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आप इस लेख को पढ़ने के बाद समझेंगे की कैसे मैं एक टिकट के कारण परेशानी में फंस गया। कैसे मैंने उस मुसीबत का सामना किया। जो भी हुआ उससे मुझे कुछ सबक मिला जो की सबके लिए फायदेमंद है।
वो गर्मी के दिन थे। शाम के चार बजे होंगे लेकिन धूप बहुत तेज़ थी। उन दिनों मुझे प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने का बहुत शौक था इसलिए उन दिनों मैं कालेज की सारी क्लासें ख़त्म होने के बाद भी लाइब्रेरी में देर तक रुकता था और अलग अलग किताबें देखता और पढ़ता रहता था।
उस दिन भी मैं सुबह से ही घर से बाहर निकला था और अब शाम हो गयी थी। सोचा अब चलता हूँ बहुत देर हो गयी है। सुबह जल्दी उठने के कारण मुझे नींद भी आ रही थी और घर जाकर शाम को कसरत भी करना था। मैं कॉलेज से पास के बस स्टॉप की तरफ निकल पड़ा। लेकिन उस दिन बस निकल गयी थी शायद। इसलिए मैं वहाँ से लगभग ढाई किलोमीटर दूर दूसरे बस स्टॉप पर गया। थोड़ा इंतज़ार के बाद बस मिल गयी और बैठने के लिए सीट भी मिल गयी। सीट पर बैठते ही मेरी सोने की इच्छा और बढ़ गयी सोचा जब तक मेरा स्टॉप आएगा तब तक थोड़ी झपकी ले लूंगा।
मैंने टिकट के लिए पांच रूपए का सिक्का हाथ में लिया और आँख बंद कर के बैठ गया और सोचा की बस कंडक्टर आएगा तो टिकट ले लूंगा और नहीं आया तो टिकट के पैसे बच जायेंगे। नींद बहुत आ रही थी क्योंकि सुबह से ही मैं घर से बाहर निकला था। गर्मी भी बहुत थी। किताबें भी बहुत पढ़ लिया था। इतनी गर्मी में काफी पैदल चलना पड़ा था बस के लिए। इसलिए मैं पांच रूपए का सिक्का हाथ में लिए हुए और सामने के सीट पर अपना सर टिका कर सो गया। जब आँख खुली तो पता चला मेरा स्टॉप आने वाला है और कंडक्टर ने टिकट के लिए पूछा ही नहीं। मैंने सोचा चलो आज के टिकट के पैसे बच गए।
अपना स्टॉप आने पर मैं नीचे उतरा और देखा की टिकट चेक करने वालों का एक दल टिकट चेक करने के लिए तैयार खड़ा है। उनमें से एक ने मुझसे भी टिकट माँगा मुझे कुछ समझ में नहीं आया और मैंने जेब में हाथ डाला तो एक टिकट मिला और वो टिकट मैं उसको देकर आगे जाने लगा उस आदमी ने पीछे से मुझे आवाज लगाया मैं वापस उस आदमी के पास गया। उस आदमी ने कहा की ये आज की टिकट नहीं है ये पूरानी टिकट है मैंने घबराते हुए कहा की मेरा स्टॉप आ गया है इसलिए मैंने टिकट अंदर ही छोड़ दिया होगा।
उसने कहा अंदर जाओ और जहाँ बैठे थे वहाँ देखो और टिकट लेके आओ मैं अंदर चला गया और सोचने लगा ये मैं कहाँ फँस गया। अंदर टिकट कहाँ मिलने वाली थी वो तो तब मिलती ना जब मैंने टिकट लिया होता। मैं वापस दूसरे दरवाजे से बाहर निकला वो आदमी मुझे दूसरे दरवाजे पर खड़ा मिला जैसे की मैं भाग जाऊंगा लेकिन अगर मुझे भागना होता तो मैं वापस उसके बुलाने पर आता ही नहीं मैं भाग सकता था।
मैंने उसे कहा की टिकट नहीं मिल रही है। उसने प्यार से मुझे कहा की बेटा सच बता दो ,तुमने टिकट नहीं लिया है और पैसा तुम्हारे हाथ में है। टिकट नहीं लिया है तो डरो मत बता दो की नहीं लिया है। उस बुजुर्ग आदमी के मुँह से बेटा शब्द सुनकर और उसके प्यार से बोलने के कारण मैंने उसे सच बता दिया की मुझे नींद आ रही थी ,मैं सो गया था जब आँख खुली तो मेरा स्टॉप आ गया था। आप अभी मेरा टिकट काट लीजिये।
