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परिवार -हम उड़ रहे हैं या बिखर रहे हैं

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गर्मी बहुत हो रही थी इसलिए शाम होते ही मैं अपने बेटे को लेकर छत पर चला गया। छत पर जाने के बाद बेटा छत पर इधर उधर खेलने लगा और मैं टहलने लगा और इधर उधर देखने लगा। मेरी नजर उड़ते हुए पंछियों के झुण्ड पर पड़ी जो की शाम ढलने के बाद अपने ठिकानों की ओर लौट रहे थे। हालाँकि अब पहले की तरह पंछियों के ज्यादा झुण्ड नहीं दिखते हैं लेकिन फिर भी थोड़े बहुत तो दिख ही जाते हैं। 

परिवार -हम उड़ रहे हैं या बिखर रहे हैं
पंछियों का झुंड 

मैंने अपने बेटे को पास बुलाया और उन पंछियों की तरफ इशारा करते हुए कहा की वो देखो पंछियों का झुण्ड वो अपने घरों की तरफ जा रहे हैं उड़ते हुए। बेटे ने कहा की हाँ मुझे पता है की वो पंछी हैं और वो ऐसे ही उड़ते हुए जाते हैं। मैंने कहा "हाँ ,लेकिन आपको पता है की वो ऐसे ही एक साथ क्यों उड़ते हैं और वो उड़ते हुए अलग आकार क्यों बनाते हैं ?"क्योंकि इस तरह से वो हवा काटते हुए आसानी से उड़ सकते हैं। एक अकेला पंछी इतनी आसानी से हवा को काटते हुए बहुत दूर तक नहीं उड़ सकता है। अगर हवा बहुत तेज़ चल गयी तो एक अकेले पंछी का आगे की ओर उड़ना बहुत ही ज्यादा मुश्किल हो जायेगा। इसलिए वो इस तरह से एक साथ उड़ते हैं और अपने घरों की तरफ लौट जाते हैं और सुबह होते ही ऐसे ही एक साथ अपने दाना पानी के लिए फिर से निकलते हैं।

ये बात कहते हुए मेरी ऊँगली उन उड़ते हुए पंछियो की तरफ थी। मुझे कुछ खटका। मैं वैसे ही उन पंछिओं की तरफ ऊँगली दिखाते हुए थोड़ी देर रुका रहा। उसके बाद मैंने अपने बेटे को खेलने के लिए कहा। बेटा खेलने में मगन हो गया और मैं एक कोने में खड़ा होकर उन उड़ते हुए चिड़ियों के झुण्ड को देखता रहा जो की अब उड़ते हुए काफी दूर निकल चुके थे और आँखों से ओझल हो रहे थे। मैं सोच रहा था की ये जो बात मैंने अपने बेटे को उन चिड़ियों के झुण्ड के बारे में बताया वो सिर्फ चिड़ियों के झुण्ड तक की बात नहीं है। इस बात में मेरे लिए और आप सभी के लिए जीवन का एक जरूरी रहस्य कह लीजिए या सन्देश कह लीजिये छुपा हुआ है। 

परिवार -हम उड़ रहे हैं या बिखर रहे हैं


एहसास होना

वो पंछी साथ में उड़ रहे थे। एक दूसरे का सहयोग कर रहे थे जिससे की उनका सफर आसानी से कट रहा था। क्या ऐसा ही कुछ हमारे साथ नहीं होता है जब हम इंसान जिंदगी के सफर में एक दूसरे की मदद करते रहें किसी भी काम में चाहे वो कोई भी काम हो चाहे वो पैसे से सम्बंधित हो ,नौकरी से सम्बंधित हो , या किसी भी तरह की समस्या हो जब सभी एक दूसरे की अच्छी भावना से मदद करने लग जाएँ तो क्या हम इंसानो की जिंदगी का सफर आसानी से और खुशी से नहीं कट सकता है। 

याद कीजिये अपनी जिंदगी का वो समय जब आप युवा होते हैं आपके बहुत सारे हम उम्र दोस्त होते हैं। आप खुल कर एक दूसरे से बातें करते हैं। टिफिन का खाना खाने से लेकर ,कोई खेल का सामान इकट्ढा करने में एक दूसरे का बराबर सहयोग करना इत्यादि करते हैं। कभी कभी कुछ बातों को लेकर थोड़ा बहुत झगड़े भी होते होंगे और कुछ देर में सब भूलकर फिर से दोस्त भी बन जाते होंगे। अगर कुछ नहीं भी करते होंगे तो भी जब सभी दोस्तों का झुण्ड यूँ ही एक साथ बैठते होंगे और इधर उधर की बातें करते होंगे ,एक दूसरे की थोड़ी बहुत खिंचाई करते होंगे या फिर मजाक उड़ाते होंगे तो वो समय कितना अच्छा गुजरा होगा। वो समय इतना अच्छा गुजरा होगा की उस समय को याद करके आप आज भी बहुत अच्छा महसूस करते होंगे। कई लोग तो ये भी सोचते होंगे अपने उस समय को याद करके की काश वो समय वापस लौट आता 

