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एक ऐसा मुद्दा जो बहस में नहीं आता लेकिन लोगों की जुबान पर आता रहता है। जिसके ऊपर रिसर्च भी बहुत हुए हैं। अगर इंटरनेट पर सर्च करें तो उसके बारे में बहुत ही रोचक जानकारियां मिल सकती हैं जो की बहुत उपयोगी हैं। वो ऐसा मुद्दा है जो सबके जीवन में है। उससे सभी का जीवन प्रभावित होता है चाहे वो सेहत का मामला हो या करियर का मामला हो। यह हमारे समाज में बहुत ही उपेक्षित भी होता रहता है। ये कोई पहेली नहीं है मैं बात कर रहा हूँ नींद की।
अगर मैं अपने व्यक्तिगत जीवन के अनुभव के आधार पर कहूं तो हमारे समाज में सोने वाले को बहुत ही हीन भावना से देखा जाता है। मेरे पिता एक सरकारी कर्मचारी थे। अलग अलग जगहों पर उनके तबादले होते रहते थे। उनके तबादलों के कारण मैं कभी अपने गांव में रहा तो कभी उनके तबादलों के कारण अलग अलग जगहों पर रहने का मौका भी मिला। मेरे स्कूल के दिन, कॉलेज के दिन सब अलग अलग जगहों पर बीते। सभी जगहों पर एक चीज़ समान थी। पूरी नींद न सोने देना और फिर नींद के ताने मारना। उदाहरण के तौर पर अगर कोई सवाल का जवाब नहीं आये या गलत हो जाये तो सुनने को मिलेगा जब मैं समझा रहा था या बता रहा था तो तुम्हारा ध्यान कहाँ था ?क्या उस समय तुम सो रहे थे ? कितना सोओगे अब जाग जाओ नहीं तो पछताओगे।
अच्छी नींद |
अगर स्कूल के समय की बात करूँ तो उस समय तो ये चलन बन गया था जो रात को जितना ज्यादा जग कर पढाई करता था वो उतना ही अच्छा माना जाता था। और मेरे घर में वैसे लड़को या लड़कियों का उदाहरण कुछ इस तरह से दिया जाता था "फलाना साहब का लड़का या लड़की रात को जाग कर पढाई करता है या करती है। ऐसे ही बच्चे कामयाब होते हैं। इसको तो कोई चिंता ही नहीं है बस थोड़ा होमवर्क करके और खा कर सोना है। इसको भी जागने को कहो ,नहीं उठता है तो लगाओ दो थप्पड़ और सुबह भी उठ कर पढ़ने को बोलो ,सुबह का पढ़ा हुआ याद रहता है। "
शुरुआत में डर के कारण और बाद में मैंने ये मान लिया जितना ज्यादा जाग कर पढाई करो उतना अच्छा होता है। समझ आये या न आये बस जग कर किताब रटते रहो और एग्जाम में अच्छे नंबर लाओ। उस समय मैंने कहीं सुना भी था "जो सोता है वो खोता है और जो जागता है वो पाता है"
कभी कभी तो लिखने का काम इतना मिल जाता था की लिखते लिखते रात के २ या उससे भी ज्यादा हो जाता था। कभी कभी खुद की भी गलती होती थी एक महीने का काम एक दिन में कर लेते थे अपनी नींद ख़राब करके।
नींद ख़राब होना |
परीक्षा के लिए तो रात को और ज्यादा देर तक पढ़ना पड़ता था। सुबह जल्दी उठकर फिर से पढाई करना पड़ता था। धीरे धीरे स्कूल के दिन बीते ,कॉलेज के दिन बीते और नींद ख़राब करने का ये सिलसिला चलता रहा। कभी मजबूर होकर तो कभी खुद की मर्जी से। इसका असर ये हुआ की जब तक मैं छोटी क्लास में था रट कर अच्छे नंबर ले आता था। लेकिन जैसे जैसे मैं बड़ा होता गया मुझे पढाई में ध्यान लगाने में कठिनाई होने लगी। ज्यादा जुखाम होने लगा और एक बार जुखाम होता तो जल्दी ठीक नहीं होता और बाद में पता चला की मुझे जुखाम नहीं है ये नाक की कोई समस्या है जिसमे हमेशा जुखाम जैसी हालत होती है और कभी कभी साँस लेने में भी तकलीफ होती है। इस समस्या के कारण मैं एक हफ्ते हॉस्पिटल में एडमिट भी हुआ था। अपच की भी समस्या होने लगी। कभी कभी बहुत कोशिश करने के बावजूद नींद नहीं आती थी। मैं बहुत समय से एक्सरसाइज भी करता था लेकिन मेरे शरीर पर एक्सरसाइज का कोई फर्क नहीं दिखता था। हालाँकि इन सब समस्याओं के और भी कारण थे लेकिन इस सब समस्याओं के पीछे मुख्य कारणों में से एक था पूरी नींद न लेना।
