सुनें 👇
पिछले भाग में आपने पढ़ा की कैसे मुझे टहलते हुए और बदले हुए मौसम के कारण ये एहसास हुआ की हमेशा नियमों में बंधना जिंदगी को बोर बना देता है। कभी कभी सामने के हालात को देखते हुए नियम तोड़ना या थोड़ा बदलाव भी जीवन में आनंद ला देता है। इसलिए हमने भी बदलाव कर दिए अपने आज की सुबह के नियम में और बदले हुए मौसम का ,ठंडी ठंडी हवाओं का ,बिलकुल हलकी हलकी बारिश की बूँदों का और हरियाली का आनंद लेते हुए हम आपस में बातें करते हुए आगे चल पड़े।
अब जानिए आगे क्या हुआ हम बदलते हुए मौसम का और सुबह की ठंडी हवाओं का आनंद लेते हुए आगे बढ़ते गए पहाड़ों की तरफ। चलते चलते इधर उधर की बातें होती रहीं। ऐसे ही बातों बातों में भगवान और रीति रिवाजों की बातें शुरू हुई और शुरु वात इस बात से हुई की बहुत सी बातें जो रीति रिवाज और भगवान के ऊपर होती हैं अन्धविश्वास और बिना तर्कों की हैं। एक मित्र ने कहा की हमारे पुराने लोग ऐसे बहुत से रिवाज और मंत्र जैसी चीज़ें बता के गए हैं जो तर्कसंगत भी हैं और हमारे लिए अच्छी भी हैं। एक मित्र ने ये भी कहा की मैं कर्मकांड जैसे की मूर्ति पूजा या आजकल के बाबाओं में यकीन नहीं रखता हूँ भगवान होता है ये मैं मानता हूँ और ये अपने विश्वास पर है। ये कहने के बाद उस मित्र ने अपने पिता के साथ घटी एक सच्ची घटना का उल्लेख किया जिसमें उसने ये बताया की उसके पिता एक माता (देवी ) के भक्त हैं और उन पर बहुत विश्वास करते हैं। एक बार मुसीबत में पड़ने पर कैसे वो उस देवी पर विश्वास के कारण बच गए थे और मुसीबत टल गयी थी। उस मित्र ने ये भी बताया की जलते हुए दिए को देखकर चाहे वो किसी पूजा वाली जगह पर हो या किसी और जगह पर हो एक सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव करता है।
वैसे देखा जाये तो दिए का काम ही है अँधेरे में उजाला करना। यानी की हमारे जीवन में कितनी भी परेशानियाँ हो या हमारा बुरा वक़्त चल रहा हो। ऐसे समय में भी अँधेरे में जलते दिए की तरह ही हमारे अंदर एक सकारात्मक ऊर्जा जरूर होती है जो हमें ये एहसास दिलाती है की हिम्मत मत हारो। कोशिश करते रहो। उपाय जरूर मिलेगा और आगे अच्छा होगा। या दूसरे शब्दों में कहूं तो बुरे समय में या जिंदगी के किसी भी मोड़ पर वो सकारात्मक ऊर्जा जलते दिए के समान हमारे अंदर कुछ अच्छा होने की उम्मीद जगाती रहती है। वैसे दिए और आग का सम्बन्ध मानव के विकास से भी है जब मानव ने आग की खोज की होगी और बाद में दिए जलाने की शुरु वात की होगी। उसके बाद मानव ने काफी हद तक अँधेरे से डरना छोड़ दिया होगा।
इसके बाद मैंने भी अपनी राय रखी की ये सब हमारे विश्वास पर ही निर्भर है। अगर मानो तो भगवान है। अगर नहीं मानो तो नहीं है। ये भी माना जा सकता है की कोई ऊर्जा है जो सबको चला रही है। मैं भी आँख बंद करके कुछ भी नहीं मान लेता हूँ। मैं जिस देवता को मानता हूँ उनकी रीति रिवाज से पूजा करने में या उनकी मूर्ति बना कर तर्कहीन क्रिया कलापों में विश्वास नहीं रखता। बल्कि ये मानता हूँ की मुझमें भी उनकी अच्छाइयाँ आ जाएँ जैसे मैं भी उनकी तरह बलशाली ,बुद्धिमान और अच्छे चरित्र वाला बनूँ और ये महसूस करता हूँ वो हमेशा मेरे साथ हैं और किसी भी तरह की नफरत की भावना से उबरने में मदद करते हैं। और बुरे वक़्त में कोई साथ दे या ना दे लेकिन वो मेरा साथ जरूर देते हैं।
कुल मिलाकर यही निष्कर्ष निकला की एक सकारात्मक ऊर्जा जरूर है जो हमें कुछ अच्छा करने के लिए प्रेरित करती है। और ये हमारे ऊपर है की हम उस ऊर्जा को किस रूप में और कैसे देखते हैं। बस हमें अंधविश्वास और तर्क हीनता से बचना है।
वैसे सुबह का जो माहौल था जैसे की ठंडी हवाओं का चलना और हमें छूना ,दूर दूर तक पहाड़ों जंगलों का दिखना और उनके ऊपर आसमान में बादलों का छाना उसमे भगवान ,विश्वास ,सकारात्मक ऊर्जा के बारे में बात करना काफी दिलचस्प लग रहा था।
उसके बाद हम चले पड़े जंगल से होते हुए सामने वाले पहाड़ की ओर कुछ इधर उधर की बातें करते हुए। पहाड़ के पास पहुंचने पर फौजियों की टोली दिखी जो की स्पोर्ट्स के ड्रेस में थी और दौड़ने के बाद पहाड़ पर चढ़ रही थी।
आगे क्या क्या हुआ जानने के लिए कृपया अगले भाग का इंतज़ार करें। जिसको पढ़ने के बाद आपको अच्छा महसूस होने के साथ जीवन के कुछ महत्वपूर्ण बातों की जानकारी भी मिलेगी।
ये भी पढ़ें -
आज की सुबह भाग -२ नियम तोड़ना भी जरूरी है
Comments
Post a Comment