला सकते हैं। हमें पता नहीं किस बात की जल्दी होती है। ऐसा कौन सा काम और देश की तरक्की रुक जाएगी अगर हम ट्रैफिक के नियमों का पालन करेंगे। अपनी गाड़ी नियंत्रित रखेंगे और सुरक्षित अपनी जगह पर पहुंच जायेंगे।
ऐसा भी नहीं है की हर कोई ट्रैफिक नियम तोड़ता है और तेज़ी से गाड़ी चलाता है। लेकिन ज्यादातर लोगों की मानसिकता ही नियम तोड़ने वाली हो गयी है। लोगों की ऐसी मानसिकता के कारण ट्रैफिक में चलने पर और नियम और सुरक्षा को ध्यान में रखने के अनुसार चलने पर ऐसा लगने लगता है की जो ये सही से नियम मानते हुए चल रहा है वो बेवकूफ है और पीछे रह जा रहा है और जो नियम नहीं मान रहा है वो बहुत कूल है और स्मार्ट है भले ही अपनी इस तरह की हरकतों से वह एक दिन अपनी या फिर किसी और की जान माल का भारी नुकसान कर दे।
ऐसा कई बार मेरे साथ हुआ है की मैं लाल बत्ती देखकर रुका हुआ हूँ लेकिन पीछे से बार बार गाड़ी का हॉर्न बजाया जा रहा है की आगे बढ़ो या फिर हमें आगे निकलने दो। कई बार परेशान होकर सिगनल लाल होने पर भी ना चाहते हुए भी नियम तोड़ना पड़ता है क्योंकि जब सभी निकल रहे हैं तो मैं अकेला सिग्नल देख कर खड़ा होकर कौन सा सुरक्षित वातावरण बना लूंगा। वैसे मैं पूरी कोशिश करता हूँ की नियम ना तोड़ूँ भले ही थोड़ी देर हो जाये लेकिन कोई ऐसी वैसी घटना ना हो। कई बार तो ऐसा भी हुआ है कोई सड़क पार करना चाह रहा है और मैं गाड़ी रोककर उसे पार करने का मौका भी दे रहा हूँ लेकिन मेरे पीछे से दूसरे तेज़ी से हॉर्न बजाते हुए निकल जा रहे हैं और सड़क पार करने का मौका ही नहीं दे रहे हैं। पता नहीं ऐसे समय में उनका कौन सा अहम हावी हो जाता है उनपर की अगर थोड़ा रुक जायेंगे तो जैसे वो नीचे या छोटे हो जायेंगे। कई बार तो मेरे साथ ऐसा भी होता है की मुझे गाड़ी चलाते समय सड़क पार करके दूसरी ओर जाना पड़ता है और मैं अपनी गाड़ी से सिगनल देते हुए सड़क पार करने की कोशिश भी करता हूँ लेकिन ऐसा लगता है की जो पीछे से या सामने से गाड़ी वाले आ रहे है उन्हें या तो सिगनल देता हुआ कोई दिखाई ही नहीं दे रहा है या फिर ये भी हो सकता है की उनका अहम उनपर हावी हो जा रहा है की अगर सिगनल देने वाले ने सड़क पार कर लिया तो वो हार जायेंगे। और ऐसा होने पर अगर हार्न बजाकर उन्हें इसका अहसास दिलाने की कोशिश की जाये तो ऐसा होता है की वो लोग तो पहले से ही हॉर्न बजा रहे होते है और हमारा हॉर्न सुनकर ऐसे गुस्से में देखते हैं जैसे हम ही कोई गुनाह कर रहे हैं।
प्रशासन और ट्रैफिक मैनेजमेंट का क्या कहना अगर अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर कहूँ तो ऐसा लगता है की ट्रैफिक पुलिस वाले या तो कुछ ख़ास जगहों पर और कुछ खास लोगों के लिए ही तैनात रहते हैं। और अगर कहीं तैनात रहते भी हैं तो उनका मकसद किसी तरह से वसूली करना ही होता है यातायात के लिए सुरक्षित नियमों का पालन करवाना या ट्रैफिक में सुरक्षित वातावरण बनाना नहीं।
