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चुप रहना-अच्छा या बुरा

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दोस्तों कहीं न कहीं हम सबको ये उलझन रहती है की अगर कोई समस्या आ गयी तो उसपर हमारी प्रतिक्रिया कैसी होनी चाहिए। हमें उस समय बोलना चाहिए या चुप रहना चाहिए। बोलना ज्यादा अच्छा होता है या चुप रहना या ये भी कह सकते हैं की किसी समस्या का हल बोलने से निकाला जा सकता है या चुप रहने से भी समस्या हल हो सकती है। मेरे जीवन में भी कुछ ऐसी घटनाएँ घटी है जिनके माध्यम से मैंने इसका जवाब निकालने की कोशिश किया है। 

चुप रहना-अच्छा या बुरा
सोचना 

रेलवे प्लेटफॉर्म पर साइकिल चलाना - उन दिनों हम नए नए ध्रांगध्रा में आये थे। ध्रांगध्रा गुजरात की एक जगह है। मेरे पापा एक फौजी थे और उनकी पोस्टिंग ध्रांगध्रा में हुई थी। उन दिनों हमारे पास कहीं आने जाने की लिए एक ही साधन था साइकिल जिससे मेरे पापा अपने रेजिमेंट जाते थे और बाकि जगहों पर भी जाते थे। 

मैंने उन दिनों नया नया साइकिल चलाना सीखा था। मुझे साइकिल चलाना बहुत पसंद था इसलिए जब भी और किसी की भी साइकिल चलाने का मौका मिलता था तो मैं वो मौका छोड़ता नहीं था।

उस दिन भी वही हुआ मेरे पापा अपने किसी परिचित से मिलने ध्रांगध्रा रेलवे स्टेशन पहुंचे मुझे भी अपने साथ लेकर साइकिल पर। स्टेशन पहुँचने के बाद वो एक जगह बैठ कर उस परिचित से बात करने लगे। मुझे मौका मिला और मैं साइकिल लेकर चलाने निकल पड़ा। साइकिल चलाते हुए थोड़ा आगे जाने के बाद एक आदमी ने मुझे रोकने की कोशिश की लेकिन मैं उसे देखते हुए बिना कोई भाव दिए आगे बढ़ गया। 

चुप रहना-अच्छा या बुरा
साइकिल 

जब मैं साइकिल चलते हुए वापस जा रहा था तब वो आदमी मुझे फिर से दिखा। उसके साथ और भी लोग थे। उन सब ने मुझे रोक लिया। वो आदमी गुजराती में बोले जा रहा था। मैं चुपचाप देख रहा था और सुन रहा था। मुझे उस आदमी की उम्र (जो की ज्यादा थी),हाव-भाव, और आसपास के लोगों के बर्ताव से समझ में आ गया की वो आदमी रेलवे का कोई बड़ा अधिकारी है और प्लेटफार्म पर साइकिल चलाना मना है। 

एक तो अनजाने में हुई गलती। भाषा भी समझ में नहीं आ रही थी। मैं बस चुपचाप उन्हें देख रहा था और सुन रहा था। 

मुझे एकदम से चुप देखकर उस अधिकारी को और बाकी लोगों को आश्चर्य हुआ। वहां खड़े आदमियों में से एक आदमी ने कहा मुंग छे। इतना तो मुझे समझ में आ गया की वो लोग मुझे गूंगा और बहरा समझ रहे हैं और गुजराती भाषा में गूंगा को मुंग कहते हैं। 

चुप रहना-अच्छा या बुरा
चुप रहने का फायदा 

उन लोगों ने मुझे गूंगा बहरा समझा। उन लोगों को मुझ पर दया भी आयी। उस अधिकारी के आदेश पर दो लोग मुझे छोड़ने चल पड़े। थोड़ी दूर चलने के बाद वो लोगों ने मुझे इशारे की भाषा में स्टेशन से बाहर की तरफ जाने को कहा। मेरी नज़र पापा पर पड़ी और मैं उनकी तरफ चल पड़ा और भगवान की कृपा से बच गया। 

उस दिन मैं चुप रहने की वजह से बच गया। वो बात अलग है की मैंने कोई तरकीब नहीं निकाला था की चुप रहूँगा तो वो लोग मुझे गूंगा समझेंगे और मेरे प्रति सहानुभूति दिखाएंगे। उस समय मैं छठवीं क्लास का विद्यार्थी था और उस समय मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था की क्या करूँ इसलिए मैं बिलकुल चुप था और समस्या का समाधान अपने आप निकल गया। यहाँ चुप रहना मेरे लिए फायदेमंद साबित हुआ। 