इतना कहने के बाद उसके तेवर बदल गए उसने कहा की ऐसा नहीं होता तुमको जुरमाना भरना पड़ेगा। इतने में बाकि टिकट चेक करने वाले भी आ गए और दूसरे लोग भी इकठ्ठे हो गए। लोगों ने कहा की जुर्माना ले लो और इसे जाने दो। मैं भी जुर्माना देने के लिए तैयार हो गया उन लोगो ने मुझसे ढाई सौ रूपए जुर्माना माँगा मैंने उन्हें अपना बटुआ खोल के दिखाया की इसमें तो सिर्फ ढेड़ सौ रूपए ही हैं।
वो लोग मुझ पर दबाव डालने लगे की कहीं से भी इंतेज़ाम करो या यही पर ही किसी से उधार मांग कर दो। इतने में मेरा एक दोस्त वहां पर आया और मुझसे पुछा की क्या हुआ मैंने उसे बताया की क्या हुआ और कहा की अब ये लोग मुझे परेशान कर रहे हैं यार तेरे पास सौ रूपए है तो देना मैं बाद में दे दूंगा। बदकिस्मती से उसके पास भी सौ रूपए नहीं थे। वो लोग मुझपर दबाव बनाने लगे की जल्दी करो बाकि यात्रियों को देर हो रही है। मैंने कहा ठीक है मैं आपको पैसे दे दूंगा आप मुझे रसीद बना कर दो की मुझे कितना देना है और अभी मैं आपको कितना दे रहा हूँ। वो लोग नहीं मान रहे थे।
उन लोगों का कहना था की ऐसा नहीं होता है। पूरे पैसे दो तभी रसीद मिलेगी। फिर मैंने उन्हें बताया की आपको मेरे साथ थोड़ी दूर चलना होगा पास में ही आर्मी एरिया है और वहां से मैं आपको अपने एक पहचान वाले से पैसे दिला सकता हूँ। वो लोग इसके लिए भी नहीं मान रहे थे। मेरे साथ ऐसा पहली बार हो रहा था इसलिए मैं काफी सहमा हुआ था। वो लोग मुझे धमकी दे रहे थे की तुमको पुलिस स्टेशन चलना पड़ेगा। जब मैंने ये कहा की मैंने जानबूझ कर तो कुछ किया नहीं है आप अभी जितने पैसे मुझसे ले रहे हो उसका रसीद दे दो। लेकिन वो लोग नहीं मान रहे थे आसपास के लोगो के कहने के बावजूद भी।
उन लोगों ने धमकी देते हुए मुझसे मेरे बटुए में जितने पैसे थे सब निकाल लिए और मेरा बैग और कॉलेज का पहचान कार्ड भी ले लिया और कहा की ये बस का नंबर नोट कर लो और बाकी के पैसे पास के बस अड्डे पर आके जमा कर दो और अपना सामान ले जाओ। मैं भारी मन से वहां से साइकिल चलाते हुए घर पहुँचा। कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था। यहाँ तक की एक्सरसाइज करने में भी मन नहीं लग रहा था। दिमाग में बार बार वही बातें घूम रही थी।
मैंने मन ही मन भगवान से भी कहा की हे भगवान कुछ करो मैं दुबारा ऐसी गलती नहीं करूँगा। और साथ ही उन लोगों के इस गलत व्यवहार पर मुझे दुःख भी हो रहा था और गुस्सा भी आ रहा था। उसके बाद मैंने अपने एक दोस्त से बात किया इस बारे में। वो दोस्त रोज मेरे साथ आकर कसरत करता था और मेरा स्कूल के समय का दोस्त भी था। उसने राय दिया की तुझे बाकि के पैसे देकर अपना बैग और कॉलेज का पहचान कार्ड ले लेना चाहिए। अपना ओरिजिनल पहचान कार्ड कहीं भी नहीं छोड़ना चाहिये। तुझे कैसे भी रसीद ले लेना चाहिए था।
उसके बाद मैंने घर से सौ रूपए लिए और साइकिल लिया और दोस्त के साथ चल पड़ा पास के बस अड्डे पर। उन दिनों आने जाने के लिए मैं साइकिल का ही इस्तेमाल करता था और मेरा दोस्त भी। वहां जाकर पता चला की वो लोग चले गए हैं मुझे मेरा सामान शहर के मुख्य बस अड्डे पर जाकर लेना होगा। फिर मेरे दोस्त ने राय दिया की तुझे वैसे भी शहर जाना ही होता है कल एक दिन कम्प्यूटर क्लास और कॉलेज मत जाना ,कल बस अड्डे चले जाना।
