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क्या बीते हुए कल का हमारे जीवन में कोई महत्व नहीं होता है ?अगर किसी की भी बात सुनी जाये खासकर प्रेरक वक्ताओं की तो वो ये जरूर कहते हैं कभी ना कभी की बीते हुए कल को भूल जाओ और आज में जिओ और जीवन में आगे बढ़ो। लेकिन वास्तव में ऐसा है नहीं। बीता हुआ कल बिलकुल वैसे ही होता है जैसे किसी कंप्यूटर की कोई ऐसी फाइल हो जो कभी कंप्यूटर के मेमोरी से मिटाई नहीं जा सकती है। उस फाइल को या तो छुपाया जा सकता है या कुछ समय के लिए भुला जा सकता है लेकिन एकदम से मिटाया नहीं जा सकता है। हमारा बीता हुआ कल और उससे जुड़ी यादें कभी ना कभी ,किसी ना किसी बहाने से हमारे सामने आ ही जाती हैं। कुछ यादें हमें अच्छा महसूस कराती हैं और कुछ यादें अफ़सोस और बुरा भी महसूस कराती हैं। ये सोचते समय किसी हिंदी फिल्म का मुझे ये डॉयलाग याद आता है की मुझे अपना वतन याद आता है कभी दर्द बनकर और कभी दवा बनकर।
एक शाम जब मैं अपने परिवार के लोगों को छोड़ने रेलवे स्टेशन पहुँचा तो उस शाम का नजारा देखकर मुझे कुछ साल पहले की एक शाम याद आ गयी। वैसे तो सर्दी का मौसम था लेकिन वो शाम गर्मी के मौसम जैसा महसूस हो रहा था। और वो शाम जिसकी मुझे याद आ रही थी भी गर्मी का ही मौसम चल रहा था। ढलती हुई शाम ,स्टेशन पर आते जाते लोग ,दूर दूर तक फैले हुए प्लेटफार्म , स्टेशन से धीमी धीमी गुजरती हुई हवा। इन सब के कारण मुझे वैसा ही महसूस होने लगा था जैसा की उस शाम हो रहा था जब उसी समय ट्रेन में बैठकर एक परीक्षा देने जा रहा था उत्तर भारत की ओर और अपने गांव के नज़दीक। और वो ट्रेन का सफर अब तक का सबसे यादगार और सुहाना सफर रहा। क्योंकी मेरे आसपास की सीटों पर कुछ बुजुर्ग थे जो की व्यापारी थे जो व्यापार के काम से मुम्बई आये थे और अब वापस इलाहाबाद जा रहे थे। वैसे मैंने अपना एग्जाम सेंटर बनारस भरा था लेकिन हाल टिकट में आया इलाहाबाद था इसलिए मैं भी इलाहाबाद जा रहा था एग्जाम देने।
उन साथ में सफर करने वाले बुजुर्गों के तो बात ही निराली थी क्योंकि उनके पास व्यापार के सामान के साथ सुनाने के लिए ढेर सारे किस्से थे। कभी उनमें से कोई अपने बचपन का मजेदार किस्सा सुनाता ,कोई अकबर बीरबल के किस्से सुनाता ,कोई अपने अनुभव के आधार पर कोई आध्यात्मिक बात बताता।
पुरानी यादें और हील पावर |
वैसे तो सफर के दौरान मैं किसी के साथ जल्दी घुलता मिलता नहीं हूँ लेकिन उन लोगों की बात ही अलग थी। मैं उन लोगों के साथ घुल मिल गया और कुछ अपना सुनाया कुछ उनका सुना। इलाहाबाद का सफर बहुत ही अच्छा और मजेदार गुजरा ।
सफर के दौरान बात करते हुए उनमें से एक बुजुर्ग ने ये राय दिया की आपको अपनी तरफ यानि की अपने गांव में अपने योग्यता के अनुसार कुछ करना चाहिए ऐसा नहीं है की उस तरफ कुछ भी नहीं है अगर करना चाहो तो वहां करने के लिए बहुत कुछ है। सबका कुछ शहरों की तरफ भागना ठीक नहीं है। उनकी बात ठीक भी लग रही थी और वो अनुभव के आधार पर ही कह रहे थे क्योंकि वो खुद एक व्यापारी थे और बड़े शहरों और छोटे शहरों में काम के सिलसिले