Skip to main content

व्यवहारिक जीवन और शिक्षा

सुनें 👇

एक दिन दोपहर को अपने काम से थोड़ा ब्रेक लेकर जब मैं अपनी छत की गैलरी में टहल रहा था और धुप सेंक रहा था। अब क्या है की उस दिन ठंडी ज्यादा महसूस हो रही थी। तभी मेरी नज़र आसमान में उड़ती दो पतंगों पर पड़ी। उन पतंगों को देखकर अच्छा लग रहा था। उन पतंगों को देखकर मैं सोच रहा था ,कभी मैं भी जब बच्चा था और गांव में था तो मैं पतंग उड़ाने का शौकीन था। मैंने बहुत पतंगे उड़ाई हैं कभी खरीदकर तो कभी अख़बार से बनाकर। पता नहीं अब वैसे पतंग  उड़ा पाऊँगा की नहीं।

व्यवहारिक जीवन और शिक्षा
गैलरी में खड़ा होना  

पतंगों को उड़ते देखते हुए यही सब सोच रहा था। तभी मेरे किराये में रहने वाली एक महिला आयी हाथ में कुछ लेकर कपडे से ढके हुए और मम्मी के बारे में पूछा तो मैंने बताया नीचे होंगी रसोई में। वो नीचे चली गयी और मैं फिर से उन पतंगों की तरफ देखने लगा।

मैंने देखा एक पतंग कट गयी और हवा में आज़ाद कहीं गिरने लगी। अगर अभी मैं बच्चा होता तो वो पतंग लूटने के लिए दौड़ पड़ता। उस कटी हुई पतंग को गिरते हुए देखते हुए मुझे अपने बचपन की वो शाम याद आ गई।

व्यवहारिक जीवन और शिक्षा
हाथ में पतंग 

मैं अपने गांव के घर के दो तले पर से पतंग उड़ा रहा था वो भी सिलाई वाली रील से। मैंने पूरी रील छोड़ दिया था और पतंग काफी ऊपर उड़ रही थी। इतनी ऊपर उड़ रही थी की वो बड़ी पतंग भी छोटी दिख रही थी।

पतंग उड़ाते उड़ाते अचानक मेरे हाथ से रील छूट गया और हवा में उड़ने लगा। मैं डर गया और दुखी भी हुआ की अब तो पतंग गयी। मैं पतंग और रील को हवा में दूर जाते हुए देख रहा था। मैं देख रहा था पतंग की रील दूसरे छत पर जहाँ गेहूँ पसारा हुआ था को छूते हुए दूर जा रही थी। ऐसे ही जाते जाते वो रील छत के बाजु में एक पेड़ की डाल में अटक गयी और पतंग हवा में उड़ती रही । 

वह पेड़ बिलकुल उस छत के बाजु में था और उसकी कुछ डालियाँ छत से लगी हुई थी। मैं जो की थोड़ी देर पहले सोच रहा था की अब तो पतंग गयी। ऐसा देखकर मेरी जान में जान आयी और खुशी भी हुई। मैं पतंग लेने के लिए जल्दी जल्दी नीचे उतरने लगा। 

उस छत से उतरने के लिए आज भी कोई सीढ़ी नहीं है। बाजु के निकली हुई ईटों के सहारे ही उतरना और चढ़ना पड़ता है। और बच्चा होते हुए भी मेरे और मेरे भाई बहनों के लिए वो साधारण सी बात थी। जल्दी नीचे उतरने के चक्कर में मेरा पैर ईंटों पर पड़ने के बजाय साइड में पड़ गया और मैं झूल गया। मेरी मम्मी ने मुझे आँगन से देख लिया और ये देखकर वो डर गयी और बोलने लगी- "हे भगवान ! ये लड़का  गिरेगा क्या ! आज से दो तले पर मत जाना !

मैंने फिर से इंटों पर पैर रखा और जल्दी जल्दी लेकिन थोड़ा संभलते हुए उतर कर जल्दी से दूसरे दो तले की तरफ भागा जो की दूसरे आँगन के बाद था। वहां भी ईंटों ,एक पुरानी खिड़की और एक दिवार के सहारे ही उस दो तले पर चढ़ना था। मैं जल्दी से भागकर उस दो तले पर चढ़ा। पतंग उस डाली के सहारे अभी भी हवा में उड़ रही थी। मैंने सावधानी से डाली से रील निकाला और लपेटने लगा। 

व्यवहारिक जीवन और शिक्षा
दीवार से निकली हुई ईंटें 

अब जब कभी गांव जाता हूँ तो छत पर घूमते हुए एक बार उस कोने की तरफ नज़र जरूर जाती है और याद करता हूँ की एक दिन ऐसा भी हुआ था। 

