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मन में डर एक शरारती बंदर की तरह होता है। जब भी जीवन में कोई समस्या आये ये बहुत तंग करता है। ये हावी हो जाता है हमारे मन पर ,हमारे सोच पर। यह हमें सही सोचने ही नहीं देता है। यह हम पर दबाव डालता है मुसीबत के आगे झुकने के लिए। ये एक आँधी की तरह आता है और मन या दिमाग के अंदर हाहाकार मचाकर चला जाता है फिर से आने के लिए। इसको हराने के बाद ये फिर से और पहले से ज्यादा तेज़ी से हमला करता है। बार बार हमला करता है ऐसे ही चलता रहता है। इस समय सबसे जरुरी होता है इस डर पर काबू रखते हुए सही निर्णय लेना। क्योंकि होता ये है की इस समय हमारे निर्णय लेने की क्षमता सबसे ज्यादा प्रभावित होती है। हमे समझ में ही नहीं आता की हम क्या करें और क्या नहीं करें। आसपास अगर राय देने वाले लोग हो तो इस समय हमे समझ में ही नहीं आता की कौन सही राय दे रहा है और कौन गलत राय दे रहा है। हम अपने जीवन में गलत निर्णय ज्यादातर इसी हालत में करते हैं जैसे की-
गलत रोजगार चुनना - गलत रोजगार चुनने की शुरुआत तभी से शुरू हो जाती है जब हम विद्यालय की शिक्षा प्राप्त करने के दौरान बड़ी कक्षाओं में पढ़ते हैं। क्योंकि ज्यादातर हममे से किसी को ये पता नहीं होता की हम जो पढाई कर रहे है उससे हमें भविष्य में किस तरह के रोजगार की सम्भावना है। हम सिर्फ परीक्षा पास करने में लगे रहते हैं या सिर्फ नंबरों के खेल में लगे रहते हैं अच्छे नंबर आये तो हम खुश हो जायेंगे और ख़राब नंबर आये तो दुखी हो जायेंगे। ऐसे में हम उस दौरान अपने अंदर पनप रहे हुनर को या तो जान ही नहीं पाते या तो जानते हुए भी नज़रअंदाज़ करते रहते हैं। इसमें हमारे आसपास का हमारे ऊपर दबाव बना रहता है। इस कारण हममें अपने रोजगार को लेकर एक असमंजस की स्तिथि बनी रहती है और हमारा भविष्य कैसा होगा इसको लेकर हमारे मन में डर बना रहता है। और इस डर के कारण हम कोई भी नौकरी के लिए तैयार रहते हैं। इसमें डर की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। हम दूसरे हमारे बारे में क्या सोचेंगे और हमारे घरवाले क्या सोचेंगे इसके डर के कारण भी हम अपने हुनर को नज़रअंदाज़ करते हैं जिसकी वजह से हम ऐसा कैरियर चुनते हैं जिसमे हमें कोई ख़ुशी नहीं मिलती और हमें अपने जीवन को अच्छा बनाने के लिए और भी ज्यादा संघर्ष करना पड़ता है। कई बार धोखा होने की भी संभावना रहती है।
सही को सही और गलत को गलत ना कह पाना - हमेशा डर कर और दब कर रहने के कारण हम सही को सही और गलत को गलत कहने में हिचकिचाते हैं। हम अक्सर वही कहते हैं जो की भीड़ या ज्यादातर लोग कहते हैं और जरुरी नहीं है की जो भीड़ या ज्यादातर लोग जो सोचते हैं,मानते हैं और कहते हैं वो सही ही हो। जैसे अगर आपके ऑफिस में आपका मैनेजर कुछ गलत कह रहा है और आप उसके हाँ में हाँ मिलाते हैं क्योंकि आप उससे डरते हैं की अगर आप ऐसा नहीं करेंगे तो आप की नौकरी खतरे में पड़ जाएगी उस डर के कारण आप ये नहीं सोच पाते की अगर वो ऐसा ही है तो वो किसी भी बहाने से आपको तंग करेगा ही और इसकी कोई गारंटी तो है नहीं की अगर आप उसकी हाँ में हाँ मिलायेंगे तो वो आपके साथ बुरा नहीं करेगा इसलिए बिना डरे हुए और सही तरीके से सही को सही और गलत को गलत कहें।