अगर आज की तारीख में प्रशासन के बारे में कुछ बोल दिया जाये खासकर ऐसे मामलों में तो आम लोगों में और हमारे दोस्तों में भी उनकी तरफ से एक तरह से हमसे लड़ने वाले लोग तैयार रहते हैं जो की किसी भी हालत में प्रशासन से सवाल पूछने और कमी निकालने के पक्ष में नहीं हैं उन्हें अंधाधुन प्रशासन की तारीफ ही सुननी है। एक बार ऐसे ही शहर में किसी काम से कुछ दोस्तों के साथ घूम रहा था की शहर के भीड़भाड़ के मुद्दे पर बात होने लगी। मैंने इतना कह दिया की यार ये ट्रैफिक पुलिस वाले सालभर तो दिखते ही नहीं हैं। साल में कभी कभार कुछ मौकों पर ही दिखाई देते हैं। लोग तो लापरवाह हैं ही लेकिन इन ट्रैफिक पुलिस वालों में भी कमी है। मेरे इतना कहते ही वो दोस्त उनके बचाव में आ गया और आक्रामक तरीके से बोला की आपको क्या पता है की ट्रैफिक पुलिस वालों पर कितना काम का दबाव है क्योंकि उनमें लोगों की बहुत कमी है। मैंने ये बात भी रखनी चाही की सरकार को भरती शुरू करनी चाहिए अगर कमी है तो लेकिन फिर सोचा की कौन इस लम्बी बहस में पड़े की किस पार्टी की सरकार कितनी सही है और कितनी गलत है।
हालाँकि कई बार ये भी देखने में आता है की किसी सिगनल पर या मोड़ पर बहुत ज्यादा भीड़ होती है उन हज़ारों से भी ज्यादा लोगों पर नज़र रखने के लिए सिर्फ एक या दो ट्रैफिक पुलिस वाले तैनात रहते हैं। ऐसी हालत में वो भी किन किन लोगों पर और कितना ध्यान दे पाते होंगे। सुनने में तो ये भी आता है की ट्रैफिक पुलिस पर काम की जिम्मेदारी ज्यादा है और काम सँभालने वाले आदमी कम है। इसके बाद जब ये कहा जाता है की सरकार को भरती करनी चाहिए तो उसके जवाब में ये सुनने को मिलता है की पैसे की कमी है कहाँ से आएंगे इतने पैसे। इसके आगे होता ये है की मुद्दा ट्रैफिक से हटकर अपनी पसंद की सरकारों या राजनीतिक पार्टियों पर होने लगता है जिसका कोई अंत नज़र नहीं आता है।
वैसे तो आटोमेटिक ट्रैफिक सिगनल के भी इंतज़ाम हैं कई जगह पर जिसकी वजह से ट्रैफिक पुलिस या मैनपावर की जरूरत ना के बराबर होता है। लेकिन वहां भी कई लोग बहुत जल्दी में रहते है और सिगनल तोड़ने की फ़िराक में रहते हैं और सिगनल तोड़ते भी हैं और इस चक्कर में कभी ट्रैफिक वालों से तो कभी अन्य लोगों से झगड़ा भी होता है ,दुर्घटना भी होती है और जान माल की हानि भी होती है। ये भी देखने में आता है की सिगनल में खराबी आ जाती है। सीधी सी बात है की कोई भी चीज़ हो या मशीन खराब तो होती ही है और समय पर मरम्मत करने की जरूरत भी होती है। जब सिगनल वाली चीज़ों में खराबी आती है तो उसकी मरम्मत करने में बहुत समय लग जाता है। इसके बाद होता ये है की जिन जगहों पर लोग सिगनल देखकर नियम को सही से मान रहे होते हैं वहां पर सिगनल दुरुस्त ना होने के कारण लापरवाही शुरू हो जाती है और दुर्घटना होने की सम्भावना बढ़ जाती है। यहाँ पर भी लोगों की मानसिकता का क्या कहना अकसर देखने में आता है की जहाँ सिगनल नहीं काम करता लोग मनमाने ढंग से गाड़ी चलाना शुरू कर देते हैं जैसे की अगर सिगनल काम नहीं कर रहा है तो उनका एक्सीडेंट भी नहीं होगा।
ये भी ध्यान रखने वाली बात है की अगर दुर्घटना हो जाये और जहाँ ये दुर्घटनाएं होती हैं वहां ज्यादातर लोग मामले को सुलझाने की बजाय उलझाने लगते हैं और बात झगड़े और मारपीट तक पहुंच जाती है। कई बार तो ऐसा भी होता है की मदद करने वाला परेशानी में पड़ जाता है। एक बार ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ था।