वो दो तला अभी भी है लेकिन मुझे मेरी पतंग वापस दिलाने वाला वो पेड़ अब नहीं है। अब उसकी जगह कुछ मकानों ने ले लिया है। और वो पतंग तो याद ही नहीं है की बाद में उसका क्या हुआ। खैर, जो भी हो अब न तो वो समय रहा ,न वो बचपन। 

व्यवहारिक जीवन और शिक्षा
वो कोना छत का 

लेकिन जीवन में वो बात भी नहीं है जो तब थी। हर रोज नया था। हर चीज़ में नयापन था। वो पल नयापन ,खुशियों और एडवेंचर से भरे होते थे। जैसे जैसे बड़े होते गए किताबों का ,नंबरों का हमारे जीवन पर प्रभाव पड़ता गया। और आज कहाँ रहना है ,किससे मिलना है ,कहाँ मरना है ,कैसे रहना है। सब पैसा,करियर और स्टेटस पर तय होता है। सही मायने में जीवन जीना या खुशियों से जीवन जीना तो जैसे एक तरह की चुनौती है। 

माना की किताबें , शिक्षा ,पैसा ,करियर ,स्टेटस जरुरी है आज के जीवन में। लेकिन कितना अच्छा हो की ये हमें जीवन को सही से और व्यावहारिक जीवन जीने का मौका दें। व्यावहारिक जीवन जीने में पाबंदी का कारण न बने।

व्यवहारिक जीवन और शिक्षा
पाबंदी 

 ये कहना भी गलत नहीं होगा की किताबी दुनिया ने हमें बचपन से ही असली दुनिया से दूर करना शुरू कर दिया था। 

अगर मैं अपनी बात करूँ तो अच्छे विद्यालय और अच्छी पढ़ाई के लिए बचपन में ही अपना गांव छूट गया साथ ही छूट गए अपने रिश्ते के भाई बहन जो उस समय सगे भाई बहन से भी ज्यादा थे। वो गांव के दोस्त ,वो हर मौसम के अपने अनुभव जैसे बारिश में भीगते हुए विद्यालय से घर जाना ,गर्मी के मौसम में आम के पेड़ पर टिकोरे लगना। उन टिकोरों को देखकर गर्मी के मौसम का एहसास होता था और उस मौसम के लिए एक अलग ही भावना रहती थी। उन टिकोरों से आम निकलने पर उन्हे पेड़ से तोड़कर खाने का अपना ही मज़ा होता था।

व्यवहारिक जीवन और शिक्षा
तोड़ा हुआ आम 

आम तोड़ने के हमारे पास दो ही तरीके होते थे या तो पेड़ पर चढ़ कर आम तोड़ो या तो पत्थर या डंडी से आम तोड़ो। दोनों काम में हम माहिर हो गए थे पेड़ पर या किसी ऊँची जगह पर चढ़ने में और निशाना लगाने में भी। और ये दोनों हुनर मुझे बड़े होकर एन सी सी में काम आये और मैंने ये भी गौर किया की फ़ौज में ऐसे बहुत से काम हैं जिसमें ये हुनर काम आते हैं जैसे किसी ऊँची दिवार पर चढ़ना ,बन्दूक से निशाना लगाना। हालाँकि बन्दुक से निशाना लगाने में और कंकड़ से निशाना लगाने में थोड़ा फर्क होता है।

ऐसा नहीं है की इस तरह के हुनर सिर्फ एक विशेष तरह की नौकरी में ही काम आते हैं ये कभी न कभी हमारे रोज के जीवन में भी काम आ सकते हैं। अपने इस मुद्दे को और सही से समझने के लिए मैं अपने जीवन से सही में घटी एक घटना के बारे में बताना चाहूँगा।

व्यवहारिक जीवन और शिक्षा
व्यावहारिक रूप से सीखें

उन दिनों मैं कॉलेज के साथ साथ एक जगह से कंप्यूटर भी सीख रहा था। उस दिन हम तीन दोस्त कंप्यूटर क्लास के बाहर उस बिल्डिंग के गैलरी में खड़े होकर कुछ बातें कर रहे थे। अचानक मेरे एक दोस्त की चप्पल पैर से निकल कर नीचे दूसरी मंजिल की गैलरी जैसी जगह पर गिर गयी और हम चौथी मंजिल पर थे। दोस्त ने कहा लगता है अब बाहर बिना चप्पल के जाना पड़ेगा और नयी चप्पल खरीदना पड़ेगा। 

