पुनर्जन्म यानी की दोबारा जन्म लेना एक बड़ा ही रोचक मुद्दा है। इसके बारे में सोचना, बातें करना या इससे सम्बंधित फ़िल्में इत्यादि देखना बहुत ही रोचक और रोमांचक लगता है। लेकिन क्या सच में पुनर्जन्म होता है ? विज्ञान पुनर्जन्म को नहीं मानता। अगर अलग अलग धर्मों की बात की जाये तो अलग अलग धर्मों के पुनर्जन्म को लेकर अलग अलग मत हैं कुछ मानते हैं और कुछ बिलकुल नकार देते हैं।
पुनर्जन्म को मानने वाले धर्म - पुनर्जन्म हिन्दू धर्म ,बौद्ध धर्म, जैन धर्म, सिख धर्म सहित अलग अलग धार्मिक और दार्शनिक परंपराओं में पाई जाने वाली एक मान्यता है। कुछ नए युग के आध्यात्मिक आंदोलनों में भी पुनर्जन्म के बारे में माना जाता है की पुनर्जन्म सही में होता है।
पुनर्जन्म में क्या क्या होता है - इस मान्यता के अनुसार, मरने के बाद, किसी व्यक्ति की जो आत्मा या चेतना होती है वो एक नए शरीर में जाती है या ये भी कह सकते हैं की नए रूप में फिर से जन्म लेती है, जो अकसर पिछले जन्मो में उनके किये हुए कार्यों (कर्म) से प्रभावित होती है या कह सकते है उन्हीं कर्मों के कारण होती है । जैसे उदाहरण के तौर पर हम सब ने कभी ना कभी सुना ही होगा और कई फिल्मों या धारावाहिकों में भी देखा होगा की कैसे मुख्य नायक या नायिका किसी कारण मिल नहीं पाते और असमय मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। इसी कारण वो फिर से जनम लेते हैं किसी और जगह पर और किसी और नाम से और वो फिर से मिलते हैं और उन्हें पिछले जनम का भी सब कुछ याद आ जाता है।
हालाँकि यह ध्यान में रखना और समझना भी जरूरी है की पुनर्जन्म का जो विचार है उसे पूरी तरह से माना नहीं जाता है। यह अलग अलग संस्कृतिओं में और विश्वास करने की प्रणालियों में बहुत ही अलग अलग है यानी की अलग अलग संस्कृतिओं और विश्वास प्रणालियों में इसके बारे में अलग अलग विचार और मान्यताएं हैं।
पुनर्जन्म को ना मानने वाले धर्म - ईसाई धर्म, इस्लाम और यहूदी धर्म जैसे कई धर्म पुनर्जन्म की अवधारणा को नहीं मानते हैं। इसके बजाय वो ये मानते हैं की स्वर्ग और नर्क होता है और मृत्यु के बाद भी जीवन होता है जहाँ आत्मा को अपने जीवन में किये हुए कर्मों के अनुसार फल मिलता है यानी की उसे स्वर्ग मिलेगा ,नर्क मिलेगा या मुक्ति मिलेगी इत्यादि उसके कर्मों के अनुसार तय होता है।
पुनर्जन्म और विज्ञान - वास्तव में अगर देखा जाये तो मरने के बाद आदमी का फिर से जन्म होता है की नहीं या वो हमेशा के लिए इस दुनिया से चला जाता है या हमेशा के लिए ख़त्म हो जाता है ये आदमी का अपना व्यक्तिगत विश्वास हो सकता है ,आस्था का विषय हो सकता है या किसी की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से जुड़ा मामला हो सकता है। लेकिन पुनर्जन्म सही में होता है की नहीं इसका कोई भी वैज्ञानिक आधार नहीं है दूसरे शब्दों में ये कहना भी ठीक है की विज्ञान ने इसे किसी भी आधार पर स्वीकार भी नहीं किया है और किसी आधार पर ये भी नहीं साबित किया है की ये नहीं होता है।
अब समझते हैं ऐसे कौन से तर्क हैं या हो सकते हैं जिनके आधार पर ये कहा जा सकता है की पुनर्जन्म सही में होता है।