अच्छा महसूस नहीं होना |
धीरे धीरे पढाई के दिन पुरे हुए और रोजगार के लिए संघर्ष वाले दिन शुरू हुए। अब पढाई के तानो की जगह नौकरी के तानों ने ले लिया। कई तरह के फार्म भरे ,बहुत सारी परीक्षाएं दिए ,बहुत जगहों पर भटका ,जेब खर्चा के लिए भी कई काम किये। लेकिन नींद ख़राब करने का सिलसिला चालू था कभी मज़बूरी में तो कभी खुद की ख़ुशी से जैसे दोस्तों के साथ फिल्म देखना ,रात को बातचीत करना कभी ग्रुप में बैठकर तो कभी मैसेज या फ़ोन करके।
कहते हैं न की किसी की मेहनत बेकार नहीं जाती। मेरी भी नहीं गयी। लगातार कोशिश करते रहने के कारण आखिर एक दिन कहने लायक एक अच्छी नौकरी मिल गयी। लेकिन यहाँ भी नींद के साथ समझौता करना पड़ा। काम तो रिसर्च का था लेकिन अगर जॉब के समय की बात करुँ तो जैसे की प्राइवेट जॉब्स में होता है। शिफ्ट में काम होता है। मेरा शिफ्ट दोपहर से लेकर आधी रात तक का था और अगर जरुरत पड़ी तो उससे भी ज्यादा देर तक काम करना पड़ता था। अब भी घर में ज्यादा सोने का ताना सुनना पड़ता था। अब घरवालों को भी समझना चाहिए की जो बंदा आधी रात तक जॉब करे और स्मार्टफोन पर थोड़ा टाइम पास करे, वो अगर दिन में थोड़ा सो ले तो क्या बुरा है। मैं कितने भी देर से सोऊँ सुबह उठकर योग और दूसरी एक्सरसाइजेज जरूर करता था इस कारण मैं बहुत फिट दिखता था और गुडलुकिंग भी था। लेकिन अपच और दूसरी समस्यांए पूरी तरह ठीक नहीं हुई थी।
मैंने इन सब समस्याओं पर रिसर्च करना चालू किया। रिसर्च करने पर पता चला की ये जो भी समस्याएं हैं इनका कारण हमारी बदलती या गलत लाइफस्टाइल है। इन सबमें नींद की भी अहम् भूमिका है। जब मैंने नींद के ऊपर रिसर्च किया तो पाया की नींद एक प्रकृतिक प्रक्रिया है और बहुत जरुरी भी है। हमारे लिए ७ से ८ घंटे की नींद बहुत ही जरूरी होती है।
भरपूर नींद |
नींद के फायदे --
नींद के दौरान हमारे शरीर में कई जैविक गतिविधियां होती है जैसे शरीर की
कोशिकाओं की मरम्मत होती है। नयी ऊर्जा मिलती है। शरीर में हारमोन और प्रोटीन जैसे अणु बनते हैं।
हम जितना बेहतर नींद लेंगे हमारा मूड उतना ही बेहतर होगा।
नींद जरुरी है |
नींद हमारे दिल को मजबूत करने में मदद करती है।
नींद हमारे शरीर के बिमारियों से लड़ने की क्षमता को मजबुत बनाती है।
नींद से याददाश्त में सुधार होता है।
अगर आप फिट रहने के शौक़ीन है तो अच्छी नींद आपको एक्सरसाइज में बेहतर प्रदर्शन करने और अच्छी सेहत बनाने के लिए बहुत जरुरी है।
अच्छी नींद से काम करने और उत्पादन करने की क्षमता बढ़ती है। इत्यादि।
नींद पूरी और सही से ना लेने पर ---
अगर हम पूरी नींद ना लें तो हमारा दिमाग सही से काम नहीं करता है।
याददाश्त ठीक नहीं रहती।
नींद की कमी-खराब मूड |
शरीर की बिमारियों से लड़ने की क्षमता कमजोर होती है।
कैंसर ,मधुमेह जैसी बीमारियां होने का जोखिम बढ़ सकता है।
पाचन क्रिया पर बुरा असर होता है।
सोचने की समस्या हो सकती है।
दुर्घटना होने की संम्भावना बढ़ जाती है।
आप तरोताज़ा नहीं महसूस करेंगे।
आप चिड़चिड़े हो सकते है। इत्यादि
हमें नींद के बारे में जागरूक होने की जरुरत है। कोई अगर ज्यादा सो रहा है तो उसको ताना मारने के बजाय सोचने की जरुरत है की वो ऐसा क्यों कर रहा है ?कारण क्या है ? चाहे पढाई हो या करिअर नींद के साथ हमेशा समझौता करना सिर्फ गलत ही नहीं खतरनाक भी है।
लॉक डाउन के बाद से तो ज्यादातर लोगो का घर से ही काम चल रहा है। आप चाहें तो ७ से ८ घंटे की नींद लें और उसके फायदे को महसूस करें और अपने आसपास भी जागरूकता फैलाएं क्योंकि ये लगता हल्का है लेकिन मुद्दा गंभीर है।
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