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आज योग और टहलने के बाद अपने घर के छत पर सुबह की धूप ले रहा था। देश ,समाज और आज की परिस्तिथियों के बारे में सोचते हुए ये ख्याल आया की क्यों न हम अगर ये मान लें की हमारा शरीर ही हमारा मंदिर है ,मस्जिद है ,चर्च है या हर उस ईमारत के समान है जहाँ माना जाता है की भगवान् का वास है।
सोचना |
हम अपने शरीर को भगवान की जगह मान कर उसका ख्याल रखें तो कितना अच्छा होगा। जैसे किसी पूजा वाली जगह का हम सही से और बहुत ही दिल से ख्याल रखते हैं जैसे वहां किसी प्रकार की गन्दगी न हो इसलिए सफाई का बहुत ध्यान रखा जाता है। वहां कोई गलत काम न हो इसका भी ख्याल किया जाता है। कोई भी बुरी या नुकसानदायक चीज़ लाने की वहां पर पाबन्दी होती है। अगर वहां कोई कमी रह जाये या किसी हिस्से में कोई समस्या आ जाये तो तुरंत और बहुत ही श्रद्धा से उसका उचित उपाय किया जाता है। इसी तरह से अगर हम अपने शरीर का ध्यान रखें जैसे अपने आसपास गन्दगी न रखें। शरीर की सफाई का बहुत ध्यान रखें। कोई भी गलत आदतों से बचें जो शरीर के लिए नुकसानदायक हो। कोई भी ऐसे चीज़ न खाएं या इस्तेमाल करें जो शरीर को नुकसान पहुचायें। और अगर शरीर बीमार पड़ जाये या किसी तरह की कोई तकलीफ हो तो पुरे लगन और श्रद्धा से उसका उपाय करें। किसी भी कारण से शरीर की समस्या को टालने से बचें और जल्दी उसका उपाय करने की आदत बनायें। क्योंकि कोई भी समस्या हो उसकी शुरुवात छोटे स्तर से ही होती है। इसलिए समस्या को शुरुआत में ही हल कर लेना सही होता है।
सही विचार |
अब अगर हम ये मान लें हमारा शरीर मंदिर है तो ये मानना भी सही होगा की हमारा भगवान् भी हमारे मन में है। हम जब चाहें उससे बात कर सकतें है ,कोई भी प्रार्थना कर सकते हैं ,सही गलत का विचार विमर्श कर सकते हैं इत्यादि।
अब अगर हम ये मान लें की शरीर हमारा पूजास्थल है और हमारे मन में ही भगवान् है तो ये मानना भी सही होगा की किसी भी तरह का कसरत करना ,योग करना इत्यादि पूजा करने के समान है जिनसे तन के साथ मन की भी सेवा होती है।अच्छा और पौस्टिक खाना भगवान को भोग लगाने के सामान होगा जिससे शरीर स्वस्थ और दिमाग भी अच्छा रहेगा। किसी ने सही कहा है की स्वस्थ्य शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का विकास होता है।
अगर शरीर स्वस्थ होगा तो हमारा दिमाग भी स्वस्थ होगा। और अगर शरीर के साथ दिमाग स्वस्थ होगा तो हर चीज़ के प्रति हमारा नजरिया भी सकारात्मक होगा और अगर हमारा नजरिया हर चीज़ के प्रति सकारात्मक होगा तो हो सकता है की दुनिया की बहुत सारी समस्याओं का हल निकल जाये जैसे मजहब के नाम पर फालतू बहस , गलत रिवाजों से छुटकारा ,अलगाववाद वाली सोच से छुटकारा ,प्रकृति को नुकसान वाली सोच से छुटकारा ,मांसाहार वाली सोच से छुटकारा इत्यादि।
वैसे तो ये मेरे व्यक्तिगत विचार हैं और ये जरुरी नहीं की सभी इससे सहमत हों लेकिन अगर सभी सहमत हों तो कितना अच्छा हो सकता है। कोई ज्यादा बीमार नहीं पड़ेगा और ज्यादा बीमार नहीं पड़ेगा तो दवाइयों और बीमारी पर ज्यादा खर्च से बच जायेगा। थोड़ा बहुत बीमार या शारीरिक समस्या हो तो कोई बात नहीं लेकिन इतना तो उम्मीद कर सकता हूँ की कोई बड़ी बीमारी होने की आशंका नहीं रहेगी।
अच्छी सोच |
