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शिक्षा और रोजगार

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मान लीजिये आपके सामने एक गिलास भरकर पानी रखा हुआ है और आपको प्यास लगी हुई है, तो आप क्या करेंगे ?सीधी सी बात है ,आप गिलास उठाएंगे और पानी पी जायेंगे। सोचिये अगर ऐसा होता की पहले आप पानी और गिलास की परिभाषा याद कीजिये ,उसके बारे में विस्तार से पता होना चाहिए जैसे पानी पीने की पूरी प्रक्रिया के बारे में पता होना चाहिए। इन सबके बारे में नोट्स बनाइए और फाइल में रखकर सबमिशन कीजिये। टेस्ट दीजिये। हो सके तो इंटरव्यू दीजिये। और उसके बाद इस सबमें मिलने वाले मार्क्स पर ये तय हो की आप पानी पीने के योग्य हैं की नहीं। 

शिक्षा और रोजगार

उसमें भी वेकन्सी ,मेरिट लिस्ट इत्यादि की दिक्कत। हो सकता है इसके लिए रिश्वत भी देना पड़ जाये। और अगर कोई इसका विरोध करे तो उसको कुछ इस तरह के जवाब मिलें -" जानते हो पानी कितनी अमूल्य चीज़ है और कितनी जरुरी चीज़ है।ताज़ा पानी कितना कम है इस दुनिया में ,सिर्फ तीन प्रतिशत पानी ही ताज़ा है इस ताजा पानी का 1% पीने के लिए उपयुक्त है, बाकी जमीन, ग्लेशियरों और बर्फ की टोपियों में बंद है। और उस पानी को तुम्हारे तक पहुंचाने के लिए कौन सी प्रक्रिया करनी पड़ती है ? अरे भाई जब तुम यहीं नहीं जानते की प्यास क्या होती है ? पानी क्या होता है ? तो ऐसे में तुम्हे पानी कैसे दे दिए जाएँ ? बाकि लोग क्या पागल हैं जो दिनरात इतनी मेहनत कर रहे हैं ? "

शिक्षा और रोजगार

सोचिये एक गिलास पानी पीने के लिए इतना सबकुछ करना पड़े की पहले गिलास की परिभाषा याद करनी पड़े। गिलास कैसे बनती है ये पता करना पड़े और याद करना पड़े। पानी कैसे बनता है ? पानी की परिभाषा इत्यादि याद करना पड़े और उसके लिए क्लास लगानी पड़े उसकी फीस भरनी पड़े। उसके बाद एग्जाम देने के लिए फीस भरना पड़े। 

इतना कुछ करने के बाद भी आप ये नहीं कह सकते की आप एग्जाम में पास हो जायेंगे और पानी पीने के काबिल हो जायेंगे की नहीं क्योंकि लिखित परीक्षा ,इंटरव्यू ,मेडिकल ,मेरिट लिस्ट और पता नहीं क्या क्या स्टेज पास करने पड़ेंगे और पता नहीं कौन से स्टेज में पता नहीं किस कारण से आउट हो जाएँ और इन सबके पीछे जो मुख्य वजह है वो ये की पानी देने वाले कम और पानी पीने वाले ज्यादा हैं। 

सोचिये किसी के बारे में ये सुनने को मिले की बेचारे ने पानी पीने की बहुत कोशिश किया और काफी पैसे भी खर्च किये लेकिन आखरी स्टेज के कारण पानी पीते पीते रह गया। पानी पीने के लिए जरुरी है पानी के लिए प्यास होना लेकिन जिन्हे प्यास ना हो वो भी पानी पीने के लिए संघर्ष कर रहे हों  क्योंकि पानी पीना परिवार और समाज में इज़्ज़त वाली बात हो जाये।

और कुछ मेरे जैसे लोग जो परेशान होकर ये कहें की अब बहुत हो गया अब अपने हिस्से का पानी मैं खुद निकालूँगा अब चाहे उसके लिए मुझे कुआँ खोदना पड़े या कोई और तरीका अपनाना पड़े। और तमाम नाकामियों के बाद हमें ये ताना सुनने को मिले की जो लायक हैं और जो सही मायने में प्यासे हैं और मेहनत कर रहे हैं उन्हें पानी जरूर मिलेगा और जो नाकाम हैं वो निक्क्मे हैं और उनकी ही गलती है सिस्टम की कोई गलती नहीं है सिस्टम तो चाहता है की आप पानी पियें लेकिन आप ही तैयार नहीं हैं तो सिस्टम क्या करे। 

सोचिये जिन्होंने पानी देने या बाँटने का ठेका ले रखा हो उनमें भी अलग अलग मत हों। एक मत ये हो सकता है की जो पानी देने वाला है वो मालिक है और तुमको उसका आभारी होना चाहिए की उसकी वजह से तुम्हे पानी मिल रहा है। सोचिये इतनी माथापच्ची करने के बाद और पानी पीने लायक होने के बाद आपको ये मानना है की आप किसी की मेहरबानी से पानी पी रहे हैं। दूसरा मत ये हो सकता है की पानी बाँटने वाले कुछ लोगों की ये विचारधारा हो सकती है की हमारी किस्मत अच्छी है की हमें पानी बाँटने का सौभग्य प्राप्त हुआ है खुद भी पियो भले ही जरुरत से ज्यादा ही पियो और इस्तेमाल करो और दूसरों को भी थोड़ा थोड़ा इस्तेमाल करने दो। 

