Skip to main content

वो मुझे ही ढूढ़ रही थी


सुनें 👇
यह मेरे कॉलेज के दिनों की एक घटना है जिसमे एक दिन मुझे कॉलेज से घर जाते समय एक लड़की दिखी। जानी पहचानी लगी। फिर याद आया की एक समय स्कूल के दिनों में वो मेरी ही क्लास में थी। तब वह काफी मोटी हुआ करती थी लेकिन अब काफी फिट है और खूबसूरत भी। इसके आगे जो कुछ भी हुआ उससे मुझे ये सबक  मिला की भावनाओं में बहकर किसी के भी सामने और कहीं भी किसी के भी बारे में  कुछ भी नहीं बोल देना चाहिए चाहे वो सच ही क्यों ना हो क्योंकि लोग हर बात को गहराई से समझने के बजाय ज्यादातर गलत मतलब ही निकालते हैं।
वो मुझे ही ढूढ़ रही थी
हमेशा की तरह उस दिन भी मैं कॉलेज से निकला घर जाने की लिए अपने स्कूल के दिनों को याद करते हुए। वैसे तो मैं डायरेक्ट बस ना मिलने पर दूसरे स्टॉप तक पैदल ही जाता था। लेकिन उस दिन मैं ऑटो से जा रहा था। उस दिन आसमान में बदल छाये हुए थे और बारिस होने की भी संभावना थी। उस ऑटो में बैठे हुए अभी कुछ ही दूर पहुंचा होऊंगा की ऑटो वाले ने एक लड़की के सामने ऑटो रोक दिया जो की एक सिग्नल से थोड़ी दूर सड़क के किनारे खड़ी थी। शायद वो लड़की उसकी पहचान की रही होगी। वह ऑटोवाला उसे ऑटो में बैठने के लिए बोल रहा था लेकिन वो मना कर रही थी की मुझे नहीं बैठना है ,नहीं जाना है। फिर उस ऑटो वाले ने मुझे दूसरे ऑटो में बैठने को कहा। मुझे ताज़्ज़ुब हुआ लेकिन मैं दूसरे ऑटो में बैठ गया ये सोचकर की शायद वो लड़की मेरे कारण ऑटो में बैठने में आनाकानी कर रही थी। मुझे वो कुछ जानी पहचानी लग रही थी। फिर एकदम से याद आया अरे ये तो मेरी क्लासमेट थी। पहले बहुत मोटी हुआ करती थी और हँसमुख भी। हमेशा हंसती ही रहती थी और बहुत मजाक भी करती थी। इतने दिनों बाद देखकर उसे पहचान नहीं पा रहा था क्योंकि अब वो पतली और फिट हो चुकी थी और काफी खूबसूरत भी दिख रही थी। उससे संबंधित कुछ भूली यादें ताज़ा हो गयी। मैं कन्फ्यूज़ हुआ की उससे बात करूँ की नहीं। 
वो मुझे ही ढूढ़ रही थी
अपने संकोची स्वभाव की वजह से मैंने उससे बात नहीं करना ही सही समझा वैसे भी जब वो मेरी क्लास्मेट थी तब भी मेरी उससे बातचीत नहीं होती थी और कॉलेज के दिनों में भी मैं लड़कियों से दूर ही रहता था। लेकिन मन में बार बार ये शंका जरूर उठ रही थी की आखिर वो ऑटोवाला उसे बार बार बैठने के लिए क्यों कह रहा था उसके मना करने के बावजूद भी। अब क्या है की थोड़ा बहुत इमोशनल अटैचमेंट तो होगा ही आखिर वो मेरी क्लासमेट रह चुकी है वो भी स्कूल के दिनों की। 

उसके पिता और मेरे पिता सेना की एक ही रेजिमेंट में तैनात थे और वो रेजिमेंट के सबसे बड़े अधिकारी की बेटी थी। और अब मैं इतना तो समझ ही सकता हूँ की जो भी वजह रही हो लेकिन कोई ऑटोवाला उसे मजबूर नहीं कर सकता। इसी सोच विचार में मैं दूसरे ऑटो में बैठा वहां से दूर जा चूका था घर की ओर। 
लेकिन ये बात यही पर ख़त्म नहीं हुई। उसके कुछ दिनों बाद वो मुझे फिर दिखी। तब मैं अपने एक दोस्त के साथ एक खड़े ऑटो में बैठा था कंप्यूटर क्लास ख़त्म होने के बाद कॉलेज जाने के लिए और वो थोड़ी ही दूर खड़ी थी। किसी ऑटो के इंतज़ार में खड़ी होगी शायद। 