अक्सर देखने में ये आता है की कोई भी समस्या जब शुरू होती है तो वो बहुत छोटी होती है या फिर छोटे स्तर पर होती है और बाद में बढ़ जाती है और बड़े स्तर की हो जाती है। इसलिए किसी भी समस्या को बिना डरे और संकोच किये उसी समय समाप्त करने की कोशिश करनी चाहिए जब वो शुरू होती है।
इसको और सही से समझने के लिए मैं एक उदाहरण देना चाहूंगा जो की मेरे स्कूल के दिनों की एक घटना है। उन दिनों हमारे क्लास में हम दोस्तों का एक ग्रुप था। हमारा वो ग्रुप स्कूल में लगभग हरेक जगह साथ में ही रहता था जैसे लंच ब्रेक में साथ में खाना ,गेम्स के पीरियड में साथ में खेलना और हमेशा एक दूसरे से हंसी मजाक करना।
ऐसे ही एक दिन मेरे एक दोस्त ने दूसरे दोस्त के परिवार को लेकर कुछ मजाक किया। हालाँकि वो मजाक मुझे भी सही नहीं लगा और उस दोस्त को भी नहीं जिस दोस्त का मजाक उड़ाया गया लेकिन उस दोस्त ने बुरा लगने के बावजूद भी उसको रोका नहीं और बात को हंसी में टाल गया।
कभी कभी ऐसा होता है की चाहे बड़े हों या छोटे कभी कभी वो दिल पर लगने वाली बातों को शुरवात में ही रोकने के बजाय डर और संकोच के कारण बर्दाश्त करने लगते हैं और वो बाद में बड़ी समस्या बन जाती है। डर इस बात का होता है की अगर मैं टोकूंगा तो दोस्ती टूट सकती है और आगे बात बिगड़ सकती है।
अब वो मजाक रोज होने लगा उसके साथ और रोज बात उसके दिल पर लगती। और एक दिन ऐसा हुआ की उस मजाक के कारण उन दोनों में झगड़ा हुआ और बात मारपीट तक पहुँच गयी। अगर मेरे दोस्त ने डर और संकोच ना करते हुए पहले दिन ही ऐसा मजाक ना करने को कहा होता तो बाद में झगड़ा और मारपीट नहीं हुआ होता। आखिर जिस दोस्ती के खोने के डर से उसने बुरी लगने वाली बात को बर्दाश्त किया वो दोस्ती तो आखिर में टूट गयी।
और ये सिर्फ बच्चों में या स्कूल लेवल पर ही नहीं जिंदगी के हर मुकाम पर होता है और हर जगह होता है चाहे वो ऑफिस हो या घर हो। इसलिए हमें पूरी कोशिश करना चाहिए हम कोई भी काम या बात करे तो सही तरीके से और बिना डर और संकोच के। साथ में ये भी कहना चाहूंगा की जब हम किसी के लिए नौकरी कर रहे होते है, तो जो हमारा बॉस होता है उसके साथ काम करने के बजाय हम उससे डरने लगते है और नौकरी की मज़बूरी मानकर एक तरह से गुलामी करने लग जाते हैं। उसकी गलत लगने वाली बातों को भी हम बुरा लगने के बावजूद कुछ नहीं कहते। हालाँकि सभी ऐसे नहीं होते कुछ अच्छे भी होते हैं जो अपने साथ पूरी टीम का भला चाहते हैं। तो आगे होता ये है की आपके इसी डर के कारण जो आपके साथ गलत कर रहा है वो और गलत करने लगता है और बात बढ़ जाती है।
जरा सोचिये क्या डर कर काम करने से आप उस काम को सही से कर पाएंगे ? और क्या आप अच्छी और खुशहाल जिंदगी जी पाएंगे ? और अगर आप ये सोचते हैं की सही बात बोलने पर नौकरी जा सकती है और पैसे की तंगी आ सकती है तो आप ये बात भी याद रखिये की नौकरी, पैसा और करिअर आदमी के लिए बने है आदमी इनके लिए नहीं बना है। जैसे की कहा जाता है की जीने के लिए खाओ ,खाने के लिए मत जिओ। वैसे ही जिंदगी में कामयाब होने के लिए मेहनत ,सही व्यवहार , हुनर में निखार जरुरी है। यकीन मानिये अगर आप में हुनर है ,और आप उस हुनर में और अच्छा होने के लिए मेहनत करते हैं और हमेसा कुछ नया और अच्छा करने और सिखने की कोशिश करते रहते हैं तो आप जरुर कामयाब होंगे। लेकिन ये भी सही है किसी भी काम को करने में समस्या तो आती ही है और ऐसे में हमारा डर हम पर हावी होने लगता है और समस्या का समाधान निकालने के बजाय समस्या के आगे झुकने पर मजबूर करने लगता है। लेकिन हमे लगातार अपने डर पर काबू रखते हुए अपना काम करते रहना चाहिए।