मैंने अपने आसपास ऐसे बहुत से लोगों को बीमारी से दुखी और बर्बादी की कगार पर आते देखा है क्योंकि कोई भी बीमारी हो अगर वो किसी कारण से हद से ज्यादा बढ़ जाये तो जानलेवा साबित हो सकती है और सारी जमापूंजी भी खर्च करा सकती है।
हालाँकि ऐसे हालत से निपटने की लिए आजकल इन्शुरन्स पालिसी के विकल्प हैं और जोर शोर से इनका प्रचार भी होता है और लोग पॉलिसीस को बहुत महत्व भी देने लगे हैं। ये एक बहुत अच्छी बात है इन्सुरन्स पॉलिसीस जैसे चीज़ों को महत्व देना भी चाहिए। लेकिन ये भी सोचना चाहिए की इन सब चीज़ों को महत्व देने की नौबत क्यों आ रही है। आखिर सही से समझा जाये तो अपनी सेहत अपने ही हाथ में है। हम चाहें तो सेहत के प्रति जागरूक रहकर अपने आप को बिमारियों से मुक्त रख सकते है और चाहे तो लापरवाही और गलत आदतों से अपने आप को बिमारियों का घर बना सकते हैं। सेहत के प्रति जागरूकता और सही आदतों से अनजाने में हुई बीमारी या किसी शारीरिक परेशानी से छुटकारा भी पा सकते हैं। इसके अलावा हम एहतियाती तौर पर इन्शुरन्स पालिसी वाला ऑप्शन भी अपना सकते हैं। वैसे आजकल जिस तरह के हालात हैं इन्शुरन्स पालिसी लेना बहुत जरुरी है।
इसके अलावा मैंने और भी बातें की जैसे की मजहब के नाम पर झगड़ा और फालतू बहस ख़त्म हो सकता है क्योंकि जब अपने शरीर को ही पूजा का स्थल मानने लगेंगे और अच्छी आदतों को अपनाकर भाईचारे को महत्व देने लग जायेंगे ,सकारात्मक सोचने लगेंगे तो ,मंदिर ,मस्जिद ,चर्च इत्यादि का तो सवाल ही नहीं रह जायेगा। इसके अलावा फालतू रीती रिवाज़ों पर पैसा और समय लगाने के बजाय किसी अच्छी चीज़ पर पैसा और समय का उपयोग होगा। अलगाववाद की समस्या चाहे वो पारिवारिक हो ,दो लोगों के बीच विचार न मिलने से हो या दो समूहों के विचार न मिलने से हो। हल हो सकते हैं क्योंकि मेरा मानना है की अच्छी सेहत की वजह से जब सभी सकारात्मक सोच रखेंगे तो समाज में नकारात्मक चीज़ें होनी बंद हो सकती हैं।
सकारात्मक कदम |
इनके अलावा मैंने मांसाहार वाली सोच से छुटकारा की बात की वैसे तो ये मेरा वयक्तिगत मत है और ज्यादातर लोग इससे सहमत नहीं होंगे लेकिन मेरे ख्याल से ये सभी जानते हैं की उन जीवों में भी जान होता है और उन जीवों को मारने या उनके साथ गलत करने पर उन जीवों को भी उतनी ही तकलीफ होती है जितनी की हमको होती है। जरा सोचिये कौन से ऐसे पिता समान भगवान होंगे जो ये चाहेंगे की उनके एक बेटा(मानव) दूसरे बेटे(जीवों) को रिवाज के नाम पर मारकर या अपने स्वार्थ के लिए उन जीवों को तकलीफ देकर श्रद्धा भक्ति दिखाए तो उन्हें खुशी होगी। हमें तो जिओ और जीने दो सिद्धांत पर चलना चाहिए।
ये बात भी सही है की इस दुनिया में अपनी भूख मिटाने के लिए एक जीव दूसरे जीव को मारता है। ये ऐसे ही क्यों है ये हम कुदरत या फिर भगवान् पर ही छोड़ देते हैं। लेकिन हमें उस कुदरत या भगवान् ने सभी जीवों से बेहतर बनाया है हम सोच सकते हैं की क्या होना चाहिए या क्या नहीं। अगर विज्ञान की माने तो मानव शरीर का जो पाचन तंत्र होता है वो मांसाहार पचाने के लिए नहीं होता है। मांसाहारियों में पाचन सम्बन्धी समस्या होने की अधिक संभावना होती है। ये बात आप गूगल करके भी जान सकते हैं। लेकिन जो भी हो,हम अपने शरीर और अपनी सोच से हम दुनिया की समस्याओं का समाधान कर सकते हैं।
जरा सोच कर देखिये ये एक दृष्टिकोण जीवन की कई समस्याओं का समाधान कर सकता है।
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