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"मुझसे नहीं होगा" की भावना और निराशा का क्या उपाय है ?

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"मुझसे नहीं होगा" ये वजह कह लीजिये ,ये लाइन कह लीजिये ,सोच कह लीजिये या बहाना कह लीजिये। ये हममें से ज्यादातर या ये कहूं की लगभग सभी लोगों के खास है। खास इसलिए की ये कहना बहुत आसान है और ये हमारे बचपन से ही हमारे साथ साथ है हमारे साथ साथ ये लाइन बड़ी होती जाती है। कुछ लोग समय के साथ साथ इस लाइन को मिटा देते हैं तो कुछ लोग इस लाइन को और बड़ी कर देते हैं इतनी बड़ी कर देते हैं की यह जिंदगी जीने के तरीकों में सरहद से भी ज्यादा पाबंदी का काम करती है।

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मुझे याद है जब मैं ग्यारहवीं कक्षा का छात्र था और मेरा उस क्लास में एडमिशन हुए अभी एक महीने ही हुए थे और एक नया दोस्त भी बन गया था जो की क्लास में मेरे साथ ही बैठता था। हम ब्रेक में भी साथ ही टिफिन का खाना खाते थे और साथ में ही घूमते थे। एक बार हम स्कूल के एक गार्डन में घूम रहे थे। घूमते हुए हम दोनों गार्डन के बीच में पहुंचे जहाँ पर एक बड़ा और चौड़ा नाला था जिसमें से बरसात का पानी गुजरता था। हम दोनों को उस नाले के उस पार जाना था। मैंने जम्प मारा और उस नाले को पार कर लिया लेकिन मेरा वो दोस्त वही रुका रहा और देखता रहा मैंने कहा - "यार, जम्प मार और आजा"।

"मुझसे नहीं होगा" की भावना और निराशा का क्या उपाय है ?
उसने कहा -"मुझसे नहीं होगा मैं काफी भारी हूँ तू हल्का और फिट है"। मैंने कहा -"इसमें भारी होने वाली कौन सी बात है। तू कर लेगा यार ये कौन सा बहुत बड़ा नाला है। तू जम्प मार तो सही"। मैंने उसे ये बात इतने कॉन्फिडेंस से बोला की उसने जम्प मार दिया और इस पार सही सलामत भी आ गया और मेरी तरफ भी देखने लगा जैसे कहना चाहता हो की हाँ ये तो मैं कर सकता हूँ फालतू में डर रहा था। उसके चेहरे पर एक खुशी और कॉन्फिडेंस भी था। दरअसल उसके ना कर पाने की वजह उसके अंदर की वो लाइन थी की मुझसे नहीं होगा जो समय के साथ साथ उसके अंदर बढ़ती जा रही थी और आसपास का माहौल भी था। 

वो दिखने में काफी भरी भरकम था और क्लास के ज्यादातर दोस्त उसके इस हालत का मजाक भी उड़ाते थे और उसने भी ये मान लिया था की वो ऐसा है इसलिए उससे खेलकूद ,दौड़ने जैसे काम नहीं होंगे। वैसे ये बात सही भी है की ज्यादातर हमारे आसपास के जो लोग होते हैं और जो माहौल होता है वो हमें हमारी कमजोरियों की याद दिलाता रहता है और ज्यादातर यही नकारात्मक एहसास दिलाता है की हम उस लायक नहीं है की हम कोई खास काम कर सके और हममें से ज्यादातर लोग भी ये मान लेते हैं की हमसे नहीं हो पायेगा। 

ये भी सही है की हम सबकुछ में कामयाब नहीं हो सकते हैं लेकिन हमारे हाथ में कोशिश करना तो होता ही है। बिना कोशिश के ये मान लेना की हम नहीं कर पाएंगे या हम उस खास चीज़ के लायक नहीं हैं ठीक नहीं है। हम भले ही किसी चीज़ में कामयाब ना हो पा रहे हों लेकिन उस चीज़ के लिए जो हम कोशिश करते हैं वो कभी बेकार नहीं जाती। कोशिश करते रहने से हमे अनुभव तो प्राप्त होता ही है साथ में जो हमने कोशिश के दौरान जो भी सीखा होता है वो जीवन में कभी ना कभी तो काम आता ही है। 