डर को काबू रखते हुए कैसे अपने काम को सफलता से किया जा सकता है ये मैं आपको अपने बचपन में घटी एक घटना के माध्यम से बताना चाहूँगा -
एक दिन शाम को मैं अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेल रहा था। खेलते खेलते गेंद एक बहुत की ऊँचे पेड़ पर अटक गयी। एक तो काँटे वाला पेड़ ऊपर से गेंद ऐसी जगह पर अटकी थी जहाँ मधुमखी का छत्ता था। गेंद बिलकुल मधुमखी के छत्ते के बगल में ही अटकी थी। एक तो उस पेड़ पर चढ़ना ही काफी जोखिम वाला काम था ,ऊपर से मधुमखी का छत्ता अगर गेंद लेने में थोड़ी सी भी गलती हुई तो मधुमखियों के काटने का डर और गिरने का भी । और पत्थर मारकर गेंद उतारने का विकल्प था ही नहीं क्योंकि पत्थर मधुमखी के छत्ते में लग सकता था और हमारे साथ और भी लोगों को परेशानी हो सकती थी। अब हमारे सामने दो ही विकल्प थे या तो गेंद को भूल जाओ या फिर पेड़ पर चढ़कर बहुत ही सावधानी से गेंद को मधुमखी के छत्ते के बाजु से निकलना और नीचे फेंकना।
सबने एक एक बार कोशिश किया पेड़ पर चढ़ने की लेकिन सब डर कर आधे में ही वापस उतर गए। मैंने हिम्मत किया और दूसरी बार पेड़ पर चढ़कर गेंद को मधुमखी के छत्ते से बहुत ही सावधानी से निकाला और नीचे फ़ेंक दिया। ऐसा नहीं है की मुझे डर नहीं लग रहा था ,मुझे भी उतना ही डर लग रहा था जितना सबको लग रहा था उस समय। जब मैं पेड़ पर चढ़ते हुए बहुत ऊँचाई पर पहुँच गया और मधुमखी के छत्ते और गेंद के बहुत नजदीक पहुँच गया तब डर के कारण मेरी टाँगे काँप रही थी। लगातार डर लग रहा था और ये भी लग रहा था की वापस नीचे उतर जाऊँ। लेकिन मैंने अपने डर का सामना करते हुए और पूरी सावधानी से गेंद को निकाला और नीचे फ़ेंक दिया। उसके बाद मैं सावधानी से नीचे उतरा और मन में एक खुशी थी की हाँ मैंने कर दिखाया। मेरे दोस्त भी बहुत खुश हुए और गेंद हमेशा के लिए मुझे दे दिया। लेकिन मैं यहाँ ये भी कहना चाहुँगा की मैं उन दिनों खेल कूद के अलावा कसरतें भी करता था। यानि की अगर आप कोई स्किल सिखने के साथ साथ अपने डर का सामना करते हुए किसी काम को लगातार करते रहते हैं तो आपको उस काम में सफलता जरूर मिल सकती है।
अगर सोचा जाये तो ऐसा लगता है की डर को दूर रखने का तरीका यही है की जब डर लग रहा हो तो उस समय अपने जीवन में जो आपने कदम उठाया है डर का सामना करते हुए उस काम को और ज्यादा करने की कोशिश करें। बस उस काम में आपकी रुचि होनी चाहिए और उस काम को करने में आपका हुनर विकसित होते रहना चाहिए। डर दूर होने लगता है।
डर तो लगेगा ही और वो झुकने को मजबूर भी करेगा। लेकिन डर से लड़ते रहिये झुकिए मत और अपने काम को लगातार करते रहिये। तब यही डर आपको अपने काम के लिए होगा और आप अपना काम पहले से ज्यादा और अच्छा करेंगे यानि यह डर जो पहले आपको समस्या के आगे झुकने को मजबूर कर रहा था ,वही डर आपको आगे बढ़ने के लिए कहेगा या मजबूर करेगा। ये कहना भी गलत नहीं होगा की डर का एक पहलु नकारात्मक तो एक पहलु सकारात्मक होता है। एक तरफ तो वही डर मजबूर करता है समस्या के आगे झुकने के लिए और फिर वही डर मदद भी करता है आगे बढ़ने के लिए और अच्छा काम करने के लिए।