जैसे हम आज के समय में मोबाइल या स्मार्टफ़ोन का इस्तेमाल करते हैं। उसमें हम सिम कार्ड का इस्तेमाल करते हैं और अलग अलग ऐप का इस्तेमाल करते हैं। हम अपने ईमेल आईडी से ही स्मार्टफ़ोन के सारे एप्लीकेशन चलाते हैं जिसका पासवर्ड हमें याद रखना होता है और सुरक्षित भी रखना होता है। लेकिन अगर ऐसा हो जाये की आप जो स्मार्टफ़ोन इस्तेमाल कर रहे हैं वो किसी कारण से खराब हो जाये तो ऐसे में आप क्या करेंगे। ऐसे में आप अपने बजट और जरूरत के अनुसार नया स्मार्टफ़ोन लेंगे। अब आगे होगा ये की आप नए स्मार्टफोन में वो सारी एप्लीकेशन या जरूरी चीज़ें डालेंगे जो की पुराने स्मार्टफ़ोन में आप इस्तेमाल करते थे। या हो सकता है आप कुछ पुरानी चीज़ों की जगह नयी चीज़ें डालें जैसे कुछ या पुराने परिचितों के कांटेक्ट नंबर , ऐसे ऐप जो आप पसंद नहीं करते या जिनसे आप परेशान हो गए हों उन्हें आप अपने नए स्मार्टफ़ोन में नहीं डालेंगे। इस तरह से अगर गौर किया जाये तो जैसा की कहा गया है की आत्मा जो है वो पुराना शरीर छोड़कर नया नए शरीर में जाती है। हो सकता है नया जनम लेने के बाद कुछ लोगों को अपने पिछले जनम की सारी बातें याद हों ,कुछ लोगों को कुछ ही बातें याद हों , या फिर बिलकुल भी याद ना हों। वैसे ये भी कहा जाता है हमारे अंदर जो अवचेतन मन होता है उसमें ये सारी बातें सुरक्षित रहती हैं लेकिन वो सारी बातें समझने के लिए हमें अपने अवचेतन मन को जाग्रत करना पड़ता है। वैसे तो ये मेरे व्यक्तिगत विचार हैं और अनुमान हैं लेकिन ऐसा सोचने से लगता तो है की क्या पता पुनर्जन्म सच में होता हो।
आत्मा का पुनर्जन्म या इंसान की मानसिक स्थिति - अगर आप इंटरनेट पर पुनर्जन्म के बारे में ढूँढेंगे तो आपको ऐसे कई लेख और वीडियो मिल जायेंगे जिसमें ये दावा किया जाता है की फलां बच्चे का या आदमी का पुनर्जन्म हुआ है और पिछले जन्म में वो फलां नाम से ,फलां परिवार में, और फलां जगह पर रहता था। और जब ये छोटा था तो इसे उस जगह के बारे में और अपने पिछले जन्म के परिवार के सदस्यों के बारे में सब कुछ याद था और इसने उन्हें देखते ही पहचान भी लिया था। वैसे हमारे समाज में ये मान्यता भी प्रचलित है की जो नए नए जन्में बच्चे होते है वो बहुत ज्यादा इसलिए भी रोते हैं की उनको अपने पिछले जन्म का याद होता है और अपने पिछले जन्म से जुड़ाव के कारण ही वो बार बार रोते है। जैसे जैसे वो बड़े होते जाते हैं अपने पिछले जन्म के बारे में भूलते जाते हैं और नए जीवन को अपनाने लगते हैं।
कई बार ये भी देखने और सुनने में आता है की कुछ मर्डर मिस्ट्री से भी पर्दा उठा है जिसमें बच्चे को अपने पुनर्जन्म के बारे में याद आता है और वो अपने इस जन्म के माँ बाप को बार बार ऐसी जगह का नाम लेकर उस जगह पर चलने को कहता है जहाँ कभी वो या उसके माँ बाप में से कोई गया ही नहीं होता है। बच्चे के बार बार ऐसा कहने पर जब माँ बाप उस बच्चे को उस जगह पर ले जाते हैं और वो उस जगह से जुड़ी अपने पिछले जन्म की यादों को ताज़ा करता है और अपने पिछले जन्म के परिवार वालों को पहचान लेता है तो उसके बाद उसे ये भी याद आ जाता है की पिछले जन्म में वो कैसे मरा था। उसकी मौत दुर्घटना में हुई थी या उसे किसी ने मारा था। अगर मारा था तो वो कौन था और इस तरह से किसी मर्डर केस की गुत्थी सुलझ जाती है और अपराधी पकड़ा जाता है।