मैंने उसे देखते हुए कहा "यार मैं उस लड़की को जानता हूँ शायद। " 
दोस्त ने कहा "हाँ ,ये दो साल हमारे ही स्कूल में थी। पहले बहुत मोटी हुआ करती थी और बहुत ज्यादा हँसी मजाक करती थी। " इतना सुनने के बाद मैंने उसका नाम बता दिया। ये सुनकर मेरे दोस्त को ताज्जुब हुआ। मैंने दोस्त को बताया की यहाँ से पहले वो और मैं एक ही स्कूल में थे। उसके बाद मैंने भावनाओं में बहकर उस लड़की से सम्बंधित बहुत से किस्से शॉर्टकट में बता दिए। खासकर वो किस्सा की कैसे मेरा एक दोस्त उसको पसंद करने लगा था और उसने ये तक संदेश भिजवा दिया था की अगर वो नहीं आयी तो वो अपने जन्मदिन का केक नहीं काटेगा। पता नहीं मैंने उस समय भावनाओं में बहकर क्या क्या बता दिया उसके बारे में जो की नहीं बताना चाहिए था। वो ऑटोवाला भी हमारी बातें ध्यान से सुन रहा था। इसका एहसास मुझे बाद में हुआ। 
वो मुझे ही ढूढ़ रही थी
उसके बाद वो मुझे दुबारा नहीं दिखी। दिन गुजरते गए। मैं भी अपनी दिनचर्या में उसको भूलता गया। धीरे धीरे उस शहर के हालात भी बदलते गए। शहर में किसी कारण से दंगे होने शुरू हो गए थे।  इस वजह से हमारा ज्यादा बाहर निकलना बंद हो गया था। हम बाहर तभी निकलते थे जब बहुत जरुरी होता था। कॉलेज तभी जाते थे जब एग्जाम देना हो। ऐसे ही समय गुजरता गया। मैं कॉलेज के फाइनल ईयर में पहुँच चूका था। फाइनल ईयर के एग्जाम भी शुरू हो चुके थे। 
एक दिन एग्जाम के बाद कॉलेज की पार्किंग में एक दोस्त ने बताया की कोई लड़की तुझसे मिलना चाहती है। मुझे ताज्जुब हुआ और मैंने हँसते हुए कहा - "मुझसे क्यों मिलना चाहती है ?मैंने तो किसी लड़की से बातचीत और दोस्ती तक नहीं किया है इतने समय से। मुझसे नहीं मिलना होगा किसी और से मिलना होगा। " लेकिन उस दोस्त ने कहा -"नहीं ,सच में मिलना चाहती है वो। "
वो मुझे ही ढूढ़ रही थी
मैंने कहा -"भाई ,तुझे मैं ही मिला आज टाँग खींचने के लिए। किसी और का नाम लेता तो सही भी लगता। " उसके बाद दूसरे दोस्त ने हँसते हुए कहा -"ये तो पता नहीं की वो तुझसे मिलना चाहती है की नहीं लेकिन वो राकेश नाम के लड़को को ही ढूढ़ रही है और उसका कहना है की उसे राकेश नाम के लड़कों से दोस्ती करना अच्छा लगता है। "
मैंने अपने एक दोस्त की तरफ इशारा करते हुए कहा -"इसे मिला दो उससे ,इसका नाम भी तो राकेश है। " 
उनमें से एक ने कहा -"ये कल ही मिल चूका है उससे। तू भी मिल ले उससे क्या पता वो तुझे ही ढूढ़ रही हो। " उन लोगों ने चुटकी लेते हुए कहा। 
मैंने कहा - "जो भी हो। वो मुझे क्यों ढूंढेगी। मैं तो तुम लोगों से ही थोड़ी बहुत बातचीत करता हूँ और किसी से मेरा हाय हेलो है नहीं। जो भी है देखा जायेगा बाद में। " उसके बाद दूसरे मुद्दों पर बात होने लगी। मुझे ये बात सोचकर अजीब तो लग रहा था की एक लड़की सिर्फ राकेश नाम के लड़कों को ढूढ़कर उनसे दोस्ती करना चाहती है। मैं उस लड़की से कभी मिला नहीं। वैसे भी वो समय दंगे का माहौल था। शहर में जगह जगह कर्फ्यू लगा हुआ था। जगह जगह पुलिस का पहरा था। किसी से मिलना जुलना लगभग बंद ही था। ऐसे हालात में मैं वो लड़की से मिलने वाली बात भूल चूका था। बहुत दिन हो गए कॉलेज के ख़त्म होने के दिन आ गए।  