मुझे ये सब सोचते हुए हिंदी गाने की एक पंक्ति याद आती है "सोचो कभी ऐसा हो तो क्या हो "

सोचिये क्या कुछ इसी तरह की प्रक्रिया शिक्षा और रोजगार देने की नहीं है? ऊपर मैंने पानी को लेकर जो भी बात कही है उसमें पानी की जगह शिक्षा और रोजगार को रखकर देखिये। बचपन से लेकर लगभग १८ और २० की उम्र तक स्कूली शिक्षा पूरी करो। वो पूरी करने के बाद समझ में आता है की ये तो कुछ था ही नहीं। अच्छे रोजगार के लिए तो अभी और भी पैसे खर्च करने हैं,अभी आगे और भी पढाई करनी है । फीस के अलावा और कैसे कैसे पैसे खर्च करने पड़ते हैं ये तो सभी को पता ही हैं बस साबित नहीं किया जा सकता या फिर खुल के नहीं बताया जा सकता है। क्योंकि सबके पास अपने तर्क ,मजबूरियां या वजहें कह लीजिये होंगे। वो कहावत भी तो है जो इस हालात पर सही लगती है "अपनी डफली अपना राग " इतना कुछ करने के बाद भी इसकी कोई गारंटी नहीं होती की आपको नौकरी मिलेगी ही।

और अगर आप अपनी डिग्री वाली शिक्षा पूरी करने के बाद अपनी मनपसंद नौकरी के सुनहरे सपने देखते हैं और फिर से उस नौकरी के लिए फीस भरकर और किसी के मार्गदर्शन में आप जी जान से तैयारी करते हैं। यदि आप उसमें कामयाब हो गए तो आप बहुत अच्छे हैं और यदि आप उस नौकरी को पाने में कामयाब नहीं हुए तो भले ही आप कितने भी अच्छे रहे हों ,आपने कितनी भी जी जान लगाकर मेहनत किया हो। तो आपकी वो इज़्ज़त नहीं रहेगी। कोई आपकी जिम्मेदारी नहीं लेगा ना सिस्टम ना परिवार और समाज। कुल मिलकर गलती आप ही की है क्योंकि आप नाकामयाब हैं और कोई और उसी नौकरी को पाने में कामयाब है।

शिक्षा और रोजगार

वो अलग बात है की सबकी सोच एक जैसी नहीं है कुछ ही लोग बात को समझेंगे ,सहानुभूति दिखाएंगे ,हिम्मत ना हारते हुए और कुछ करने के लिए प्रोत्साहित करेंगे। लेकिन ज्यादातर तो आपको यही एहसास दिलाया जायेगा की आप असफल हैं और एक तरह से सबके लिए बोझ हैं। और ये सिलिसिला चलता रहेगा जब तक की आप अपने खर्चे चलाने लायक कोई और नौकरी या रोजगार का साधन ना ढूढ़ लेंगे। 

ऐसा भी नहीं है की सबकुछ बुरा ही हो रहा है। हमें जो मुलभुत शिक्षा यानि की जो शुरुवाती शिक्षा मिलती है वो बहुत अच्छी मिलती है। वो बचपन शुरुवाती शिक्षा के साथ बहुत ही यादगार और कभी ना भूलने वाला होता है। शायद बहुत सी वजहों के साथ यह भी एक वजह हो सकता है की हम उम्र के किसी भी पड़ाव में हों ,हमारी जो भी हैसियत हो हम अपने स्कूल के दिनों को याद करते रहते हैं। भले ही हम दुनियां के किसी भी कोने में हों हम अपने स्कूल को देखना और याद करना पसंद करते ही हैं। चाहे वो स्कूल किसी बड़े शहर की बड़ी ईमारत में हो या किसी छोटे शहर या गांव में हो। 

लेकिन बात जब युवा वर्ग में और नागरिकों में नैतिकता ,गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और व्यावहारिक शिक्षा,रोजगार की हो और अगर आप इसपर शांति से और सही से  चिंतन करेंगे तो मुझे लगता है आप भी ये महसूस करेंगे की कुछ तो गलत हो ही रहा है जिसमें बदलाव कह लीजिये या सुधार कह लीजिये होने जरुरी हैं।

ऐसा नहीं है की सबकुछ के लिए सिस्टम ही जिम्मेदार है इसमें सबको सोचने की जरुरत है चाहे वो केंद्र की सरकार हो या विपक्ष हो ,आम लोग हों या खास लोग हों या फिर कैसे भी लोग हों सबको सोचना तो पड़ेगा ही सबको एक होकर।

आखिर जीवन जो है वो अनमोल है और सबके लिए सही से जीना जरुरी है। रोजगार हो या शिक्षा हो या कुछ और ये जीवन को सही दिशा और सही से जीने में मदद करने के लिए हैं। कहीं ऐसा ना हो की हमारी ये मानसिकता हो जाये की हमारा जन्म ही सिस्टम के अनुसार जीने के लिए और रोजगार की मजबूरी के लिए हुआ है। अब इससे ज्यादा क्या कहूँ पहले मैंने जो पानी का उदाहरण देकर जो बात कही उम्मीद करता हूँ आप उसके माध्यम से बहुत कुछ समझ गए होंगे। तो अंत में इतना ही कहूंगा पानी को साफ़ रखिये ,उसका सही इस्तेमाल कीजिये ,स्वस्थ्य रहिये और खुश रहिये। 

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