उस दिन मैं अपनी स्कूटी पर बैठकर दोपहर को अपने ऑफिस जा रहा था। मेरे आगे बुलेट मोटर साइकिल पर एक विवाहित जोड़ा एक साथ जा रहे थे। थोड़ा आगे जाने पर एक बुजुर्ग महिला बिना इधर उधर देखे सड़क पार करने के लिए बेसुध भागी जा रही थी। थोड़ी परेशान भी लग रही थी वो। वो मेरे आगे चल रही उस बुलेट से टकराते हुए बची। बुलेट वाले जोड़े ने उसे कुछ हिदायत भी दी रुककर। वो रुक गयी। मैं जो की पीछे पीछे आ रहा था लगभग २० किलोमीटर की स्पीड में (मैं गाड़ी धीरे ही चलाता हूँ हमेशा) मैं निश्चिंत था की अब वो बूढ़ी महिला रुक गयी है ,अब वो अभी सड़क पार नहीं करेगी। लेकिन वो फिर से अचानक से दौड़ने लगी। मैं जो की पीछे ही था अपनी स्कूटी पर उसको बचाने के लिए स्कूटी की स्पीड कम करने लगा , स्कूटी दूसरी तरफ कोने में ले जाने लगा और मेरे मुंह से आवाज निकल रही थी ओए ओए ओए। लेकिन वो बुढ़िया नहीं रुकी और वो बुढ़िया एक जगह पर आकर मेरी स्कूटी से टकरा गयी। वो और मैं टकराने के बाद गिर पड़े। वो सामने की तरफ गिरी और मैं स्कूटी सहित गिर पड़ा। वो तो उठ गयी लेकिन मैं नहीं उठ पा रहा था क्योंकि मेरा एक पैर स्कूटी की नीचे आ गया था। मैं कोशिश तो बहुत कर रहा था लेकिन नहीं उठ पा रहा था। तभी एक लड़का भागता हुआ आया और उसने मुझे और स्कूटी को उठाने में मदद किया। जब मैं उठा तो घुटने के पास मेरा पैंट फट चूका था और खरोंच भी आयी थी। मैं लड़खड़ा भी रहा था। और उस बूढ़ी महिला को भी कुछ महिलाओं ने संभाल लिया था। हालाँकि उस बूढ़ी महिला को कोई चोट या खरोच नहीं आयी थी। उसे सिर्फ धक्का लगा था। वो तो अच्छा हुआ की मैं कम स्पीड में चला रहा था और मैं गाड़ी अकसर धीरे ही चलाता हूँ नहीं तो पता नहीं क्या हो जाना था।
लेकिन मैं वहां के मूल निवासियों से घिरता जा रहा था। खासकर वो ऑटोवाला जो खुद तो ओवरलोड सवारी लेकर आया हुआ था। उसका आटो देखकर लग रहा था की जरा सा भी आटो इधर उधर हुआ की पलट जायेगा। वो आटो वाला अपना आटो और सवारी छोड़कर अपनी मूल भाषा में कुछ बोलते हुए मेरी तरफ बढ़ा जा रहा था। इसके साथ ही चारों तरफ से लोग मुझे घेरे जा रहे थे। और मैं लड़खड़ाते हुए बीच में खड़ा सबसे धीरे धीरे घिरता जा रहा था।ये बात भी गौर करने लायक है की वो बूढ़ी महिला जिसके साथ मेरा एक्सीडेंट हुआ वो और उसके साथ के महिला और पुरुष कुछ भी नहीं बोल रहे थे। उस हालत में भी लग रहा था की लगता है अपनी सीखी हुई आत्मरक्षा का हुनर दिखाने का समय आ गया है। लेकिन तभी एक आवाज आयी-" तुम लोग उसको क्यों घेरते जा रहे हो। वो औरत पहले मेरी गाड़ी से टकराने वाली थी। ये तो उसको बचाने की कोशिश कर रहा था। और तुम लोग उसे ही घेरे जा रहे हो।" मेरी और बाकी सबकी नज़र उस तेज़ और कड़क आवाज की तरफ गयी। उसके बाद जो जहाँ था वही रुक गया। मैंने देखा ये वही जोड़ा था जो बुलेट पर मुझसे से आगे चल रहा था जिनकी बुलेट से वो बूढ़ी महिला टकराने से बच गयी थी। उनके इस तरह से डांटने और सही बोलने के कारण बात मारपीट तक नहीं पहुंची। मैंने उस जोड़े की तरफ देखते हुए कहा -"थैंक यू भैया ,आपने बचा लिया "
और इस तरह से बात आगे नहीं बढ़ी लेकिन हर किसी के मामले में ऐसा नहीं होता की कोई भला आदमी बीच बचाव करके मामला सुलझा दे।
सफर से और गाड़ी चलाने से संबंधित कुछ बातें जो हम सभी को समझनी और ध्यान रखनी जरूरी हैं -
