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हम सबने अपने जीवन में कई सारी कहानियाँ पढ़ी और सुनी हैं चाहे वो किसी भी धर्म से संबंधित हों ,दुनिया के किसी भी कोने से सम्बंधित हों , या किसी भी भाषा से सम्बंधित हों। ये कहानियाँ होती बहुत मजेदार हैं और सुनने में काफी अच्छी लगती हैं। ये कहानियाँ सच्ची हैं या काल्पनिक ये तो नहीं पता लेकिन अगर इन कहानियों पर गौर किया जाये तो ये हमें आज के दौर में भी हमें कैसे रहना है ,क्या सही है,क्या गलत है आदि निर्णय लेने में हमारी मदद करती हैं।
निर्णय |
ऐसी ही एक कहानी है हिन्दू महाकाव्य महाभारत की। इसमें गुरु द्रोणाचार्य जो की पांडवों के गुरु थे और पांडवों को युद्ध और हथियारों के इस्तेमाल की शिक्षा देते थे।
एक बार उन्होंने एक पेड़ पर नकली चिड़िया लटकाकर पांडवों की धनुर्विद्या की परीक्षा लेने का निर्णय लिया। उन्होंने सभी पांडवों को बुलाया और बताया की तुम सबको बारी बारी से पेड़ पर लटकी हुई उस चिड़िया की आँख पर निशाना लगाना है। सभी तैयार थे।
गुरु द्रोणाचार्य ने एक एक करके सभी को बुलाया और निशाना लगाने से पहले सबसे एक सवाल पूछते की तुमको सामने क्या दिख रहा है? उनका जवाब होता सामने मुझे आसमान दिख रहा है ,पेड़ दिख रहा है ,पते दिख रहे हैं,चिड़िया दिख रही है इत्यादि। ऐसा जवाब सुनकर गुरु द्रोणाचार्य ने किसी को भी चिड़िया की आँख में निशाना नहीं लगाने दिया। और इस तरह से पांच पांडवों में से चार उस परीक्षा में पास नहीं हुए।
लक्ष्य |
फिर अंत में अर्जुन की बारी आयी जो की पांचो पांडवों में से एक थे। गुरु द्रोणाचार्य ने अर्जुन से भी वही सवाल किया की तुम्हे सामने क्या दिखाई दे रहा है ? अर्जुंन ने जवाब दिया की मुझे सामने चिड़िया की आँख दिखाई दे रही है जिसमे मुझे निशाना लगाना है। यह जवाब सुनकर गुरु द्रोणाचार्य ने अर्जुन को निशाना लगाने का मौका दिया और अर्जुन ने निशाना भी बिलकुल सही लगाया।
इसके बाद गुरु द्रोणाचार्य ने सबको बताया की जैसे अर्जुन का ध्यान निशाना लगाते समय सिर्फ चिड़िया की आँख पर था वैसे ही हमारे सामने जो भी लक्ष्य हो हमारा ध्यान भी उस समय अपने लक्ष्य पर होना चाहिए इधर उधर ध्यान नहीं देना चाहिए या ये भी कह सकते हैं की एक समय पर एक ही काम पर ध्यान लगाना चाहिए और उसे सही से करना चाहिए। इस कहानी से हमें अपने जीवन में फोकस का महत्व समझ में आता है।
जरा सोचिये अगर अर्जुन उस समय चिड़िया की आँख पर फोकस करने के बजाय किसी और हथियार के बारे में सोच रहे होते जैसे की तलवार चलाना या गदा चलाना तो क्या वो उस परीक्षा में सफल हो पाते और उस नकली चिड़िया की आंख में निशाना लगा पाते।
जैसे इस कहानी के हीरो अर्जुन हैं। वैसे ही सभी अपने अपने जीवन में हीरो हैं। सबके अंदर अपना हुनर है ,अपनी कमियां हैं और अपने लक्ष्य हैं। हम सबको अपने हुनर को निखारना है और कमियों को पहचान कर उनको दूर करना है ये ध्यान में रखते हुए की हमारा लक्ष्य क्या है ?
