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सुख गए है पेड़ नफरत की धुप में
अब बहुत हो गया है
चलो प्यार की बारिश करते हैं
अपनापन के फूल खिलाते हैं
उजड़े हुए इस बगीचे को चलो फिर से हरा भरा बनाते हैं
कोई आंधी ना तबाह कर दे इस गुलशन को
चलो फिर से इसे जड़ों से मजबूत बनाते हैं
मैंने क्या दिया ,तुमने क्या दिया
मैंने क्या किया ,तुमने क्या किया
मैं ऐसा हूँ, तुम वैसे हो
इसी नासमझी में ना जाने कितना समय गवाँ दिया
बीत सकता था वो समय अपनापन और खुशहाली में जो हमने नफरत और बदहाली में गवाँ दिया
समय ने भी एक दिन अपना फैसला सुना दिया
टूट गयी कुछ डालियाँ समय की आँधी में एक एक करके और जड़ों को भी हिला दिया
चलो भूल जाते हैं एक दूसरे की गलतियों और कमियों को बिलकुल वैसे ही जैसे हमने एक दूसरे के एहसानों ,अपनेपन और मिलकर गुज़ारे हुए अच्छे दिनों को भुला दिया
बहुत हो चुकी हैं दूरियाँ
चलो अब नज़दीकियाँ बढ़ाते हैं
थोड़ा करीब तुम आओ और थोड़ा करीब हम भी आते हैं
चलो फिर से शुरु वात करते हैं
हो गयी हैं गलतियाँ, कुछ हमसे ,कुछ तुमसे
अब इन्हें जाने देते हैं
और ज्यादा बढ़ती है नफरत और बरबादी की तरफ ये जिंदगी जब भी हम उन्हें याद करते हैं और दोहराते हैं
चलो जाने देते हैं पुराने जख्मों को
एक दूसरे की तरफ चलो प्यार और सहयोग का हाथ बढ़ाते हैं
चलो अब बाकी की जिंदगी अपनापन और प्यार से बिताते हैं
नासमझ हैं वो लोग जो पुराने जख्मों को कुरेदते हैं
पुरानी गलतियों को नए तरीके से फिर दोहराते हैं
आखिर, क्या रखा है आपस के खींचतान में
खींचतान करते करते एक दिन वो इस दुनिया से चले जाते हैं
सारे मुद्दे यहीं धरे रह जाते हैं
जब तक जीना है प्यार से और अच्छे से जीना है
लोग ये बात क्यों नहीं समझ पाते हैं
सुख गए हैं पेड़ नफरत की धुप में
अब बहुत हो गया
चलो प्यार की बारिश करते हैं
अपनापन के फूल खिलाते हैं
उजड़े हुए इस बगीचे को चलो फिर से हरा भरा बनाते हैं
कोई आँधी ना तबाह कर दे इस गुलशन को
चलो फिर से इसे जड़ों से मजबूत बनाते हैं
चलो प्यार की बारिश करते हैं
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