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रविवार

रविवारसुनें 👇



आज के रविवार 

याद आ रहा है वो बचपन का रविवार 

वो रविवार की सुबह,

बाकी सुबहों से ताज़ी और अच्छी लगती थी 

रविवार

सुबह के वो रंगोली के गाने 

थोड़ी देर नहाने धोने के बाद 

नौ बजे के वो दूरदर्शन के कार्यक्रम 

कभी चड्ढी वाला मोगली 

कभी चंद्र कांता की कहानी 

तो कभी रामानंद सागर वाला कृष्ण की लीलाएं 

कभी शक्तिमान की शक्तियाँ 

कभी कैप्टन व्योम तो कभी दस नम्बरी की रहस्यमय दुनियाँ 

वो सिगनल ना आने पर छत पर चढ़कर एंटीना घुमाना 


दोस्तों के साथ बाहर जाकर खेतों में खेलना 

खेतों के तरफ बहते हुए पानी को पगडंडियों के बगल वाली नाली से जाते हुए निहारना 

रविवार

कभी पालतू जानवरों के साथ खेलना 

कभी साथ में बैठकर मिटटी के खिलौने बनाना 


वो सुकून भरी दोपहर में घर लौटना 

खाना खाकर कभी लूडो खेलना तो कभी अंताक्षरी खेलना 

कभी कहानियों की किताबें पढ़ना 

कभी सपनों की दुनिया की हलकी सी झपकी 


शाम की वो चहल पहल वो खेलों का जादू 

कभी क्रिकेट तो कभी फूटबाल 

कभी छुप्पन छुपाई कभी पकड़म पकड़ाई तो कभी पिट्ठू 

कभी मैदान में कभी गलियों में तो कभी खेतों में यूँ ही इधर उधर घूमना, दौड़ना,उछलना कूदना 

और फिर ढलती हुई शाम के साथ घर लौटना

 

हाथ पैर धोने की मस्ती 

खाना खाने के पहले होमवर्क निपटाने की जल्दी 

बिस्तर पर जाने के बाद सोने से पहले की वो मस्ती 

वो सोने से पहले चाँद तारे की बातें ,लोक परलोक ,राजा रानी ,भूत प्रेत की कहानियाँ ,पहेलियाँ ,चुटकुले सुनते हुए

नींद से झपकती आँखों के साथ धीरे धीरे वो रविवार का गुज़र जाना  

रविवार

 

समय गुजरता गया और बदलता भी गया और धीरे धीरे बिना एहसास के वो रविवार भी गुजरता गया और बदलता गया 

आज के इस प्रतियोगिता भरे दौर में ,धन ,रुतबा ,प्रसिद्धि पाने के होड़ में 

मशीनी घोड़े पर सवार ,मन में है इंतज़ार की काश फिर से लौट कर आ जाता वो रविवार 


याद करके उस गुजरे हुए रविवार को 

रविवारथोड़ी देर के लिए ही सही भूल जाता हूँ 

आज के इस अकेले पन को और तनाव भरे इस संसार को 


जानता हूँ की जो बीत गया वो लौट कर नहीं आता

लेकिन उन पलों को याद करने के बाद मन को सुकून है आता 

और कभी कभी वो पल दुखते दिल पर दवा का काम है कर जाता 

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