लेकिन ये पुनर्जन्म के कारण होता है इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है या ये भी हो सकता है किसी के दिमाग में किसी तरह से किसी और की भावनाएँ ,यादें इत्यादि हावी हो जाती होंगी जिससे की वो उस इंसान की तरह सोच और समझ सकता हो और सब कुछ जान या महसूस कर सकता हो जो वो इंसान जानता था और सोचता था। इसको और समझने के लिए आप भूलभुलैया नाम की एक हिंदी फिल्म भी देख सकते हैं जिसमें मुख्य नायिका शादी करके जब अपने पति के साथ पहली बार उसके पुराने ज़माने के महल आती है और सबके मना करने के बावजूद भी वो उस महल के अंदर चली जाती है जहाँ के बारे में ये कहा जाता है की उस महल में किसी मंजुलिका नाम की स्त्री की आत्मा भटकती है जो किसी ज़माने में नर्तकी हुआ करती थी। जब नायिका को मंजुलिका के बारे में सुनने को मिलता है और वो उसके बारे में और उत्सुक हो जाती है जानने के लिए, तो वो उस महल में जाती है छानबीन करती है और उसके बारे में पढ़ती है। उसके बाद वो मंजुलिका की तरह व्यवहार करने लगती है। जैसे की नायिका का बंगाल या बंगाली भाषा से कुछ भी लेना देना नहीं होता है लेकिन जब वो मंजुलिका के बारे में जान जाती है और जब जब मंजुलिका उसपर हावी होती है तब तब वो बंगाली बोलने लग जाती है। फिल्म के अंत में ये पता चलता है की नायिका अपने पहले के कड़वे अनुभवों के कारण और मानसिक दुःख के कारण मंजुलिका के दुःख को अपना दुःख समझने लगती है और धीरे धीरे वो अपने अंदर मंजुलिका को पूरी तरह अपना लेती है। इसमें आत्मा का कोई अस्तित्व नजर नहीं आता है। हाँ ये बात जरूर सामने आती है की मानो तो ये कोई मानसिक स्थिति है और मानो तो कोई आत्मा है जो हावी हो जाती है।
आत्मा का पुनर्जन्म और जन्म की प्रक्रिया - लेकिन इसके साथ ये भी सोचना पड़ेगा की कोई भी जीव नए जीव को जन्म कैसे देता है। इसके लिए किसी भी जीव को जिस प्रक्रिया से गुजरना होता है उसमें आत्मा का कोई अस्तित्व नजर नहीं आता है। अगर जन्म की प्रक्रिया के बारे में समझा जाये खासकर जन्म के शुरुवात समय में यानी की गर्भ धारण करने में तो ये बात सामने आती है की कैसे गर्भ में जीव पहले तरल पदार्थ में आता है फिर धीरे धीरे उसमें बदलाव होते हैं और वो विकास करता है और ये सब बिना किसी गलती के अपने आप होता रहता है और जब गर्भ में उसका उचित विकास हो जाता है तो कैसे वो इस दुनिया में आता है। जन्म की इस प्रक्रिया पर गौर करने के बाद ये समझ में नहीं आता की इन सारी प्रक्रियाओं में आत्मा कहाँ है। कैसे कोई आत्मा पहला शरीर छोड़कर दूसरे शरीर में आती है। और अगर आत्मा को पहला शरीर छोड़कर दूसरे शरीर में ही आना है तो इसमें जन्म के प्रक्रिया की क्या जरूरत है जिसमें नर और मादा एक दूसरे के करीब आते हैं और अपने जैसे ही नए जीव को जन्म देते हैं।