वो मुझे ही ढूढ़ रही थी
एक दिन ये बात याद आयी और अचानक से ये ख्याल आया की कहीं ऐसा तो नहीं की वो सच में मुझे ही ढूंढ रही थी। मुझे उस दिन की घटना याद आयी की कैसे मैंने अपनी क्लासमेट को देखा था और उससे जुड़ी कुछ पुरानी यादें ताज़ा हो गयी थी।कैसे मैंने भावनाओं में बहकर अपने उस दोस्त को उस लड़की के किस्से सुना दिए थे और वो ऑटो वाला भी मेरी बात सुन रहा था।
वो मुझे ही ढूढ़ रही थी
कहीं ऐसा तो नहीं की उस दोस्त ने उस लड़की को जाकर कुछ कह दिया हो। कुछ क्या बहुत कुछ कह दिया हो। कुछ ज्यादा बातें अपनी तरफ से बना कर कह दिया हो। या फिर उस ऑटोवाले ने कह दिया हो जिससे बात उस लड़की के दिल पर लगी हो। हो सकता है उसे मेरे बारे में ठीक से याद ना आ रहा हो ,उसे किसी तरह से मेरा नाम पता चल गया हो और इस तरीके से वो मुझे ढूढ़ रही हो। या ये भी हो सकता है की ये सिर्फ मेरा भ्रम हो। इन दोनों घटनाओं का आपस में कोई संबंध ही ना हो। लेकिन मैं थोड़ी देर के लिए डर जरूर गया था की अगर मैं उसे मिल गया होता तो वो पता नहीं क्या करती। मुझे याद है वो हंसी मजाक जरूर करती थी लेकिन चिढ़ती भी बहुत जल्दी थी। ये तो अच्छा हुआ मैं उससे नहीं मिला।  
वो मुझे ही ढूढ़ रही थी
जो भी हो इस घटना से मुझे ये तो समझ में आ गया की कभी भी ,कहीं भी ,किसी के भी सामने किसी के भी बारे में कुछ भी नहीं बोल देना चाहिए चाहे वो सच ही क्यों ना हो। हर बात कहने का उचित समय और जगह होता है। हमें ये भी समझना चाहिए की किसके सामने कौन सी बात बोलनी चाहिए और कौन सी नहीं बोलनी चाहिए। ये बातें जीवन में हमेशा मायने रखती हैं। 
वो मुझे ही ढूढ़ रही थी

वैसे अभी भी उस घटना के बारे में सोचता हूँ तो कभी लगता है वो मेरा भ्रम था और कभी कभी लगता है वो मुझे ही ढूढ़ रही थी।


Comments

Popular posts from this blog

My first WhatsApp group

Due to not changing according to the changing times in life, due to the confusion and running of today's life, sometimes something happens to us that we are ashamed to remember it and there is a lot of laughter too. A similar incident has happened to me too, remembering which I feel ashamed and also laugh. This incident is from 2017 when I used to work in an office. I have used the same words and styles which we use in our daily routine, due to which some styles of speaking words of Hindi have been used in English translation so that I can make you feel as much as I was feeling. group of two people It was almost half an hour since my office shift started that  afternoon I was discussing something with my new group leader Sagar. Then my old group leader Harish came towards me. And told me- "Rakesh I forbade you to request leave on WhatsApp group. If it is very urgent then message me personally on WhatsApp". Harish who was my old group leader and now may have been shifted t...