व्यवहारिक जीवन और शिक्षा
सावधानी से उतरना 

मैंने कहा घबराने के जरुरत नहीं है मैं अभी ला देता हूँ। मैं तो चढ़ने उतरने में माहिर ही था तो मैं पाइपों के सहारे सावधानी और जल्दी से नीचे उतरा और उसकी चप्पल लाकर उसे वापस दे दिया। उन दिनों हम उत्तर प्रदेश और बिहार से आये हुए लोगों के प्रति वहां के लोगों का नजरिया कुछ ठीक नहीं था या यूं कहूं की एक गलत फहमी थी की वहां के लोग अच्छे नहीं होते।

मेरे इस दोस्त को भी ऐसी ही ग़लतफ़हमी थी। मुझे उसकी ये बात बुरी भी लगी थी लेकिन मुझे ये भी समझ में आ गया था की उसने जैसा सुना है उसी आधार पर मुझसे जानना चाहता है। वो दिल का साफ़ था उसे जैसा लगता था और उसके मन में जो भी था वो तुरंत वैसा ही बोल देता था बिना डरे इसलिए मेरी और उसकी दोस्ती भी अच्छी थी।

व्यवहारिक जीवन और शिक्षा
बिना डरे सही बोलना 

उस दिन के बाद उसका ये नजरिया बदल गया की किसी एक जगह के लोग बुरे होते हैं। उसको उसकी चप्पल लौटते समय उसकी आँखों में मैंने अपने लिए एक एहसान वाली भावना और एक इज़्ज़त महसूस किया। उस दिन मैं उसके लिए किसी सुपर हीरो से कम नहीं था। 

इस तरह से मदद करने की भावना और व्यावहारिक जीवन से सीखे हुए हुनर ने मेरी दोस्ती को और पक्का कर दिया और इंसानियत की भावना को बढ़ावा दे दिया। इस आधार पर मैं ये कह सकता हूँ की गांव में जो मैं व्यवहारिक जीवन जी रहा था उससे जीवन में काम आने वाले बहुत से हुनर सिख रहा था। बस, जरूरत थी सही मार्गदर्शन की।

व्यवहारिक जीवन और शिक्षा
पक्की दोस्ती 

 वैसे ये सवाल के जवाब तो अभी ढूँढना है की क्या अभी भी जिम्मेदारियां निभाते हुए जीवन का आनंद लिया जा सकता है जैसे बचपन में लिया करते थे परेशानियाँ और गलतियाँ होने के बावजूद भी। 

Click for English

Comments

Popular posts from this blog

वो मुझे ही ढूढ़ रही थी

सुनें 👇 यह मेरे कॉलेज के दिनों की एक घटना है जिसमे एक दिन मुझे कॉलेज से घर जाते समय एक लड़की दिखी। जानी पहचानी लगी। फिर याद आया की एक समय स्कूल के दिनों में वो मेरी ही क्लास में थी। तब वह काफी मोटी हुआ करती थी लेकिन अब काफी फिट है और खूबसूरत भी। इसके आगे जो कुछ भी हुआ उससे मुझे ये सबक  मिला की भावनाओं में बहकर किसी के भी सामने और कहीं भी किसी के भी बारे में  कुछ भी नहीं बोल देना चाहिए चाहे वो सच ही क्यों ना हो क्योंकि लोग हर बात को गहराई से समझने के बजाय ज्यादातर गलत मतलब ही निकालते हैं। हमेशा की तरह उस दिन भी मैं कॉलेज से निकला घर जाने की लिए अपने स्कूल के दिनों को याद करते हुए। वैसे तो मैं डायरेक्ट बस ना मिलने पर दूसरे स्टॉप तक पैदल ही जाता था। लेकिन उस दिन मैं ऑटो से जा रहा था। उस दिन आसमान में बदल छाये हुए थे और बारिस होने की भी संभावना थी। उस ऑटो में बैठे हुए अभी कुछ ही दूर पहुंचा होऊंगा की ऑटो वाले ने एक लड़की के सामने ऑटो रोक दिया जो की एक सिग्नल से थोड़ी दूर सड़क के किनारे खड़ी थी। शायद वो लड़की उसकी पहचान की रही होगी। वह ऑटोवाला उसे ऑटो में बैठने के लिए बोल रहा था लेकिन वो...

My first WhatsApp group

Due to not changing according to the changing times in life, due to the confusion and running of today's life, sometimes something happens to us that we are ashamed to remember it and there is a lot of laughter too. A similar incident has happened to me too, remembering which I feel ashamed and also laugh. This incident is from 2017 when I used to work in an office. I have used the same words and styles which we use in our daily routine, due to which some styles of speaking words of Hindi have been used in English translation so that I can make you feel as much as I was feeling. group of two people It was almost half an hour since my office shift started that  afternoon I was discussing something with my new group leader Sagar. Then my old group leader Harish came towards me. And told me- "Rakesh I forbade you to request leave on WhatsApp group. If it is very urgent then message me personally on WhatsApp". Harish who was my old group leader and now may have been shifted t...