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जिंदगी में बोल्ड यानि साहसिक कदम भी उठाना चाहिए लेकिन क्यों उठाना चाहिए। ये मैं आपको अपने बचपन में घटी घटना के माध्यम से बताना चाहूंगा।
मैं जब भी साइकिल का जिक्र करता हूँ तो गांव की वो शाम वाली घटना जरूर याद आती है जब साइकिल की चाबी गुम होकर फिर से मुझे मिल गयी थी।
हुआ ये था की उस समय मैं अपनी मम्मी और बड़े भाई के साथ गांव में रहता था। गांव में हमारे और भी रिश्तेदार थे और भाई बहन भी। मेरे पापा फ़ौज में थे तो कभी कभार या साल में एक बार छुट्टी आते थे। मैं और मेरा बड़ा भाई गांव से दूर जिले के स्कूलों में पढ़ने जाते थे। हम दोनों अलग अलग स्कूलों में पढ़ने जाते थे। मैं एक प्राइवेट स्कूल में पढता था और उसी स्कूल के बस में स्कूल जाता था। लेकिन मेरे बड़े भाई के स्कूल में बस की सुविधा नहीं थी इसलिए पापा ने बड़े भाई के लिए नया साइकिल ख़रीदा था। मुझे भी साइकिल का बहुत शौक था और नया -नया साइकिल चलाना सीखा था। कभी कभी इधर उधर ठोंक भी देता था।
उस शाम को मुझे शौच के लिए गांव के बाहर खेतों में जाना था। उन दिनों गांव में शौचालय नहीं होते थे। होते भी थे तो बहुत कम घरों में। लोग ज्यादातर शौच के लिए बाहर जाते थे। मेरा मन था की मैं साइकिल से जाऊँ लेकिन मेरे बड़े भाई ने साइकिल देने से मना कर दिया। वो मुझ पर पाबंदी बहुत लगाता था। लेकिन मेरा तो बहुत मन था साइकिल चलाने का वो भी नयी साइकिल। मैं उस समय छोटा था ज्यादा देर तक शौच नहीं रोक सकता था ,गड़बड़ हो सकती थी।
मेरी मम्मी ने कहा भी था की साइकिल दे दे जल्दी जाकर कर लेगा नहीं तो देर हुई तो यहीं पर कर देगा।
उस दिन से एक साल पहले गड़बड़ हो भी गयी थी। हुआ ये था की मैं बाहर से गांव आया था और बरसात का मौसम शुरू हो चूका था। उस दिन मेरा पेट ख़राब था शायद। लेकिन मैंने घर में किसी को कुछ कहा नहीं क्योंकि सुबह स्कूल जाने के समय था किसी को ये ना लगे की स्कूल नहीं जाने के लिए बहाना बना रहा है। लेकिन उस दिन स्कूल बस नहीं आयी और मैं वापस घर आ गया। घर आके जैसे ही कपड़े बदले वैसे ही पापा ने ले जाकर मुझे नाई के पास बिठा दिया। मैंने पापा से कहा भी था की मुझे लगी है। उन्होंने कहा बाल कटवा के जाना थोड़ा ही समय लगेगा। मैंने सोचा जल्दी हो जायेगा। लेकिन कहाँ जल्दी हुआ बहुत देर हो गयी और मेरा प्रेशर बढ़ता ही जा रहा था। बाल कटवाने के बाद मैं मम्मी के पास गया वो मुझे नहलाने की तैयारी में थी। मैंने कहा मुझे जोर से लगी है मैं जा रहा हूँ। फिर मम्मी ने पापा के साथ जाने को कहा। मैंने कहा अब और नहीं सह सकता। मैं जिद करके उछलने लगा और जल्दी जल्दी जाने लगा।
लेकिन मम्मी को डर था की अभी ये गांव में नया है। कहीं इधर उधर न चला जाये इसलिए उन्होंने धप्पू (मेरे रिश्ते का भाई )को मेरे पीछे भेजा। वो मेरे पीछे भागते हुए आया और मैं अब बहुत तेजी से भाग रहा था जैसे मैराथन जितना हो। धप्पू मेरे पीछे दौड़ते हुए आवाज लगा रहा था - "अरे राकेश रुक रे ! मैं भी आ रहा हूँ साथ में। अरे गुम हो जायेगा अकेले।" लेकिन मैं कहाँ सुनने वाला था बात अब बर्दाश्त से बाहर हो चुकी थी कभी भी गड़बड़ हो सकती थी। एक तो बरसात का मौसम रास्ते में जगह जगह पानी लगा हुआ था।