क्या कभी आपने ऐसा महसूस किया है की आपका कोई दोस्त ,रिश्तेदार जिसकी असमय मृत्यु हो गयी हो ,उसका फिर से पुनर्जन्म हुआ हो और उसने आपको और अन्य लोगों को पहचान लिया हो और वापस आने का कारण बताये। क्या ऐसा आपको लगता है की ये सही में होने वाला है या हो सकता है।
ये बात भी गौर करने लायक है की हमें पुनर्जन्म के किस्से अकसर उन लोगों के बारे में ही सुनने को मिलता है जिनको हम नहीं जानते हैं। अगर कोई हमें इस तरह के किस्से सुनाता है तो वो अकसर किसी ऐसे आदमी के बारे में होता है जो उसका अपना रिश्तेदार नहीं होता है ,वो या तो उसका पड़ोसी होता जो अब उसके पड़ोस में नहीं रहता या फिर उसने भी किसी से ये किस्सा सुना होता है और आपको सुना रहा होता है।
पुनर्जन्म ,परिवर्तन और नयापन - हमारे जीवन में पुनर्जन्म का एक मतलब ये भी होता है की हम परिवर्तन या बदलाव को समझें और अपने जीवन में नवीनीकरण यानी नयापन को लाएं। यह कई तरह से हो सकता है जैसे की व्यक्तिगत जागृति, सामाजिक पुनरुत्थान या प्राकृतिक घटना के रूप में अनुभव किया जाए। इस नज़रिये से देखा जाये तो पुनर्जन्म हमें ये सन्देश देता है की हम अपने जीवन में परिवर्तन को स्वीकार करें और अपनाएं , आत्म खोज करें यानी की खुद के बारे में जाने और समझें और अपने जीवन में लगातार विकास करते रहें।
और यह लगभग हर चीज़ में होता है जैसे की अपने जीवन में आने वाली चुनौतियों पर काबू करना यानी की सभी के जीवन में कुछ ना कुछ तो ऐसी समस्याएँ रहती ही हैं जो उन्हें जीवन को सफल बनाने में या कोई भी काम को करने में बाधा होती हैं और चुनौती होती है की इस बाधा या समस्या का क्या कारण है और ऐसा क्या उपाय करें की बाधा खत्म हो जाये और हम काम को अच्छे से कर सकें और अपना लक्ष्य हासिल कर सकें।
आत्म खोज करना यानी की खुद के बारे में जानना की आपको क्या करना अच्छा लगता है , आपको क्या अच्छा करने का जुनून है ,आपका महत्व क्या है ,जिस चीज़ में आपकी रुचि है और करने का जुनून है वो ध्यान में रखते हुए आपके जीवन का क्या लक्ष्य है या होना चाहिए।
फिर से स्वस्थ होना या उबरना (उपचार) और क्षमा करना -ऐसा माना जाता है की अगर हमें आंतरिक शांति चाहिए ,स्वीकृति चाहिए यानी की हम आज के माहौल में ढल जाएँ , हमारे अंदर करुणा विकसित हो तो इसके लिए हमें अपने पुराने दुःखों को भूलना होगा, अगर बीते समय में किसी से कोई शिकायत हो तो उसे भी माफ़ करना होगा और भूलना होगा, अगर बीते समय में हमसे कुछ ऐसा हो गया हो जिसको याद करने से हमें पछतावा होता हो और बुरा लगता हो की हमें ऐसा नहीं करना चाहिए था तो हमें इससे भी उबरना होगा व भूलना होगा और आज में जीना होगा।
पुनर्खोज यानी की फिर से शुरुवात करना -हमारे जीवन में अकसर परिवर्तन होते रहते हैं जैसे की ये हमेशा से कहा भी जाता है की परिवर्तन या बदलाव इस दुनिया का नियम है और ये होता ही रहता है। इसी बदलाव के कारण हमारे हालात बदलते रहते हैं। हमारी जरूरतें बदलती रहती हैं। कभी ये बदलाव हमारे लिए अच्छा और फायदे वाला होता है तो कभी ऐसा भी होता है की बदलाव हमारे पसंद के अनुसार ना हो और काफी बुरा और नुकसानदायक हो। हमें बदलाव के अनुसार ढलना आना चाहिए उसे मन से स्वीकार करते हुए।
