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क्या फिर से वो दिन आएंगे
एक दूजे को गले लगाएंगे
दिन भर की सारी उलझन चाँद तारों की तरफ देखते ही
कहीं खो जायेंगे
कभी लाइन में चलती चींटियां देखकर
कभी खेतों की तरफ बहता पानी देखकर
कभी उड़ती तितलियाँ देखकर
कभी नीम ,पीपल, आम के पेड़ों के छाँव में तो
कभी लहराते हुए हरे भरे खेतों से बहती हुई मस्त हवा को महसूस
करते हुए मन को बहलायेंगे
क्या फिर से वो दिन आएंगे
बहती थी जब आंधी ,दुनिया की परवाह किये बिना हम बगीचे में आम बटोरने
जाते थे
पेड़ के पके हुए शुद्ध आम क्या हम फिर से खा पाएंगे
क्या फिर से वो दिन आएंगे
कभी आइसक्रीम ,कभी भुट्टे ,कभी नहाने से कतराना ,कभी तालाब में दौड़कर
जोर से छलांग लगाना
क्या फिर से हर मौसम का वैसे ही मजा ले पाएंगे
क्या फिर से वो दिन आएंगे
ना कोई बड़ा था ना कोई छोटा था
ना कोई अमीर था ना कोई गरीब
रूठ भी जाते थे और मान भी जाते थे
सच्चे थे सब दिल के, एक दूसरे पर जान छिड़कते थे
क्या जीवन में वो अपनापन फिर से ला पाएंगे
क्या फिर से वो दिन आएंगे
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