नालियाँ फुल हो चुकी थीं। भागते भागते एक ऐसी जगह आयी जहाँ रास्ते पर पानी भरा हुआ था और जाने के लिए एक ही कोना था जहाँ से होकर निकलना था। मैं उस कोने से दौड़कर निकल ही रहा था सामने से मुन्ना आ गया जो की मेरे मुहल्ले का ही दोस्त था। वो भी सुबह शौच करके आ रहा था और मुझे देखकर भोजपुरी में बोला - का हो का हाल बा राकेश (कैसे हो राकेश ) .मुझे रुकना पड़ा और पीछे से पड़ -पड़ाक का धमाका हुआ और मेरी लाल चड्डी में से पीला पदार्थ निकल कर टांगों पर बहने लगा। मुन्ना बोला - अरे मरदे इ त हद क दे ह लअ (अरे यार ये आप ने हद कर दिया ) इतने में धप्पू भी आ गया भागते हुए और बोला - अरे इ त पैंटवे में हग देहलस (अरे इसने तो पैंट में ही हग दिया ).मुन्ना चला गया।
धप्पू मुझे लेकर आगे चल पड़ा क्योंकि उसे भी शौच जाना था। खैर उसके बाद हम घर पहुंचे। ये बात आज के ज़माने के ब्रेकिंग न्यूज़ की तरह पूरे परिवार में फ़ैल गयी की रकेशवा आज पैंटवे में छेर दे ल स (राकेश ने आज पैंट में ही हग दिया )
उसके बाद इस विषय पर पापा मम्मी के बीच बात शुरू हुई। पापा बोल रहे थे की ये तो अच्छा हुआ की बाल कटाते समय ऐसा नहीं हुआ नहीं तो और किसी का भी बाल नहीं कट पाता। फिर मम्मी ने कहा यहाँ तक तो ठीक है अगर ये स्कूल बस में कर देता तो क्या होता। अच्छा हुआ आज बस नहीं आयी। वैसे एक बात तो है की कभी कभी जो होता है अच्छे के लिए होता है, अच्छा हुआ उस दिन बस नहीं आयी थी।
और उस दिन मुझसे जो भी मिल रहा था ,मेरा हालचाल कुछ इस तरह से पूछ रहा था -"का हो राकेश सुननी हं की तू आज पैंटवे में हग दे ल ह (क्या हाल है राकेश सुना है की आज तुमने पैंट में ही हग दिया। )
इसलिए इसबार मैंने धीरे से साइकिल की चाभी उठाया और दबे पाँव साइकिल लेकर निकल गया। अब तक मुझे सीट पर बैठ कर साइकिल चलाना आ गया था। शाम हो गयी थी अँधेरा होना शुरू हो चूका था। मैं प्रधान जी के डेरा (फार्महाउस ) पर साइकिल खड़ी करके पास के खेत में शौच करने चला गया। जब शौच करके वापस आया तो सुनील और धप्पू दोनों भाई भी मेरे पास आ गए और बोले वाह आज तो नयी साइकिल लेकर आया है जरा हमें भी चलाने को देना। मैंने मना कर दिया और कहा की नहीं मुझे जल्दी जाना है भैया मारेगा।
लेकिन जैसे ही मैंने पैंट की जेब में हाथ डाला तो पता चला चाभी है ही नहीं ,पता नहीं कहाँ गिर गयी है। मैं बिलकुल घबरा गया एक तो साइकिल चुपके से लाया हूँ ऊपर से चाभी गुम हो गयी है और अँधेरा भी हो गया है। अब क्या करूँ। मैंने सुनील और धप्पू को परेशान होते हुए बताया की -अरे भाय (भाई ) चाभी गुम हो गयी है अब क्या करूँ भैया मारेगा। उन लोगों ने राय दिया दूसरे जेब में देख रखी होगी या इधर ही कहीं गिरी होगी। बहुत ढूंढा लेकिन चाभी नहीं मिली ना दूसरे जेब में न ही आसपास में। मेरी तो हालत ख़राब हो गयी की अब क्या होगा। फिर मैंने तय किया की जिस खेत में शौच के लिए गया था वहीं जाकर ढूढूंगा। उन दोनों ने राय दिया की अभी अँधेरे में ढूढ़ने से क्या फायदा कुछ दिखेगा तो है नहीं।