अगर बदलाव से हमारे लिए कुछ अच्छा हुआ है तो भी और अच्छा नहीं हुआ है तो भी हमें बदलाव के अनुसार फिर से शुरुवात करना चाहिए। मान लीजिये आपके आगे कुछ ऐसे हालात हो गए जिससे आपके द्वारा पहले किये हुए काम का आज के समय में कोई महत्व ना रह गया हो तो ऐसे में आपको ये मन से स्वीकार करना चाहिए की अब आज के बदलाव के अनुसार अगला कदम उठाना चाहिए और जरूरत पड़े तो हिम्मत, सब्र और समझदारी से फिर से शुरुवात करना चाहिए।
कभी कभी ऐसा भी होता है की हमारे अंदर जो हुनर होता है उसके अनुसार काम करने के लिए हमें अपने मूल निवास और अपनों से दूर जाने की भी जरूरत पड़ती है यानी की अपने आराम क्षेत्र से बाहर जाने की जरूरत पड़ती है। ऐसे में हमें आराम क्षेत्र से बाहर जाने की जरूरत को स्वीकार करते हुए नया शुरुवात करना चाहिए।
लेकिन इसका मतलब ये भी नहीं है की रोजगार की मजबूरी और ये सोच कर की दुनिया पैसे के लिए बाहर जा रही है व पलायन कर रही है तो हमें भी अंधाधुन पलायन करना चाहिए। इसके बजाय हमें अपने हुनर ,सामने के हालात ,जरूरत इत्यादि को ध्यान में रखते हुए तय करना चाहिए। अगर इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए अगर हम अपने कम्फर्ट जोन यानी आराम क्षेत्र में काम और रोजगार कर सकते हैं तो ये उतना ही अच्छा है जितना की बाहर निकल कर रोजगार करना या पैसे कमाना।
आध्यात्मिक जागृति - जब आप चेतना की गहरी परतों से जुड़ने लगते हैं। आप अहंकार ,क्रोध इत्यादि से ऊपर उठने लगते हैं या भी कहा जा सकता है की आप अहंकार ,क्रोध जैसे भावनाओं को समझने लगते हैं और इन पर काबू रखने लगते हैं। अध्यात्म से जुड़ी हर बात को आप गहराई से समझने लगते हैं और अनुभव करने लगते हैं तो ये भी एक तरह से पुनर्जन्म ही होता है।
अभी तक हमने जो जाना वो व्यक्तिगत पुनर्जन्म के बारे में था। अब हम समझते हैं सामाजिक पुनर्जन्म के बारे में।
सामाजिक पुनर्जन्म - इस तरह का पुनर्जन्म बहुत बड़े पैमाने पर होता है और समाज में परिवर्तन लाता है। सामाजिक पुनर्जन्म एक सामूहिक जागृति होती है जो प्रचलित मानदंडों, विचारधाराओं और प्रणालियों को चुनौती देती है यह अकसर सामाजिक अन्याय, राजनीतिक उथल-पुथल या सांस्कृतिक बदलावों के जवाब में होता है। इसका उद्देश्य समानता, न्याय और प्रगति के लिए आंदोलनों को बढ़ावा देना होता है।
हम सामाजिक पुनर्जन्म को कुछ उदाहरणों से भी समझ सकते हैं -
नागरिक अधिकार आंदोलन: यानी की वो आंदोलन जो नागरिक अपने अधिकारों के लिए करते हैं। यह आंदोलन नस्लीय समानता, लैंगिक समानता और मानवाधिकारों के लिए संघर्ष के लिए होता है। इसमें प्रणाली गत भेदभाव और उत्पीड़न को चुनौती दिया जाता है।
लोकतांत्रिक क्रांतियाँ: ये वो क्रांतियाँ होती हैं जो सत्ता वादी शासन को उखाड़ फेंकने और लोकतांत्रिक शासन स्थापित करने का प्रयास करती हैं।
पर्यावरण सक्रियता: इसमें लोगों को जागरूक किया जाता है और एक तरह से निवेदन भी किया जाता है ताकि लोग समझें और ऐसे कदम उठायें जिससे की पारिस्थितिक संकटों को दूर करने ,जलवायु परिवर्तन को कम करने ,पर्यावरण का संरक्षण और सही तरह से प्रबंधन करने में मदद मिल सके।