में सफर करना उनके व्यापर का हिस्सा था। और ऐसा भी नहीं की वो कोई नई बात बता रहे थे मेरे मन में भी यही चल रहा था। मैं रहता तो मुंबई के पास में ही हूँ लेकिन मेरा मन वहां लग नहीं रहा था। उन दिनों जितना हो सकता था मैंने अपनी समझ के अनुसार अपने गांव की ओर बसने की बहुत कोशिश किया। उन दिनों मैं जानबूझ कर किसी भी परीक्षा का केंद्र अपने गांव के पास वाले शहरों को ही चुनता था ताकि मेरा अपने गांव या वहां के आसपास के जगहों पर आना जाना लगा रहे।
लेकिन एक समस्या ये भी थी की गांव के जो मेरे अन्य परिवार के लोगों जैसे की मेरे पिता और ताऊओं में किसी ना किसी बात पर हमेसा मनमुटाव रहता है। इस वजह से मैं उन दिनों अपनी तरफ जाता जरूर था लेकिन अपने मूल गांव जाने के बजाय अपने एक मामा जी के यहाँ जाता था और कुछ दिन वहीं गुजार के आता था। हालाँकि मैं अभी जिस सफर की बात कर रहा हूँ इस सफर से पहले भी मैंने एक सफर किया था और अपने माता पिता और मामाजी की सहमति से थोड़े समय के लिए अपने मूल गांव गया था और सबसे मिलकर आया था। मुझे अचानक आया देखकर उन सबको ताज्जुब हुआ। उन लोगों ने मेरा अच्छा स्वागत किया। हाल चाल पूछा और उस थोड़े समय में मैं जितने लोगों से मिल सकता था मिल लिया और अपने मूल गांव में जितना घूम सकता था घूम लिया।
अपने परिवार के लोगों से मिलना ,अपने खुद के गांव में घूमना ,अपनापन वाला माहौल सब कुछ बहुत अच्छा लग रहा था। और जिंदगी का एक मकसद भी समझ में आ रहा था की मुझे यहाँ के लिए कुछ करना चाहिए लेकिन क्या करना चाहिए ये उस समय समझ में नहीं आ रहा था। मैं बस जॉब के पीछे भाग रहा था और परीक्षाएं दिए जा रहा था। अब मुझे ये तो समझ में आता है की सिर्फ नौकरी के पीछे भागने से चाहे वो नौकरी कितने भी ज्यादा पगार वाली हो उससे मैं ना तो अपने जीवन में अपने मनमुताबिक बदलाव ला सकता हूँ और ना ही अपनी मर्जी से कभी भी अपने गांव आ जा सकता हूँ और ना ही वहां के लिए कुछ कर सकता हूँ। वो अलग बात है की मैं किसी सरकारी नौकरी कह लीजिये या कोई बहुत अच्छी पगार वाली नौकरी कह लीजिये को पाने में सफल नहीं हुआ। मैंने कोशिश तो बहुत किया था।
खैर अब उस दिन पर आता हूँ जब मैं सफर कर रहा था और इलाहबाद तक का सफर बहुत ही अच्छा और मजेदार गुजरा। वो रेलगाड़ी का सफर,इलाहबाद में गुजारे हुए दो दिन , कुछ नए लोगों से जान पहचान ,कुछ समय के लिए मेरे फ़ोन का गुम होना और मेरा कांटेक्ट से दूर होना जिसकी वजह से मेरे घरवालों का परेशान होना और फिर पहले घरवालों से दुबारा कांटेक्ट होना और उसके अगले दिन फ़ोन का फिर से मिलना , सफर के दौरान अपनी तरफ के लोगों की बातें सुनना ,उनके विचार जानना ,उनको समझने की कोशिश करना काफी रोमांचक और अच्छा लग रहा था और मजेदार भी।