हालाँकि एक लड़का होने के नाते मैं ये बातें लड़कों के नजरिये से कह रहा हूँ। लेकिन लड़कियों का नजरिया भी कुछ ऐसा ही होगा उन्हें भी तो अपने वो पल याद आते ही होंगे। लेकिन समझने वाली बात ये है की हमे वो समय क्यों याद आते हैं और वो समय इतने अच्छे और सुनहरे क्यों गुजरे, हम आज वैसा क्यों नहीं महसूस कर पाते और वैसे ही क्यों नहीं एक दूसरे के साथ खुशी से जीवन बिता सकते हैं।  क्योंकि एक तो वो उम्र भी वैसी ही होती है जब हर चीज़ अच्छी लगती है और अस्सी और नब्बे के दसक के बचपन की बात ही कुछ और थी। 

और एक चीज़ जो हम चाहें व कोशिश करें तो आज भी हो सकती है। तब हमारे अंदर हमारा अहम् हावी नहीं हुआ था अगर आज भी हम अपने अहम् को अपने ऊपर हावी ना होने दें और सबके लिए वही समानता का नजरिया अपना लें जो उस समय होता था। दोस्त हमारे लिए सिर्फ दोस्त ही होता था। हमें उसके साथ बात करना अच्छा लगता था ,खेलना अच्छा लगता था ,खाना खाना अच्छा लगता था ,पढ़ाई में और स्कूल के कामों में ,घर के कामों में जरुरत पड़ने पर एक दूसरे की मदद करना अच्छा लगता था। हमें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था की उसकी आर्थिक स्तिथि क्या थी ,वो कहाँ का रहने वाला था ,वो कौन सी भाषा बोलता था ,उसका मजहब क्या था ,उसके समुदाय का इतिहास क्या था वगैरह वगैरह। अगर इन सब मुद्दों पर बात भी होती थी तो एक दूसरे के बारे में इन सब बातों को जानकर काफी अच्छा लगता था और दिलचस्पी भी होती थी एक दूसरे को समझने की लेकिन कभी एक दूसरे के प्रति गलत भावना नहीं आती थी की ये बुरा है या इसके पूर्वजों ने ऐसा किया या वैसा किया ,या हमारे पूर्वज महान थे और इनके पूर्वज बुरे थे इत्यादि इत्यादि  । 

वैसे दोस्ती की भावना और एक दूसरे को सहायता करने की भावना ही हमें साथ लाती है। देखा जाये तो अगर एक दूसरे के प्रति अच्छी नियत और दोस्ती की भावना ना हो तो सगे रिश्ते नाते भी सिर्फ नाम के ही रह जाते हैं चाहे वो सगे भाइयों का रिश्ता हो या किसी भी तरह का रिश्ता हो।  

अगर मैं अपने परिवार की बात करूँ तो भले ही हम पहले बहुत पैसे वाले नहीं थे लेकिन सब एक साथ मिलकर रहते थे और अपने पन के साथ रहते थे जिसके कारण हम सबमें जुड़ाव था और एक तरह से सभी सुरक्षित महसूस करते थे।

हालाँकि सब कुछ ठीकठाक होने के बावजूद भी धीरे धीरे सब कुछ बिखरता चला गया और इसकी शुरुवात मेरे परिवार में उस पीढ़ी ने किया जो ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थी और ज्यादातर लोग तो अनपढ़ ही थे लेकिन उनमें से ज्यादातर या सभी लोगों को गांव से बाहर निकलते ही सरकारी नौकरियां मिल गयी और वो जीवन में आगे बढ़ते गए हर तरह से पैसे से ,जमीन जायदाद से हर तरह से। उन्होंने अपनी अगली पीढ़ी को पढ़ाया और अपने से बेहतर बनाने की कोशिश की जो की वाकई कबीले तारीफ है। 

लेकिन साथ में बढ़ती गयी उनकी नासमझी ,लोगों को दबाने की मानसिकता ,उनका ज़िद की जो वो समझते हैं वही सही है उनके आगे की पीढ़ी या कोई और उनके आगे सही नहीं हो सकता है। नैतिक शिक्षा की कमी होने के कारण किसी के बारे में जोश में आकर कुछ भी बोल देना ,चुगलियां करना बात बिगड़ जाने पर कुछ समय के लिए शांत बैठ जाना लेकिन सबक समझने के बजाय कुछ समय बाद फिर से वही सब शुरू करना। इसके अलावा बढ़ते धन सम्पति का अहंकार ने इन सब बुराइयों के लिए आग में घी डालने का काम कर दिया। 