तकनीकी उन्नति: विज्ञान के क्षेत्र में ,प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में और संचार के क्षेत्र में कुछ नया होना या ऐसी खोज होना जो उद्योगों, अर्थव्यवस्थाओं और सामाजिक अंतःक्रियाओं में फायदेमंद हों।
सांस्कृतिक पुनर्जागरण: कला के क्षेत्र में ,साहित्य के क्षेत्र में और बौद्धिकता के क्षेत्र में रचनात्मकता को बढ़ावा देना जिससे की सांस्कृतिक पहचान और आख्यानों को बढ़ावा मिले और ऐसी सांस्कृतिक पहचान को भी बढ़ावा मिले जो समय के साथ भुलाई जा चुकी हों।
अब समझते हैं पुनर्जन्म को कैसे पाया जा सकता है या अपनाया जा सकता है कुछ बातों को ध्यान में रखकर -
पुनर्जन्म को अपनाने के लिए साहस, लचीलापन और बदलाव के लिए खुलापन की आवश्यकता होती है यानी हमें खुलकर सोचने वाली मानसिकता की जरूरत होती है। इसमें अतीत से जुड़ाव को छोड़ना होता है जिससे की हम आज में खुलकर जी सकें और सक्रिय होकर अपना काम सही से कर सकें। क्योंकि कई लोगों के साथ ऐसा भी होता है की वो अपने जीवन के गुजरे हुए पलों को इतना याद करते हैं और उसमें ही खोये रहते हैं की उन्हें ये एहसास नहीं होता की वर्तमान यानी आज का जो समय गुजर रहा है वो भी कभी वापस नहीं आने वाला। वो ये नहीं समझ पाते की माना की गुजरा हुआ पल जो आज की तुलना में बहुत अच्छा रहा होगा लेकिन फिर भी आज में कुछ तो अच्छा हो ही रहा है जिसको लेकर हमें आगे चलना है और अपना जीवन बेहतर बनाना है।
कुछ ऐसा ही मेरे साथ भी हो चूका है। उन दिनों मैं कालेज का विद्यार्थी था और अपने स्कूल के दिनों को बहुत याद करता था। स्कूल के दिनों के आगे मुझे कालेज के दिन कभी पसंद नहीं आये। ऐसा लगता था की जिंदगी मुझे कहाँ से कहाँ ले आयी। स्कूल के दिन कितने अच्छे थे। काश वो दिन वापस आ जाते। कुछ ऐसे ही मैंने कालेज के दिन गुजार दिए लेकिन आज जब इतने समय बाद उस समय के बारे में सोचता हूँ तो लगता है की आखिर जिन दिनों को याद करते मैंने वो दिन ऐसे ही गुजार दिए। आखिर जिन दिनों को मैं इतना याद करता था वो दिन तो कभी दुबारा आये ही नहीं। इससे अच्छा तो उन दिनों को भी मैं अच्छे से जी लेता और अपनी सुनहरी यादों में बसा लेता। आज मुझे ये भी एहसास होता है कालेज के दिनों के बारे में सोचकर की उस समय भी मेरे जीवन में अच्छे दोस्त थे और अच्छे लोग थे जो अब मेरे संपर्क में नहीं हैं क्योंकि मैंने किसी से ज्यादा संपर्क बनाया ही नहीं सिर्फ पुराने दिनों में खोये रहने के कारण और ज्यादातर अकेले रहने की आदत की वजह से। कहने का मतलब यही है की हमें अपने अतीत से इतना भी नहीं जुड़ना चाहिए की हम अपने आज में जीना ही भूल जाएँ।
हमें ये मान कर जीवन में आगे बढ़ना है की आगे कुछ भी हो सकता है यानी की आगे कुछ भी एकदम से निश्चित नहीं है हमें अनिश्चितता को स्वीकार करना चाहिए। हमें जीवन में परिवर्तन के अनुसार ढलना चाहिए और नयापन (अच्छाई को ध्यान रखते हुए ) को अपनाना चाहिए।