भगवान् ने दुनियां में हर चीज़ बनाई है भरपूर मात्रा में , लेकिन हमें अपने हिसाब से और समझ से जरुरत को ध्यान रखते हुए चीज़ों का इस्तेमाल करना होता है। जैसे अगर हम खाने का उदाहरण लें तो हमारे रसोई घर में नमक,चीनी ,मसाला ,हल्दी वगैरह बहुत मात्रा में उपलब्ध होता है। इनमें से किसी भी चीज़ का ज्यादा या कम इस्तेमाल खाने के स्वाद और उसकी गुडवत्ता को प्रभावित कर सकता है। उसी तरह से प्रेम ,क्रोध ,बुरा लगना ,अच्छा लगना ,डर इत्यादि ये सब भगवान् कहें या प्रकृति ने हमें दिया है और ये हम सबमें होती हैं। बस हमे ये जानने की जरुरत होती है की इनका इस्तेमाल कब ,कितना और कैसे करना है।
मैंने कई लोगों से सुना है की गुस्सा मत करो ,डरो मत। आप चाह कर भी डरना नहीं छोड़ सकते ,प्रेम की भावना से नहीं बच सकते। जीवन में कुछ अच्छा भी लगेगा और कुछ बुरा भी लगेगा और जीवन भर ये चलता भी रहेगा। बस यूँ समझ लीजिये की ये क्रोध ,प्रेम ,डर इत्यादि ये सब जीवन में हल्दी ,चीनी ,नमक ,मसाले इत्यादि का काम करते हैं। बस हमें जरुरत होती है ये समझने की ,कि इनको इस्तेमाल कितना और कैसे करना है और ये सही भी है की हर चीज़ एक हद तक ही ठीक होती है।
डर का क्या है अगर आप बहुत अच्छा कर रहे हैं तो भी डर लगेगा की कुछ गड़बड़ ना हो जाये। और अगर अच्छा नहीं हो रहा है तो भी डर लगेगा की कहीं नाकामयाब ना हो जाऊँ ,आगे क्या होगा पता नहीं। जब आप उस काम से दूर होंगे या जिस समय नहीं कर रहे होंगे तब भी आपके मन में डर बना रहेगा की जल्दी अपना काम शुरू कर दूँ कहीं कुछ गड़बड़ ना हो जाए। डर के साथ आप जीवन का आनंद नहीं ले पाएंगे और ये डर किसी ना किसी बहाने से आपको बाँधे रहेगा।
वैसे ज्यादातर होता ये है की जिन चीज़ों के बारे में सोचकर हमें डर लगता है वो चीज़ हो जाने पर या वास्तविकता में डरावनी नहीं होती जितनी पहले से लगती है। जैसे मैंने कहीं सुना है की अगर किसी पहाड़ को थोड़ा दूर से देखा जाये तो लगता है इतना बड़ा पहाड़ हम कैसे चढ़ पायेंगे। लेकिन जब हिम्मत रखते हुए और सावधानी से चढ़ना शुरू करते हैं तो चढ़ ही जाते हैं। हमारे जीवन में भी ऐसे कई मौके आते रहते हैं जब डर हम पर हावी होने लगता है जैसे फेल होने का डर ,धन ना होने का डर ,नौकरी ना मिलने का डर ,नौकरी चले जाने का डर ,लोग क्या कहेंगे और सोचेंगे का डर ,इसमें इतना मेहनत करना पड़ेगा का डर ,मैं ये काम कर पाउँगा की नहीं या ये काम मुझसे होगा की नहीं का डर ,मैं सब संभाल पाउँगा की नहीं का डर और भी पता नहीं क्या क्या का डर।
जहाँ तक मेरी जानकारी है डर की कोई ऐसी दवाई नहीं है की जिसे पी लिया और डर लगना बंद हो जाये। बस आपको अपने ऊपर भरोसा होना चाहिए की आप कर सकते हैं ,आप संभाल सकते हैं ,आपमें काबिलीयत है। डर तो किसी ना किसी बहाने से लगता ही रहेगा उस डर का सामना करते हुए आपको अपने निर्णय पर डटे रहना है और अपने काम को करते रहना है।
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