ये जीवन सिर्फ पास -फेल ,सफलता और असफलता के ऊपर तो नहीं टिका हुआ है। जीवन तो जीवन है वो तो आपकी कोशिश पर है की आप कितने सही से और ख़ुशी से जीना चाहते हैं और कोशिश कर रहे हैं। ये भी बात ध्यान देने योग्य है की आप तो ख़ुशी से जीना चाहते है और आप से जितना और जैसे भी हो रहा है आप कोशिश भी कर रहे हैं लेकिन आप दूसरों से अपनी तुलना करके और दूसरों की व अपने आसपास के लोगों की दिल दुखाने वाली बातें सुनकर और निराश होकर ये ना माने की आपसे नहीं होगा। अगर आप ने किसी चीज़ के लिए कोशिश किया हो और अगर आपको उसमे नाकामी हाथ लगी हो तो अपने आप को जितना हो सके कोसने से बचें और दूसरों की नकारात्मक बातों से भी और अपने आप को शांत करने की कोशिश करते हुए ये सोचें की अगला कदम क्या होना चाहिए क्योंकि जो होना था वो तो हो चूका है उसके ऊपर समय गवाने और अफ़सोस करने से कोई लाभ तो नहीं मिलने वाला है। 

"मुझसे नहीं होगा" की भावना और निराशा का क्या उपाय है ?

अगर देखा जाये तो वास्तव में सफलता और असफलता हमारे हाथ में होता ही नहीं है। हमारे हाथ में कोशिश करना है ,अच्छा प्रदर्शन करना है ,असफलता मिलने पर पहले से बेहतर और अलग कोशिश करना है ,असफलता से कुछ सीखना है और अपने अनुसार आगे बढ़ना है दूसरों के अनुसार नहीं। 

इसलिए भागवत गीता में ये बात कही गयी है की कर्म करो फल की चिंता मत करो। क्योंकि हमारे हाथ में कर्म करना ही है। फल या परिणाम हमारे हाथ में होता ही नहीं है। कर्म करना मतलब कुछ भी नहीं कर देना है अच्छे कर्म करना है ,अच्छी कोशिशें करनी हैं। फल देने का काम समय का है। ऐसा भी नहीं है की फल देने का काम समय का है और हमारे हाथ में नहीं है तो हमें कुछ करना ही नहीं है। हम अपने जीवन में कोशिश करने से इसलिए कतराते हैं क्योंकि हम परिणाम से डर जाते हैं और ये भी सोच कर डरते हैं की लोग क्या कहेंगे। 

आपने वो हिंदी गाना तो सुना ही होगा की कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना। और ये भी सच है की लोग जब कहने पर आते हैं खासकर किसी चीज़ में आपकी असफलता पर तो आपको उनकी बात को सुनते हुए अपने आप को काबू में रखना उतना ही मुश्किल होता है जैसे आप किसी पतली डोर पर संतुलन बनाते हुए चल रहे हों और लोग आपका ध्यान भटकाकर आपको गिराना चाहते हों। आपको लोगों की बातें बहुत बुरी लग सकती हैं लेकिन अपने आपको काबू में रखते हुए आपको अपने अनुसार और अपने लिए सही निर्णय लेना है और कोशिश करते रहना हैं। 

वैसे मेरा ये भी मानना है की लोगों को किसी बारे में कुछ भी नहीं कहना चाहिए लेकिन फिर सोचता हूँ किस किस को समझाते रहें। अगर लोगों को समझना ही होता तो इस दुनिया में महात्मा गाँधी और गौतम बुद्ध जैसे महापुरुष आये और चले गए उनसे ही लोग समझ गए होते। बेहतर तो यहीं है की हम अपने आप को समझें और कोशिश करना कभी ना छोड़े। 

इससे सम्बंधित मुझे अपने स्कूल के समय की एक घटना याद आती है। हुआ ये था की उन दिनों हमारे क्लास में कोई मॉनिटर नहीं था। और मॉनिटर बनने के लिए चार दावेदार थे। हमारे क्लास टीचर ने इसका हल निकालने के लिए मतदान कराया। मैं ये कह सकता हूँ की ये मेरे जीवन का पहला ऐसा मतदान था जिसके लिए मेरे सहपाठियों का और मेरा व्यस्क होना जरुरी नहीं था और ये मेरी जिंदगी का पहला मतदान था। हम सबको ये करना था की हम उन चारों में से जिसको मॉनिटर बनाना चाहते थे उसका नाम एक पर्ची पर लिखकर क्लास टीचर के पास जमा करना था। जिसके नाम ज्यादा बार होंगे उसी को मॉनिटर चुना जाना था। 

सबने पर्ची पर नाम लिखकर सर के पास जमा कर दिया। मेरे एक सहपाठी को ज्यादा मत मिले और सर ने घोषणा किया की वही मॉनिटर बनेगा। क्लास ख़त्म होने के बाद सर चले गए। उनके जाने के बाद सभी उस नए मॉनिटर को बधाइयाँ दे रहे थे और बता रहे थे हमने तुझे ही वोट दिया था। जब मैंने उसे बधाई दिया तो वो मुझसे बोला "यार सभी बोल रहे हैं की सभी ने मुझे ही वोट दिया था। अगर सभी ने मुझे ही वोट दिया था तो सभी वोट मुझे ही मिलने चाहिए। जिन्होंने मुझे वोट नहीं दिए वो कौन हैं ?"