लेकिन मुझे तो चाभी ढूढ़ना था कैसे भी ,फिर क्या था मैं चल पड़ा अँधेरे में खेत की ओर और जाकर जगह जगह पर हाथ लगाकर ढूढ़ने लगा अच्छा हुआ मेरा हाथ गलत जगह पर नहीं लगा। चाभी नहीं मिली न साइकिल के पास ,न रास्ते में ,और न ही खेत में। अब मैं और भी परेशान हो रहा था और सोच रहा था अब क्या होगा ? अब क्या करूँ ? उस बचपने में भी मैंने इधर उधर देखते हुए ठन्डे दिमाग से सोचा। मेरी नज़र उस पानी के स्रोत पर गयी जहाँ का पानी मैंने शौच करने के बाद सफाई के लिए इस्तेमाल किया था। और मेरे अंदर के जासूस ने कहा की क्यों न एक बार उसी गहराई में हाँथ डाला जाये जहाँ कुछ समय पहले सफाई के लिए डाला था और ठीक उसी जगह पर और उसी एंगल में। मैंने वैसा ही किया और हाथ डालते ही चाभी मिल गयी। सफाई करते वक़्त चाभी जेब से निकल कर पानी में गिर गयी थी।
मेरी जान में जान आयी। मेरी ख़ुशी का ठिकाना न रहा -हाँ मिल गयी चाभी।
इस हालत पर मुझे गाने की एक पंक्ति याद आ रही है -"मैंने तुझे ढूंढा कहाँ कहाँ ,तू मुझे मिली यहाँ। " चलो यहाँ ही सही मिल तो गयी। घर पहुंचने के बाद प्यार से ही सही डाँट तो पड़ी की मना करने के बावजूद भी साइकिल लेकर चला गया।
इसमें एक गौर करने वाली बात तो है की जीवन में जोखिम लेना भी बहुत जरुरी है। हमेशा डरते रहना और जोखिम लेने से बचने से हम कुछ नया कर ही नहीं पाते और एक समय ऐसा आता है जब सबकुछ बोर लगने लगता है। जैसे अगर मैं उस दिन चुपके से साइकिल ले जाने का जोखिम नहीं उठाता तो मुझे वो सब अनुभव नहीं होता जो मैंने आज लिखा है। वो अलग बात है की हर चीज में सावधानी जरुरी है लेकिन इसका मतलब ये नहीं की हम हमेशा डर कर रहें ,बोल्ड न हों। जीवन में बोल्ड निर्णय लेना भी उतना ही जरुरी है जितना की सही रास्ते पर चलना।
कभी कभी ऐसे हालात हो जाते हैं जब बहुत ज्यादा सही गलत के बारे में सोचने से हम कोई निर्णय नहीं ले पाते तब समय होता है बोल्ड होने का क्योंकि जीवन में कुछ नया जानने के लिए,कुछ नया समझने के लिए और कुछ नया अनुभव के लिए हमें बोल्ड होने की जरुरत पड़ती ही है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं की हम गलत रास्ता अपनाएं और गलत आदतों को अपनाएं। जिंदगी में हमें बोल्ड रास्ता जरूर अपनाना चाहिए लेकिन हमें ये भी पता होना चाहिए की क्या अच्छा है और क्या बुरा है। हमें पता होना चाहिए की हम जो बोल्ड कदम उठा रहे है वो क्यों उठा रहे हैं और उसके पीछे हमारी नियत अच्छी होनी चाहिए। जैसे की जब मैंने बचपन में जब चुपके से चाभी उठाया था और साइकिल लेकर निकला था तो उसके पीछे मेरे पास सही वजह थी और मेरी नियत भी सही थी।
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