हालाँकि वो पीढ़ी अब बुजुर्ग हो चुकी है और कुछ लोग तो इस दुनिया को अलविदा भी कह चुके हैं। लेकिन इस पीढ़ी ने जिस पीढ़ी को शिक्षित किया और अपने से बेहतर बनाने की कोशिश किया उसी पीढ़ी में जिद, अलगाववाद ,नफरत, स्वार्थ  के बीज भी बो दिए हैं जो की काफी फल फूल भी गए हैं। ये पढ़ी लिखी पीढ़ी यानी की मुझसे पहले की पीढ़ी भी कुछ कम नहीं है ये पढ़े लिखे लोग बहुत पहले ही ये एहसास कर चुके थे की क्या गलत है और क्या सही है लेकिन इन लोगों ने स्थिति को सुधारने की बजाय अपना स्वार्थ साधना ही ठीक समझा और बुराइयों को खत्म करने की कोशिश करने के बजाय चुपचाप बढ़ावा देते रहे।

ये कहना भी गलत नहीं होगा की एक वो पीढ़ी थी जो अनपढ़ गंवार थी और एक मेरे से पहले की पीढ़ी है जो की पढ़ी लिखी लेकिन गंवार है क्योंकि इस पढ़ी लिखी पीढ़ी के पास अगर बैठ कर कुछ बात करना चाहो तो ये सामने वाले की बात कम समझेंगे और अपनी ज्यादा सुनाने में लगेंगे। वो भी हाल चाल या सुख दुःख की बात नहीं करेंगे अपनी हैसियत दिखाएंगे बिना पूछे चीज़ों की कीमत बताने लग जायेंगे। और एक दूसरे से ईर्ष्या और नफरत तो चलती ही रहती है। एक मेरी पीढ़ी जो की असमंजस में है की क्या करना चाहिए। जो हो रहा है होते रहना चाहिए या कुछ उपाय करना चाहिए ,अगर उपाय करें तो क्या करें। कुछ लोग जो बहुत अच्छी पगार पर जी रहे हैं वो अपनी ही दुनिया में मस्त हैं और एक तरह से संपर्क तोड़ चुके हैं सिर्फ कहने को ही उनके कांटेक्ट नंबर मोबाइलों में सेव हैं। 

परिवार -हम उड़ रहे हैं या बिखर रहे हैं
उदासी 

अगर कुल मिलाकर देखा जाये तो जो बहुत ज्यादा कामयाब हैं वो अपने से कम कामयाब लोगों के यहाँ जाना या बैठना पसंद नहीं करते हैं और जो बिलकुल कामयाब नहीं हुए हैं वो कामयाबी वालो के प्रति ईर्ष्या की भावना रखते हैं और मेरे जैसे लोग भी हैं जो ना तो बहुत कामयाब हैं और ना ही नाकामयाब हैं किसी तरह से अपनी रोजी रोटी चला रहे हैं और असमंजस में है अपनी रोजी रोटी को लेकर और उन हालातों को लेकर भी की क्या उपाय हो सकता है। लगता तो यही है की सब कुछ समय के ऊपर छोड़ देना चाहिए और अपने तरफ से कुछ गलत नहीं करना चाहिए। लेकिन सच तो यही है की हम उन पंछियों की तरह एक साथ नहीं बल्कि अलग अलग उड़ रहे हैं और हवा के झोंके धीरे धीरे ही सही सबको अंदर ही अंदर कमजोर करते जा रहे हैं और उड़ने की रफ़्तार भी कम होती जा रही है बस अंदर का अहंकार, जिद और ईर्ष्या की भावना ये एहसास ही नहीं होने दे रही है की हम उड़ नहीं रहे हैं बल्कि बिखर रहे हैं। 

वैसे ये सिर्फ एक परिवार के बारे में ही नहीं है बल्कि हमारे देश में भी यही हो रहा है इस देश का नागरिक पढ़ा लिखा हो या अनपढ़ हो ,अमीर हो या गरीब हो या किसी भी समस्या में हो वो राजनीतिक पार्टिओं के नाम पर, मजहब के नाम पर , किसी समुदाय के नाम पर ,इतिहास के नाम पर बिखर रहा है और ये किया भी जा रहा है बड़े तरीके से और बेशर्मी से ताकि लोग सही समस्या की तरफ ध्यान ही ना दे पाएं और ऐसे ही उलझे रहें। लेकिन अगर आम लोगों को सच में आगे बढ़ना है तो उन पंछियों की तरह एक साथ उड़ना होगा ताकि आने वाली समस्यायों को सफलता से निपटाया जा सके। 

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