एक जगह ऐसे ही रेलगाड़ी का रुक जाना ,चाँदनी रात का समय ,उस चाँदनी रात में दूर तक दिखते हुए कुछ घर और खेत खलिहान और अपने आसपास भोजपुरी वाला माहौल उस समय एक खास तरह के मौके का एहसास करा रहा था। दिलदारनगर से जमानियां तक का सफर भी काफी अच्छा था किसी सुनहरे सपने की तरह। और ये सब अच्छा इसलिए भी लग रहा था क्योंकि पढ़ाई के कारण ज्यादा पाबंदी ,मेरा खुद का किताबों में डूबे रहने की आदत ,बड़े होने के बाद एग्जाम की तैयारिओं के कारण कभी जिंदगी को खुल के जीने का मौका ही नहीं मिला। उसके बाद अपने मामाजी के घर में गुजारे हुए वो दिन उनके परिवार के साथ। स्टेशन के पास मामा का घर होने के कारण एक दिशा से रेलगाड़ियां गुजरती हैं तो दूसरी दिशा से गंगा नदी बहती है। गंगा नदी से निकली हुई नहर और स्टेशन के बीच वो बाजार का भीड़ भाड़ भी काफी यादगार था।
जज्बा |
मुझे गंगा नदी का किनारा ,वहाँ से निकली हुई नहर ,हरा भरा प्राकृतिक नज़ारा बहुत पसंद है। मैं अक्सर सुबह जल्दी उठकर गंगा नदी की तरफ दौड़ने निकल जाता था और वही पर योग और कसरत भी किया करता था और कभी कभी गंगा नदी में नहाकर भी आता था। मैं शाम होने पर भी ज्यादातर वही पर घूमता था। कभी बहती हुई लहरों को निहारता ,कभी तैरती हुई मछलियों को देखता ,बतखों के झुण्ड को पक पक करते हुए कभी पानी के अंदर तो कभी पानी के बाहर आते हुए देखकर मन में आनंद भर जाता था। उसके बाद हरे भरे खेतों और पेड़ पौधों को निहारते हुए गंगा नदी के सफेद रेत से भरे हुए किनारे चला जाता था। कभी वहाँ किनारे पर रुकी हुई नाओं को देखता था तो कभी उन रुकी हुई नाओं में बैठकर कल्पना करता था की ये पानी में कैसे तैरती होंगी।
काश मेरा एग्जाम क्लियर हो गया होता तो आज बात कुछ और होती। वैसे मुझसे जितना हो सकता था मैंने कोशिश बहुत किया था। लेकिन लगता है मेरी किस्मत भी गंगा की उन बहती हुई धाराओं की तरह है जो हिमालय से बहती हुई बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है लेकिन लौटकर अपने उदगम स्थल पर नहीं आती हैं।
वो दिन भी कितने अच्छे थे मैं यहाँ से बाहर निकलने की कोशिश करने लगा था। गांव का अपनापन अपनी तरफ खींचता था। अकेले सफर करने लग गया था। अलग अलग लोगों से मिलना और बात करना बहुत अच्छा लगने लगा था। ज़िन्दगी चलने लग गयी थी आज की तरह रुकी हुई नहीं थी। सही कहा है किसी ने जिंदगी चलती हुई अच्छी लगती है।
फिर से ऊर्जा महसूस करना |
ये सब सोचने के बाद और महसूस करने के बाद मैंने वही ऊर्जा और कुछ कर जाने जज्बा महसूस किया जो मैं उन दिनों किया करता था। लॉकडाउन ,पारिवारिक समस्याओं ,लम्बी बेरोजगारी के उस दौर में मैं काफी निराशा और अकेलापन महसूस कर रहा था और ऐसे में वो दिन याद आना और कुछ कर दिखाने का जज़्बा महसूस करना मेरे लिए दवा का काम कर गया। वैसे मैं इसे एक तरह का हील पावर का नाम दूँ तो गलत नहीं होगा। हील होने का मतलब ही यहीं होता है किसी समस्या या तकलीफ से मुक्ति पाना चाहे वो शारीरिक हो या मानसिक। दोस्तों हमारे जीवन में ऐसे बहुत से पल होते हैं जिन्हे याद करने से वर्तमान में भी हम खुशी से जी सकते हैं और कुछ अच्छा करने का जज्बा भी पा सकते हैं ,किसी भी तरह के तनाव से मुक्ति भी पा सकते हैं। दोस्तों आपके जीवन में जब कभी तनाव और निराशा के क्षण आएं तो अपने कुछ अच्छे पलों को याद करने की कोशिश जरूर करें।
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