जैसे तैसे रात गुजरी। अगले दिन शुरू हुआ मेरा सफर। मैं निकल पड़ा साइकिल पर अपने उस दिन के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए। लगभग पांच किलोमीटर साइकिल चलाने के बाद मुझे आगे बस से जाना था। वैसे ये मेरा रोज का काम था पहले साइकिल चलाकर लगभग पांच किलोमीटर की दूरी तय करता था और एक जगह साइकिल खड़ी करने के बाद बस से कॉलेज और कंप्यूटर क्लास जाता था।
शहर में पहुंचने के बाद मैंने तय किया की अब उस बस अड्डे तक मैं पैदल ही जाऊंगा। उन दिनों मैं ज्यादातर पैदल या फिर साइकिल से ही घूमता था। क्योंकि मैं एक एन सी सी कैडेट था और रोज सुबह योग ,दौड़ना और कसरत करता था इसलिए दूर तक चलना मेरे लिए कोई बड़ी बात नहीं थी।
लेकिन उस बस अड्डे पर मैं पहली बार जा रहा था। उस दिन धुप भी बहुत तेज थी और ऊपर से शहर की भीड़भाड़ और शोर शराबा। घूमते हुए और पता पूछते हुए मैं उस इलाके में पहुँचा और वहाँ पास में सिग्नल पर खड़े ट्रैफिक पुलिसवाले से मुख्य बस अड्डे के बारे में पूछा तो वो बहुत ही गुस्से में बोला की कौन सा मुख्य बस अड्डा वहां आजु बाजु दो बस अड्डे हैं। तुझे कौन से बस अड्डे में जाना है। मैंने शांति से कहा की कोई बात नहीं मैं आगे जाके किसी और से पूछ लूंगा और मैं आगे चल पड़ा। पूछते पूछते आखिरकार मैं बस अड्डे तक पहुंच गया।
मैं वहां एक ऑफिस में गया और उस ऑफिस में बैठे एक अधिकारी को अपनी आप बीती बताया तो उसने कहा की आप को कैसे भी उनसे रसीद ले लेना चाहिए था। और उन्होंने ही मुझे बताया की जुर्माना साठ रूपए है। ये जानकर मुझे ताज्जुब हुआ और बुरा भी लगा की उनलोगों ने मुझसे १५० रूपए ले लिए हैं और सामान भी जमा कर लिया है और पैसो के लिए मुझे इतना घुमा रहे हैं।
उसके बाद उस अधिकारी ने कहा की मुख्य बस अड्डा बाजु में है वहां जाकर देखो। मैं बाजु के मुख्य बस अड्डे पर गया और पूरा दिन उस बस अड्डे पर घूमते हुए उन लोगों का इंतज़ार किया लेकिन उनमें से कोई नहीं मिला ना तो वो बस कंडक्टर ना वो चेंकिंग करने वाले लोग। बहुत देर हो गयी तो मुझे अगले दिन आने के लिए कहा गया।
खैर मैं घर लौट आया। अगले दिन मैं अपने एक और दोस्त के पास गया और जो मेरे ही कॉलेज में था और स्कूल के समय से ही मेरे साथ था और कॉलेज में हमने साथ में ही एडमिशन लिया था और रोज कॉलेज साथ में ही जाते थे। बस उस दिन वो दोस्त मेरे साथ नहीं था। मैंने उसे सारी बात बताई और साथ चलने को कहा और वो चलने के लिए राजी हो गया।अगर आपके सामने किसी से कोई गलती हो जाती है तो आप जो भी कदम उठायें ये ध्यान में रखें की आप भी इंसान हैं और सामने वाला भी इंसान है और आपको जो भी करना है वो इंसानियत को ध्यान में रखते हुए करें। ऐसा कदम उठायें जो की गलती का एहसास कराये और आगे वो गलती होने की संभावना न हो। कृपया किसी की मजबूरी का गलत फायदा ना उठायें।
अच्छे दोस्तों के साथ हमेशा अच्छे से रहिये और हमेशा मिलते रहिये क्योंकि मुसीबत पड़ने पर अच्छे दोस्त हमेशा काम आते हैं।
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