उस दिन को याद करते हुए मुझे लगता है की अगर जीवन कभी ऐसे हालात हो जाएँ  जब हमें समझ न आये की ये जो हो रहा है क्यों हो रहा है, इसका कौन जिम्मेदार है ,इसका हल क्या है इत्यादि तब हमें कोई गलत कदम उठाने के बजाय हमें अपने आप को शांत रखना चाहिए। सब्र रखते हुए समझने की कोशिश करते रहना चाहिए। कभी कभी चुप रहना भी अच्छा होता है। 

ठेलेवाला ठग - एक दिन मैं एक्स्ट्रा क्लास से घर लौट रहा था। मेरी नज़र रोज की तरह बुजुर्ग ठेलेवाले पर पड़ी जो चॉक्लेट ,बिस्कुट आदि बेचता था। मेरे पास उस समय बीस रूपए थे। मैंने उस ठेलेवाले को बीस रूपए देकर एक रूपए वाली पांच चॉक्लेट ख़रीदा। चॉक्लेट लेने के बाद मैं खड़ा रहा की वह मेरे बाकि के पैसे लौटाएगा। वो इधर उधर अपना सामान ठीक करता रहा और थोड़ी देर में मेरी तरफ देख कर कड़क अंदाज में बोला तुमको चॉक्लेट मिल गया अब जाओ। 

चुप रहना-अच्छा या बुरा
दुकान 

मैं उस समय बच्चा था वो भी अकेला। मैं उसके ऐसे व्यवहार से एकदम सहम गया और पुरे रास्ते हिसाब लगाता रहा तो पता चला चॉक्लेट तो सिर्फ पाँच रूपए की है उसने मेरे पंद्रह रूपए तो लौटाए ही नहीं। लेकिन उसको ये बात बोलने की मेरी हिम्मत नहीं हुई। मैं चुप रहा। घर में भी किसी को नहीं बताया उस ठेलेवाले के बारे में। यहाँ चुप रहना मेरे लिए नुकसानदायक हुआ। मुझे बिना डरे बोलना चाहिए था। अपने घर में भी बताना चाहिए था।

दोस्तों गलत कोई भी सकता है वो चाहे बड़ा हो, छोटा हो , पढ़ा लिखा हो ,अनपढ़ हो। मैं ये तो नहीं कहता की गलत तरीके से बोलना चाहिए या गलत व्यवहार करना चाहिए। प्यार से ही सही लेकिन गलत को गलत और सही को सही कहने की हिम्मत होनी चाहिये। 

सरकारी दवाखाना - एक दिन स्कूल में फूटबाल खेलते हुए मैं फिसल कर गिर पड़ा और मेरे एक हाथ की ऊँगली में चोट लग गयी। मेरे पिता एक सरकारी कर्मचारी थे इसलिए इलाज के लिए मैं वहां के पास के ही एक सरकारी दवाखाना में गया। शाम का समय था वहां कोई लाइन नहीं थी मरीजों की सिर्फ मैं अकेला ही था। लेकिन जो चेक करने वाला कर्मचारी था वो अपने साथ वाले कर्मचारी से इधर उधर की बात करने में व्यस्त था। मुझे इंतज़ार करते करते एक घंटे से ज्यादा हो गया था। कुछ देर बाद उनका एक सीनियर उधर आया और बोला एक मरीज़ बैठा है और आप बातें कर रहे हो। उसने तुरंत अपने सीनियर को जवाब दिया सर वो अभी अभी आया है पुछ लो उससे। उसने बड़े ही आत्मविश्वास से झूठ बोला। मैं कुछ नहीं बोला बस चुपचाप देख और सुन रहा था। जबकि मुझे उसके खिलाफ बोलना चाहिए था। 

चुप रहना-अच्छा या बुरा
घड़ी में समय देखना 

उसका आत्मविश्वास के साथ झूठ बोलना उसके लिए फायदेमंद साबित हुआ। मेरा सच बोलने के बजाय चुप रहना उसकी गलत आदत को बढ़ावा दे गया। 

चुप रहना या नहीं रहना ये कोई बुराई नहीं है। कई लोगों को बहुत बोलने की आदत होती है और कई लोगों को ज्यादा बोलना पसंद नहीं होता उन्हें ज्यादातर चुप रहना पसंद रहता है। 

हमें पता होना चाहिए की कहाँ चुप रहना है और कहाँ बोलना है। जहाँ बोलना चाहिए वहां चुप रहना अच्छा नहीं होता और जहाँ चुप रहना चाहिए वहां बोलना अच्छा नहीं होता है।   

चुप रहना-अच्छा या बुरा
बोलना
चुप रहना-अच्छा या बुरा
चुप रहना 

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