मैंने कहा -"हाँ यार, बात तो सही है। मुझे लग रहा है जिन्होंने तुझे वोट नहीं दिया है वो भी कह रहे हैं की तुझे ही वोट दिया है। लेकिन भाई मैंने तो तुझे ही वोट दिया था। बाकि का जाने दे यार अब तू मॉनिटर बन गया है क्या बात है " 

ऐसा कहकर मैंने उसे खुश किया लेकिन सच तो ये है की मैंने भी उसे वोट नहीं दिया था। इसके बाद मुझे शरारत सुझा और मैं एक एक कर के उन सभी के पास जाकर बैठता और कंधे पर हाथ रखकर बोलता -"बड़े अफ़सोस की बात है की आप चुनाव हार गए। आप कुछ कहना चाहेंगे इस बारे में।" वो लोग बेंच पर सर झुका कर हँसने लग जाते और प्यार से मुझे भगा देते। जब मैं तीसरे के पास गया मज़े लेने तो वो पहले से ही तैयार था और मुझे अपने पास आते देखते ही हाथ हिलाते हुए बोला -"ए ,यहाँ मत आ ,जा यहाँ से।"  

मैं मुस्कुराते हुए बोला -" अरे ,ये क्या बात हुई ,भलाई का तो ज़माना ही नहीं है। मैं तो आपका दुःख बाँटने आया था। बड़ा अफसोस हुआ ये जानकर की आप चुनाव हार गए। " ऐसा कहते हुए मैं उससे चिपक कर और उसके कंधे पर हाथ रखकर बैठ गया। और वो बेंच पर हाथ और सर रखकर और मुँह छुपाकर हँसता रहा और कहता रहा -"तू जा यहाँ से। "

तो दोस्तों सोचने वाली बात ये है की मैं जो उनका मजाक उड़ा रहा था लेकिन वो मुझसे तो बेहतर ही थे क्योंकि की बेसक वो हर गए थे लेकिन कोशिश तो किया ही जो की उनके हाथ में था। मेरे हाथ में भी था कोशिश करना लेकिन मैंने कोशिश नहीं किया। और वो छोटा सा चुनाव हार जाने से उनके जीवन में मौके आने तो ख़त्म नहीं हुए। मेरे मजाक से वो लोग तंग नहीं हुए ,क्लास नहीं छोड़ा ,एडमिशन केंसल नहीं कराया। और ना जाने कितने मौके उनकी जिंदगी में आये होंगे जिसमे उनको कामयाबी भी मिली होगी और नाकामयाबी भी मिली होगी। रही बात लोगों की तो जैसे की मैंने उस सहपाठी को कहा की बाकि का पता नहीं लेकिन मैंने तो तुझे ही वोट दिया था। लेकिन सच ये है की मैंने उसे वोट नहीं दिया था वैसे ही हमारी असल जिंदगी में भी होता है कौन अंदर से हमारे बारे में क्या सोचता है और हमारे पीठ पीछे वो हमारे लिए क्या करता है ये हम नहीं जानते है। हमारे हाथ में कोशिश करना है ,सही से मेहनत करना है। अगर हम लोगों की बातों पर ध्यान देने लग जायेंगे तो हम कभी अपने लक्ष्य को ना तो जान पाएंगे और ना उस पर सही से फोकस कर पाएंगे। 

कई बार आपके जीवन में ऐसे मौके आये होंगे जब आप को लगा होगा की काश मैंने भी किया तो आज मेरा भी सम्मान हो रहा होता। अगर सफलता नहीं भी मिलती तो कोई बात नहीं कम से कम कोशिश तो किया होता।  

तो दोस्तों सफलता ,असफलता हमारे हाथ में नहीं है ,लोग हमारे बारे में क्या सोचते है हमारे हाथ में नहीं है। वो अलग बात है की सबकी बात सुननी चाहिए और समझना भी चाहिए। किसी की बात अच्छी लगे या बुरी आप जो अपने जीवन में अच्छा करना चाहते हैं उसके लिए कोशिश जरूर कीजिये और हमेशा खुश रहने की भी कोशिश कीजिये। 

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