१. कोई भी गाड़ी को बनाया जाता है आदमी को और अन्य चीज़ों को एक जगह से दूसरी जगह आसानी से और सुरक्षित पहुंचाने के लिए। इसलिए गाड़ी को पैशन ,अहम ,स्टाइल और कूल लगने का मुद्दा ना बनायें और समझें।
२. ऐसी गाड़िओं को लेने से बचें जो आपको उकसाती हैं स्टाइल मारने के लिए ,कूल दिखने के लिए ,तेज़ चलाने के लिए जिनमें ना तो कोई एवरेज होता है ना ही कोई काम आ सकती हैं। सिर्फ लुक और स्टाइल देखकर गाड़ी पसंद ना करें।
३. गाड़िओ से सम्बंधित कुछ बातें फिल्मों में ही अच्छी लगती हैं जैसे की फिल्म के हीरो का तेज़ बाइक चलाना ,बाइक चलाते हुए हवा में लहराते हुए अपनी लम्बी जुल्फें दिखाना,हेलमेट ना पहनना, खतरनाक स्टंट करना जैसे की तेज़ बाइक चलाते हुए हीरोइन को इम्प्रेस करना , गाना गाते हुए बाइक चलाना , सिगनल तोड़ना ,बाइक से कूदना या बाइक को कहीं से कुदाना इत्यादि। फिल्मों को मुख्यतः एन्जॉय कीजिये और ये समझ विकसित कीजिये की फिल्मों में और इस तरह की चीज़ों में दिखाई गई चीज़ों में कौन से चीज़ें सिर्फ मनोरंजन के लिए हैं और कौन सी चीज़ें वास्तव में अपनाने लायक हैं। आप सभी अपनी जिंदगी की हीरो ही हैं। आपकी जिंदगी बहुत जरूरी है आपके परिवार के लिए और दोस्तों के लिए।
४. गाड़ी चलाने से पहले सारी जरूरी चीज़ें जैसे की हेल मेट ,और ऐसे कपड़े जो ड्राइविंग करते समय आपको सुरक्षित रखते हैं का इंतज़ाम करें और इस्तेमाल करें।
५. गाड़ी जितना हो सके तेज़ ना चलाएं और अपने कंट्रोल में रखें। गाड़ी कंट्रोल तभी होती है जब वो कम स्पीड में होती है।
६. यातायात के नियमों का पालन करें उन्हें तोड़ने की मानसिकता ना अपनाएं।
७. नियमों से सम्बंधित बातों और कमियों के लिए जिम्मेदार संस्थाओं और सरकार पर सवाल उठायें। सरकार चाहे आपकी पसंद की हो या ना हो या हो सकता है सरकार और संस्थाएं अपनी जगह सही हों या मजबूर हों ,उनकी तरफदारी ना करें और वकालत भी ना करें। और ऐसा कर के सवाल उठाने वालों से बहस ना बढ़ाएं।
८. गाड़ी चलाते समय हर तरह से सतर्क रहें क्योंकि जरूरी नहीं है की आप सही से गाड़ी चला रहे हैं तो आप पूरी तरह से सुरक्षित ही हैं। दूसरों की गलतियों से भी आपको उतना ही जान माल का नुकसान हो सकता है।
९. गाड़ी चलाने को लेकर और यातायात के नियमों को लेकर अच्छी मानसिकता विकसित करें और सुरक्षा को पहला महत्व दें।
१०. अपने अंदर होने वाली खुशी ,दुःख या किसी तरह की भावना को ड्राइविंग करते समय अपने ऊपर हावी ना होने दें ,जागरूक रहें।
११. ड्राइविंग करते समय ना तो किसी तरह का मनोरंजन करें ना ही किसी से कोई बात करें। ना तो फ़ोन पर और ना साथ में किसी को बैठाकर। फ़ोन पर तो बिलकुल भी ना करें। अगर ड्राइविंग के दौरान अगर किसी का फ़ोन आता भी है तो अपने वाहन को कहीं बाजु में रोककर फ़ोन से बात करें लेकिन इधर उधर ध्यान रखते हुए।
और अंत में इतना की कहना चाहूंगा इस उम्मीद के साथ की मेरे इस लेख को सुनने या पढ़ने के बाद शायद लोगों में कुछ जागरूकता आये -
" पहनो कपड़े कितने भी नए नए ,ले लो वाहन कितने भी महंगे
नयी तकनीक के साथ भले ही जुड़े रहो ,करते रहो इनकी
कितनी भी बातचीत , लेकिन अपनी मानसिकता को भी करते रहो विकसित
सुरक्षा को ध्यान में रखकर ट्रैफिक नियमों का पालन करके रहो
सुरक्षित"
वास्तविक सड़क दुर्घटनाओं के वीडियो
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