पुरानी मान्यताओं, आदतों और पहचानो को छोड़ दें जो अब हमारे विकास में सहायक नहीं हैं। ऐसी मान्यताओं, आदतों और पहचानो को अहम से ना जोड़ें और बहस या झगड़े का मुद्दा ना बनायें लेकिन अच्छा बुरा का विचार करते हुए।
जिंदगी में जब चुनौतियाँ आएं ,बार बार असफलता मिले तो ऐसे में हमें सब्र रखते हुए अपनी असफलता से कुछ अच्छा सीखना है। चुनौतियों को शांति से और शालीनता से समझना है और उसका हल निकालना है।
जितना हो सके लोगों से अच्छे संपर्क और सम्बन्ध बनायें जिससे की आपको आपके लक्ष्य को हासिल करने और चुनौतिओं का सामना करने में उचित मदद मिल सके।
हमारे आसपास कई तरह के लोग रहते हैं जिनकी भाषा ,पहनावा ,खान पान भगवान को मानने का तरीका इत्यादि अलग अलग होता है अगर एक शब्द में कहा जाये तो वो है विविधता। यानी की हमारे आसपास बहुत ही विविधता है और हमें विविधता का सम्मान करना चाहिए। ऐसा नहीं होना चाहिए की हमारा जो नजरिया है और तरीका है वो सही है और दूसरों का गलत है बल्कि हमें सबके नजरिये और तरीके का सम्मान करते हुए सबकी खुशी में खुशी से शामिल होने का प्रयत्न करना चाहिए। और कुछ ना हो तो ना सही लेकिन हमें अपने आसपास की विविधता का सम्मान करते हुए कुछ भी ऐसा बोलने या करने से बचना चाहिए जिससे की विविधता में एकता को खतरा हो और वो फिजूल के विवाद का कारण बने।
कुल मिलाकर इस आधार पर यह कहा जा सकता है की पुनर्जन्म केवल एक अवधारणा नहीं है बल्कि हमारे जीवन और समाज में परिवर्तन और विकास को अपनाने का एक माध्यम है। इससे हमें संदेश मिलता है की हर अंत के बाद एक नयी शुरुवात होती है। जीवन में होने वाले किसी भी असफलता और चुनौती से हमें मौका मिलता है कुछ नया जानने और समझने का और इससे हमारे लिए विकास के नए मौके भी मिलते हैं। पुनर्जन्म की यात्रा को साहस, करुणा और खुले दिल से अपनाकर, हम अपनी वास्तविक क्षमता को उजागर कर सकते हैं और सभी के लिए अधिक सद्भाव, लचीलापन और समृद्धि का विश्व बना सकते हैं।
पुनर्जन्म पर आधारित बॉलीवुड फिल्में देखें
References -
https://www.youtube.com/watch?v=1sxA2xHHStg
https://www.reincarnationresearch.com/
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%AE#:~:text=%E0%A4%B6%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%B0%20%E0%A4%95%E0%A5%87%20%E0%A4%AE%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%81%20%E0%A4%95%E0%A5%87%20%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A6,%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%AE%20%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A3%20%E0%A4%95%E0%A4%B0%20%E0%A4%B8%E0%A4%95%E0%A4%A4%E0%A4%BE%20%E0%A4%B9%E0%A5%88%E0%A5%A4
https://www.vocabulary.com/dictionary/rebirth#:~:text=A%20rebirth%20can%20be%20a,dancing%20in%20the%2021st%20century.
https://www.youtube.com/watch?v=NA2tQbdiMi8&list=WL&index=4
https://en.wikipedia.org/wiki/Reincarnation
https://www.youtube.com/watch?v=Sx_v8yNFZro&list=PLfRa1a1QKXyxflPyZYB2MvbYGEUtsyVea
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