ध्यान |
फोकस न करने की गलती मैं और मेरे दोस्त भुगत चुके हैं। उन दिनों ग्रेजुएशन होने के बाद हम कुछ दोस्तों का एक ग्रुप बन गया था। उसका कारण ये था उनमे से मेरे कुछ दोस्त स्कूल के समय के थे। लेकिन जो असल वजह थी वो ये थी की हम सब इंडियन आर्मी में अफसर बनना चाहते थे और सब ने एन सी सी की पूरी ट्रेनिंग ले रखी थी। हम सब अफसर बनने के सपने देखते रहते थे उसकी तैयारी भी करते थे मानसिक ,शारीरिक हर तरह से।
उन दिनों मैंने अपनी पूरी दिनचर्या फ़ौज की दिनचर्या के अनुसार ढाल लिया था। क्योंकि मैं एक एन सी सी कैडेट भी रह चूका था और दिन की शुरुवात से लेकर बिस्तर पर जाने तक का सारा टाईमटेबल का और रहने के तरीके का मुझे अनुभव था इसलिए मेरे लिए फ़ौज के दिनचर्या में ढलना कोई बड़ी बात नहीं थी। सुबह जल्दी उठकर दौड़ने जाना ,योग और दूसरी कसरतें करना , दिन में परीक्षा के लिए तैयारी करना ,शाम को बाहर निकलकर कोई खेल खेलना और फिर से कसरत करना और दोस्तों के साथ मिलकर परीक्षा से सम्बंधित बातें करना या किसी मुद्दे पर समूह बनाकर चर्चा करना। यह सब मेरे रोज का काम था। हमेशा एक फ़ौज के अफसर बनने का सपना देखता रहता था और एन सी सी की ट्रेनिंग पूरी करने के बाद तो ये लगने भी लग गया था की अब तो हम अस्सी प्रतिशत अफसर बन ही चुके है बस थोड़ी और मेहनत करके सौ प्रतिशत अफसर बन ही जायेंगे।
क्योंकि हम सब मिडिल क्लास फॅमिली से थे तो हमारे लिए किसी एक चीज़ पर फोकस करना आसान नहीं था। कभी घरवालों के दबाव में आकर तो कभी जल्दी नौकरी पाने के चाह में हम लोग जो भी फॉर्म निकलता सभी भरते थे और सभी के एग्जाम देने जाते थे। तैयारी एक की भी सही से नहीं हो पाती थी।
ये भी सही है की मैं और मेरे दोस्त फ़ौज का अफसर बनने के लिए जी जान से लगे हुए थे लेकिन हम लोग सिर्फ एक चीज़ पर फोकस करने के बजाय जो भी नौकरी का फॉर्म निकलता हम वो भर देते थे ये सोचकर की अगर इसमें नहीं हुआ तो किसी में तो होगा। इस कारण से होता ये था की हम जो दिनचर्या फॉलो करते थे उसमें बहुत डिस्टर्बेंस हो जाता था हम मोटिवेटेड होते हुए भी अपना सौ प्रतिशत फ़ौज के अफसर वाली तैयारी में नहीं दे पाते थे क्योंकि सभी परीक्षाओं के अपने सलेबस होते थे ,अलग अलग जगहों पर जाना होता था ,कभी सफर की थकान ,कभी तबियत बिगड़ना , इतने सारे एग्जाम देना होता था तो सभी को समय देना और सभी पर फोकस करना मुश्किल था। जितने भी मेरे दोस्त थे जो मेरी तरह असफल हुए उनकी असफलता की और वजह भी हो सकती हैं लेकिन एक मुख्य वजह जो मुझे समझ आती है वो है फोकस की कमी।
उन दिनों आज की तरह फॉर्म भरने की ऑनलाइन सुविधा नहीं होती थी। ज्यादातर फॉर्म ऑफलाइन ही भरे जाते थे। फॉर्म भरने से लेकर भेजने तक का प्रोसीजर बहुत ही लम्बा और थका देने वाला होता था। एग्जाम देने के लिए शहर से बाहर जाना पड़ता था। एक जगह फोकस न कर पाने की वजह से न तो हम अफसर वाला इंटरव्यू ही क्लियर कर पाए और न ही कोई दूसरा एग्जाम।
अगर हम किसी एक चीज़ को ध्यान में रखकर उसकी तैयारी करते तो निश्चित ही हमे सफलता मिल गयी होती। उदाहरण के तौर पर हम उस समय अफसर बनना चाहते थे। हम लोगों को सबसे पहले तो ध्यान देना चाहिए था अफसर होता क्या है ?उसकी जिम्मेदारियां क्या है ?हममे अफसर बनने के लिए क्या क्या गुण चाहिए ?
सफलता |
हममें क्या कमियां है ,क्यों हैं ,उन्हें कैसे दूर किया जा सकता है ? अगर पूरी तैयारी के बावजूद हम रिजेक्ट हो रहे हैं तो उसके पीछे कारण क्या हो सकता है ? हमे आगे इसमें कोशिश करना चाहिए या दूसरा विकल्प ढूढ़ना चाहिए जिससे की हमारा समय और मेहनत बेकार न जाए। अगर दूसरे शब्दों में कहूं तो एक समय में एक लक्ष्य तय करके उसके सारे सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं को ध्यान में रखकर सही से तैयारी करना चाहिए।
इस लेख के आधार पर हम समझ सकते हैं की हमारे जीवन में फोकस का कितना महत्व है। उम्मीद करता हूँ की मेरे इस लेख से आप लोगों को सही मार्गदर्शन मिलेगा और कम से कम आप वो गलती करने से बच जाएँ जो मैंने और मेरे दोस्तों ने की हैं।
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